राजस्थान में सियासी संग्राम लगातार जारी है। इसके साथ ही राजस्थान सरकार के मुखिया अशोक गहलोत और राजभवन के बीच सीधे टकराव की स्थिति बन चुकी है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से दो दिन पहले मीडिया में दिए गए बयान पर भी रार मची हुई है। गहलोत ने कहा था कि यदि राज्यपाल हमारी मांग नहीं मानते हैं तो राजस्थान की जनता राजभवन का घेराव कर सकती है और इसके लिए हमारी जिम्मेदारी नहीं होगी। दरअसल, गहलोत चाहते है कि विधानसभा का सत्र बुलाया जाए लेकिन राज्यपाल की ओर से छह बिंदुओं पर उनसे जवाब मांगा गया है। सीएम अशोक गहलोत चाहते हैं कि वे सदन में अपना बहुमत साबित करें, इसलिए वे विधानसभा सत्र बुलाना चाह रहे हैं। राजस्थान के इतिहास की बात करें तो यहां पर ऐसा नहीं है कि विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाता है। सत्ता पक्ष की विश्वास प्रस्ताव लाकर सरकार में बने रहने का दावा पेश पहले भी कर चुका है।
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चार बार विश्वास मत हासिल करने के लिए बुलाया सदन
इतिहास की बात करें तो राजस्थान में सरकार के गठन से लेकर अब तक चार बार ऐसे मौके आए, जिसमें सरकार विश्वास मत को लेकर सदन आई और सत्ता में बने रहने का अधिकार विधानसभा से प्राप्त किया। आपको बता दें कि हमेशा अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष की ओर से सत्ता पक्ष के विरोध में लाया जाता है, लेकिन विश्वास प्रस्ताव सरकार की ओर से ही अपने लिए सफल बने रहने के लिए पर्याप्त है या नहीं यह बताने के लिए होता है। वर्तमान प्रदेश की राजनीति में अशोक गहलोत सरकार संभवत: विधानसभा सत्र बुलाकर सबसे पहले विश्वास मत हासिल करना चाहते है।
जानें कब-कौन लाया प्रस्ताव
-राजस्थान विधानसभा के इतिहास में अब तक 4 बार विश्वास प्रस्ताव सदन में लाया गया है।
-चार बार के विश्वास प्रस्ताव में तीन बार प्रस्ताव अकेले भैरों सिंह शेखावत सदन में लेकर आए हैं और विश्वास प्रस्ताव को पारित कराने में सफल हुए हैं।
-एक बार सीएम अशोक गहलोत भी यह प्रस्ताव लेकर आये है। गहलोत अपनी 2009 से 2013 के बीच बनी सरकार में एक बार विश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे और उसमें वे सफल भी हुए थे।
-पिछली चार बार को देखते हुए यह कयास लगाए जा रहे है कि इस बार भी इतिहास अशोक गहलोत के लिए मददगार होगा।
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यूं भैरों सिंह ने हासिल किया था विश्वास मत
बात नवीं विधानसभा की है। उस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत ने विश्वास मत का प्रस्ताव सदन में रखा। नवम विधानसभा के दूसरे सत्र में 23 मार्च 1990 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत ने विश्वास मत प्रस्ताव सदन के पटल पर रखा और ध्वनि मत से यह पारित हो गया।
इसके बाद इसी तरह दूसरी बार विश्वास प्रस्ताव आया। नवीं विधानसभा के तीसरे सत्र में यानि 20 माह के बाद ही 8 नवम्बर 1990 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत ने सदन के पटल पर विश्वास प्रस्ताव रखा, जिस पर मत विभाजन भी हुआ। जिसमें विश्वास मत के पक्ष में 116 वोट पड़े तो विपक्ष में 80 वोट। इस विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कुल 45 सदस्यों ने भाग लिया था।
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तीसरी बार भी दसवीं विधानसभा के पहले सत्र में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत ने 31 दिसंबर 1993 को विश्वास प्रस्ताव सदन के पटल पर रखा। जिसमें मत विभाजन के बाद पक्ष में 108 वोट पड़े। वहीं विपक्ष की ओर से वाकआउट करने के कारण वोटिंग में भाग नहीं लिया।
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