कित मुरली कित चंद्रिका कित गोपियव कौ साथ। अपने जन के कारणे श्री कृष्ण भये रघुनाथ।।
ब्रज मै भक्तों की दुर्दशा देख मन कलप उठे। यहां न तौ सूर ऐ मान मिलौ न तुलसी ऐ। तुलसी के राम मंदिर के बारे मै पढ़कै मन मै बड़ी पलक जगी। अगले ही दिना कदम ज्ञान गुदड़ी के बाढ़ चले। पाछ-पाछ के मंदिर के द्वार तक ना पहुंच गए। नजर घुमाय के देखत ही दंग रह गए। रामलीला की भजन कुटी ऐ रोतौ देख बोल नाय फूटे। मानस के रचैया की ऐसी दुर्दशा। अपए रामलीला के लै कृष्ण नै जहां युगन कौ भेद मिटाय हाथ मै धनुष धर लियो बाई ठौर पै बिनकौ भक्त भेदभाव का शिकार है गयौ याते बड़ी विडंबना और का होगी। लीला निकेतन नित नूतन मंदिर बन रहे पर तुलसी की जर्जर भजन कुटी कौ सुध लिवैया कोऊ नाय।
तुलसी राम दर्शन मंदिर प्रांगण में रामबोला की भजन कुटि नारकीय हालत में है। जर्जर कुटी के आसपास की भूमि को गाय-भैसों के बड़ा बना दिया गया है। कुटी में ताला लटका है। मंदिर में सेवायत यश ने तुलसीदास जी का वृंदावन प्रसंग बताया। रामचरित मानस पूरी करने बाद तुलसीदास राम नाम के प्रचार के ब्रजयात्रा का संकल्प लिया। उस दौरान उन्होंने लोगों को राम कृष्ण भेद करते पाया। इसी बीच तुलसी वृंदावन आए और ज्ञान गुदड़ी अपना आसन लगाया। उस समय यह श्रीएक रमणीक स्थली थी और यमुना मैया भी प्रवाहमान थीं। यहां परशुराम देवाचार्य नामक संत रहते थे। यमुना किनारे तुलसी और परशुराम जी का सत्संग हुआ। परशुराम जी तुलसीदास को इस राधा कृष्ण मंदिर के दर्शन कराने लाये। गोस्वामी जी ने हाथ जोड़कर नमन किया। रामबोला की परीक्षा लेने को परशुराम जी ने कहा, आप राम उपासक हैं और राधा कृष्ण को प्रणाम कर रहे हैं। गोस्वामी जी बोले, दोनों में कोई भेद ही नहीं है। परशुराम जी ने कहा कि अपने अपने इष्ट को, नमन करे सब कोय, परशुराम बिन इष्ट के, नमे सो मूरख होय। परशुराम के वचन सुन मानस हिये हुलास, सीताराम सुमिर कै बोल्यौ तुलसीदास। का कहूं छवि आपकी भले बने हो नाथ, है, तुलसी मस्तक नवत है, धनुष बाण लेऊ हाथ। तुलसी ने करके नजर उठाई तो अपने प्रभु राम को पाया। मुरली लकुट दुरायके, धर्यो धनुष सर हाथ, तुलसी लखि रुचिदास की, नाथ भये रघुनाथ। मुंबई की वेंकटेश प्रेस से प्रकाशित रामायण में इस प्रसंग का वर्णन है। गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र से प्राप्त यह दोहा भी है, तुलसीदास यात्रा करी ब्रज चौरासी कोस, राम कृष्ण वयु भेद बिन, भरी आनंद उर कोस। औरंगजेब के काल में इस मंदिर को भी खंडित किया गया। राम रूप में दर्शन देते कृष्ण की प्राचीन मूर्ति तब से अज्ञात है। किवदंती है कि भक्तमाल रचयिता नाभा जी और तुलसीदास का मिलन भी इसी स्थान पर हुआ था।
पहले और बुरी थी दशा
मंदिर के सेवायत यश ने बताया कि भजन कुटी की दशा इससे पहले और भी खराब वी और हम इस कुटी के पास बगीचा बनाना चाहते है लेकिन उतना पैसा नहीं जुटा पाए। इस कार्य के लिए किसी का सहयोग भी नहीं मिला। गायों को बांधने के लिए और कोई जगह नहीं है।
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