बेंगलुरू। समान विचारधारा वाली पार्टी बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए का साथ छोड़कर परस्पर विरोधी दल कांग्रेस और एनसीपी संग महाराष्ट्र सरकार में शामिल हुई शिवसेना एक के बाद एक राष्ट्रवादी मुद्दों पर महाराष्ट्र की जनता के बीच हो रही अपनी फजीहत से आजकल बेहद असहज है। शिवसेना की छवि एक कट्टर हिंदूवादी पार्टी की रही है और राष्ट्रवादी मुद्दों पर हमेशा मुखर रही है।
लेकिन जब से शिवसेना ने महाराष्ट्र में सत्ता की बागडोर को संभाला है, उसके ऊपर सेक्युलर होने का दवाब बना हुआ है। ऐसा कई मौका आया जब शिवसेना को अपनी भावनाओं को दबा-छुपाकर गठबंधन धर्म के लिए आगे बढ़ना पड़ा है। इनमें महाराष्ट्र में मुस्लिमों को 5 फीसदी आरक्षण पर सहमति प्रमुख है, जिस पर पिछले 5 साल पार्टी ने चुप्पी साध रखी थी।
लेकिन पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा हाल में दिल्ली के रामलीला मैदान में स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर के खिलाफ दिया गया शिवसेना को आहत कर गया। महाराष्ट्र में सरकार गठन के बाद पहली बार पार्टी ने मुखपत्र सामना के जरिए राहुल गांधी पर हमला किया। शिवसेना के इस बदले रवैये में महाराष्ट्र की साझा सरकार के हितों की परवाह जरा नहीं दिखी।
वीर सावरकर पर हमले के बाद शिवसेना ने पुरजोर तरीके से राहुल गांधी के बयान की मुखालफत कर स्पष्ट कर दिया कि सिद्धांतों से वह अकेले समझौता नहीं करने वाली हैं। दरअसल, राहुल गांधी ने संसदीय क्षेत्र वायनाड में आयोजित एक रैली में मोदी सरकार के प्लैगशिप कार्यक्रम मेक इन इंडिया का मजाक उड़ाते हुए रेप इन इंडिया कहा था। राहुल गांधी के आपत्तिजनक बयान को लेकर संसद में विरोध दर्ज किया गया।
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी की टिप्पणी पर खूब हंगामा किया और उनसे पूरे देश में माफी मांगने की मांग की, लेकिन राहुल गांधी ने रामलीला मैदान में आयोजित भारत बचाओ रैली में यह कहकर घी में आग डाल दिया कि उनका नाम राहुल गांधी है, राहुल सावरकर नहीं, जो माफी मांगूगा। यह सुनकर शिवसेना भी बिफर गई।
राहुल गांधी का इशारा हिंदूवादी नेता विनायक दामोदर सावरकर की ओर से 14 नवंबर, 1913 को ब्रिटिश सरकार को कथित रूप से लिखे गए माफीनामे की तरफ था, जिसे उन्होंने अंडमान की सेलुलर जेल में कैद रहने के दौरान लिखा था। आखिर ये शिवसेना के उस नायक का अपमान था, जिसके नाम पर पार्टी वर्षों से सियासत करती आई है।
शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने राहुल गांधी के बयान की भर्त्सना करते हुए कहा कि राहुल का बयान बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है और सावरकर का बलिदान समझने के लिए राहुल को कांग्रेस नेता कुछ किताबें गिफ्ट करें। राउत ने आगे कहा, “हम पंडित नेहरू, महात्मा गांधी को भी मानते हैं, आप वीर सावरकर का अपमान ना करें, बुद्धिमान लोगों को ज्यादा बताने की जरूरत नहीं होती।
संजय राउत ने किए अपने दूसरे ट्वीट में उन्होंने कहा कि अगर आज भी आप वीर सावरकर का नाम लेते हैं तो देश के युवा उत्तेजित और उद्वेलित हो जाते हैं, आज भी सावरकार देश के नायक हैं और आगे भी नायक बने रहेंगे, वीर सावरकर हमारे देश का गर्व हैं।
महाराष्ट्र में कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में बंधी शिवसेना आराध्य वीर सावरकर पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के हमले से पूरी तरह से तिलमिला गई थी। यह पहला मौका था जब महाराष्ट्र की साझा सरकार की ताबूत में पहली कील गड़ी। हालांकि महाराष्ट्र की साझा सरकार की नींव में दरार आ गई थी जब शिवसेना ने संसद के लोकसभा और राज्यसभा में पेश नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 का परोक्ष रूप से समर्थन किया।
शिवसेना ने लोकसभा में जहां सीएबी के पक्ष में वोट किया। वहीं, राज्यसभा में शिवसेना ने वॉक आउट कर गई। महाराष्ट्र की साझा सरकार की ताबूत में दूसरी कील तब गड़ी जब शिवसेना ने सीएए के विरोध में महाराष्ट्र में आयोजित विरोध सभा से खुद को किनारे कर लिया और सीएए के खिलाफ राष्ट्रपति से मिलने गई प्रतिनिधिमंडल में हिस्सा नहीं लिया।
मामले पर बाकायदा बयान जारी कर शिवसेना ने अपने तेवर स्पष्ट करते हुए कहा कि नागरिकता कानून पर विपक्षी दलों के समूह में शामिल होने का कोई औचित्य नहीं था। शिवसेना प्रवक्ता ने कहा कि हमें विपक्षी नेताओं के साथ क्यों जाना चाहिए था। यह एक तरह का बेकार सा सवाल था। संजय से स्पष्ट कहा कि शिवसेना कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का हिस्सा नहीं है, हम एनडीए से बाहर जरूर हैं, मगर यूपीए के साथ नहीं है।
शिवसेना ने अपने बदले हुए तेवर से जता दिया कि वह आर-पार के खेल असहज नहीं होने वाली है और महाराष्ट्र में साझा सरकार चलाने की जिम्मेदारी उसके अकेले की नहीं हैं। जबकि महाराष्ट्र सरकार में साझीदार कांग्रेस उम्मीद कर रही थी कि शिवसेना भी प्रतिनिधमंडल में शामिल होकर विपक्ष की एकजुटता का प्रदर्शन में सहभागी बनेगी।
शिवसेना और परस्पर विरोधी पार्टी कांग्रेस और एनसीपी के मेल से महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना के वरिष्ठ नेता मनोहर जोशी भी असहज हैं। हाल ही में इशारों-इशारों में ही उन्होंने साफ किया कि आगे बीजेपी और शिवसेना फिर से एक पटरी पर आ सकते हैं।
जोशी ने साफ कहा कि उनकी पार्टी और बीजेपी निकट भविष्य में फिर साथ आ सकते हैं। जोशी के मुताबक छोटे मुद्दों पर लड़ने की जगह बेहतर है कि कुछ बातों को बर्दाश्त किया जाए। जिन मुद्दों को आप दृढ़ता के साथ महसूस करते हैं, उसे साझा करना अच्छा है। अगर दोनों दल साथ में काम करते हैं तो यह दोनों के लिए बेहतर होगा।
बकौल जोशी, ‘ऐसा नहीं है कि शिवसेना अब कभी भी बीजेपी के साथ नहीं जाएगी। उद्धव ठाकरे सही समय पर सही निर्णय लेंगे। इससे पहले भी जब महाराष्ट्र में एक महीने तक चले सियासी ड्रामे के बाद महा विकास अघाड़ी मोर्च की सरकार के वजूद आई थी तब भी अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए मनोहर जोशी ने कहा था कि बीजेपी और शिवसेना को ही महाराष्ट्र में सरकार बनाना चाहिए था।
इसलिए माना जा रहा है कि महाराष्ट्र में शिवसेना के तेवर नरम नहीं पड़ने वाले हैं, क्योंकि अभी मोदी सरकार एनआरसी, जनसंख्या नियंत्रण और समान नागरिक संहिता कानून जैसे राष्ट्रवादी मुद्दे पर आगे बढ़ेगी, उस वक्त भी शिवसेना को चौराहे पर खड़ी नजर आएगी।
नागरिकता संशोधन विधेयक पर कांग्रेस से अलग सुर
महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी के समर्थन से शिवसेना की सरकार बनने के वक्त ही राजनीतिक पंडितों ने आशंका जाहिर कर दी थी कि विचारधारा के मसले पर दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े गठबंधन के सदस्य विरोधाभासी मसलों पर कैसे और क्या प्रतिक्रिया देते हैं। गठबंधन के बाद सबसे पहले आया नागरिकता संशोधन बिल, जिस पर शिवसेना ने लोकसभा में खुलकर विधेयक के समर्थन में मत किया। कांग्रेस आलाकमान की त्योरियां चढ़ते ही शिवसेना ने राज्यसभा में रणनीति बदली और ऐन मौके वॉकआउट कर सत्तारूढ़ दल के लिए रास्ता कुछ आसान कर दिया। इस तरह शिवसेना ने इस मसले पर दो मौकों पर कांग्रेस को झटका दिया।
राष्ट्रपति से मिलने गए विपक्ष के साथ नहीं गई शिवसेना
इसके बाद कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने की योजना बनाई। मकसद नागरिकता संशोधन अधिनियम पर सत्तारूढ़ दल के खिलाफ आवाज बुलंद करना था। जामिया की हिंसा के बीच राष्ट्रपति से मिलने गए कांग्रेस नीत विपक्ष के प्रतिनिधिमंडल से शिवसेना ने ऐन मौके किनारा कर लिया। इस बाबत सवाल खड़े होने पर शिवसेना ने दो-टूक कहा कि उसके पास इसमें शामिल होने का कोई वाजिब कारण था ही नहीं। संजय राउत ने उलटे यही सवाल दाग दिया था कि शिवसेना आखिर क्यों कर शामिल होती? इसका जवाब देते हुए संजय राउत ने स्पष्ट कर दिया था कि शिवसेना ने सिर्फ महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी के समर्थन से सरकार बनाई है। वह कांग्रेस नीत यूपीए गठबंधन में शामिल नहीं हुई है। दिल्ली की राजनीति में शिवसेना का अपना अलग सुर है।
वीर सावरकर के मसले पर शिवसेना ने सुना दी खरी-खरी
इसके बाद दिल्ली में कांग्रेस की ओर से सीएए के खिलाफ कार्यक्रम में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने वीर सावरकर के खिलाफ बयान देकर परोक्ष रूप से महाराष्ट्र में सरकार के गठबंधन धर्म पर हमला बोला। इसका जवाब देने में शिवसेना ने देर नहीं लगाई। संजय राउत ने ट्वीट कर राहुल गांधी को ही आड़े हाथों ले लिया। उन्होंने सावरकर को राष्ट्रीय नेता बताते हुए दिल्ली में बैठे कांग्रेसी नेताओं को नसीहत तक दे डाली। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी को सावरकर पर कुछ किताबें भेंट की जाएं ताकि वह अपना नजरिया बदल सके। इसके बाद अब शिवसेना ने मुंबई के अगस्त क्रांति मैदान में गुरुवार को आयोजित धरना-प्रदर्शन के कार्यक्रम से खुद को अलग कर लिया है।
ससंद में कैब को समर्थन को लेकर ऊहापोह रही थी शिवसेना
नागरिकता संशोधन बिल (कैब) पर शिवसेना और कांग्रेस के बीच गतिरोध देखने को मिला जब शिवसेना ने कांग्रेस के खिलाफ जाकर पहले लोकसभा में बिल का समर्थन कर दिया और फिर राज्यसभा में वॉक आउट कर लिया। जबकि शिवसेना ने यह कहते हुए अपने कदम पीछे खींच लिए थे कि सबकुछ स्पष्ट होने तक वह कैब का समर्थन नहीं करेगी। हालांकि शिवसेना के रूख से कांग्रेस तिलमिला गई थी। हालांकि शिवसेना के राज्यसभा में 3 सदस्य से सीएबी के गिरने की संभावना बिल्कुल नहीं थी, इसलिए बात आगे नहीं बढ़ी।
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