लखनऊ. राम जन्मभूमि -बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर नवंबर में फैसला आने वाला है. 70 साल पुरानी कानूनी लड़ाई अपने अंत के करीब दिख रही है तो वहीं अब मुस्लिम समुदाय के भीतर मतभेद सामने आ रहे हैं कि मामले को कैसे देखा जाए.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल (rtd) ज़मीरुद्दीन शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव अनीस अंसारी सहित कुछ प्रमुख मुस्लिम बुद्धिजीवियों के एक दिन बाद, मुस्लिम पक्ष ने विवादित भूमि पर अपना पक्ष रखा. पर्सनल लॉ बोर्ड ने स्पष्ट रूप से दिए सुझाव को ठुकरा दिया है.
मुस्लिम पक्षकारों की दो टूक
12 अक्टूबर को लखनऊ में होने वाली AIMPLB की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में आधिकारिक तौर पर स्टैंड ऱखने की उम्मीद है, कि अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर दावे को छोड़ने का कोई सवाल ही नहीं है.
किसी हाल में नहीं छोड़ सकते दावा
हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय में मामले की सुनवाई से पहले महत्वपूर्ण और अंतिम बैठक से पहले ही, बोर्ड के सदस्य और उसके प्रवक्ता जफरयाब जिलानी ने संदेह की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी. न्यूज18 से बात करते हुए, उन्होंने कहा कि ‘बोर्ड इस तरह की किसी भी मांग से हैरान है.’
मध्यस्थता भी गतिरोध तोड़ने में रही विफल
उन्होंने आगे कहा कि मध्यस्थता वार्ता एक गतिरोध को तोड़ने में विफल रही है. हम माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष तर्क के बारे में आश्वस्त हैं और अदालत से बहुप्रतीक्षित फैसले का इंतजार कर रहे हैं. मुस्लिम बोर्ड के लिए, कानूनी हल से यह रुख नया नहीं है. बोर्ड ने अपनी पिछली बैठकों में इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया था.
हालांकि, तथ्य यह है कि कुछ प्रतिष्ठित मुस्लिम नागरिकों ने अपनी आवाज उठाई, यह स्पष्ट रूप से समुदाय के भीतर विभाजित राय को जाहिर करता है.
उन्होंने आगे कहा ‘भले ही हिंदू पक्ष केस को जीतता है, लेकिन भारतीय समाज में कुछ ऐसे तत्व हैं जो इसका इस्तेमाल अपने राजनीतिक हितों की सेवा के लिए करेंगे, जिससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ेगा’. सेवानिवृत्त आईएएस और यूपी के पूर्व मुख्य सचिव अनीस अंसारी ने भी कहा कि अदालत के निपटारे को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि हिंदू और मुस्लिम दोनों खुश रहें और कोई भी दल दुखी न हो.
Leave a Reply