नई दिल्ली। हाल ही में सामने आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में मानव तस्करी को लेकर हैरान करने वाला खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट के मुताबिक विवाह के नाम पर दुनिया भर में लड़कियों का शारीरिक शोषण किया जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक 12 वर्ष तक की लड़कियों का जबरन या धोखे से विवाह कराया जाता है और वही लोग बाद में उसका शारीरिक शोषण करते हैं। मादक पदार्थों और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) की एक नई रिपोर्ट में जबरन विवाह और मानव तस्करी के बीच संबंध की पड़ताल की गई है, जिसके मामलों की वास्तविक संख्या पूरी तरह सामने नहीं आ पाती है।
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यूएन एजेंसी द्वारा प्रकाशित नई रिपोर्ट में विभिन्न देशों की सरकारों और प्रशासनिक एजेंसियों को इस समस्या से निपटने के लिये उपायों का भी जिक्र किया गया है। इस अध्ययन में एक वर्ष की अवधि के दौरान कनाडा, जर्मनी, जॉर्डन, किर्गिजस्तान, मलावी, सर्बिया, दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड और वियतनाम में शोध किया गया। इस पूरे प्रोसेस में विशेषज्ञों ने उन वकीलों, सरकारी अधिकारियों, गैरसरकारी संगठनों और पुलिस अधिकारियों समेत करीब 150 लोगों से बातचीत भी की। ये सभी वो लोग थे जो किसी न किसी तरह से मानव तस्करी का दंश झेलने वाली लड़कियो के संपर्क में थे।
यूएन एजेंसी की शोध अधिकारी तेजल जसरानी के मुताबिक शादी के मकसद से यूं तो पूरी दुनिया में लड़कियों की तस्करी की जाती है, लेकिन जिस तरह से यह अपराध विभिन्न देशों में किया जाता है, वो विशिष्ट सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक-आर्थिक कारणों पर निर्भर करता है। यूएनओडीसी कार्यालय के अधिकारी और लेखक सिल्के एलबर्ट का कहना है कि यह ऐसी पहली रिपोर्ट है जिसमें इस मुद्दे को वैश्विक स्तर पर उन अंतरराष्ट्रीय कानूनी दायित्वों के नजरिये से देखा गया है जिनके निर्वहन की जिम्मेदारी देशों पर है।
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रिपोर्ट में कहा गया है कि विवाह के उद्देश्य से की गई तस्करी के ज्यादातार मामलों में पीड़ित युवा लड़कियां होती हैं जिनमें से बड़ी संख्या में पीड़ित वंचित परिवारों से संबंध रखती हैं। रिपोर्ट को तैयार करने वाले शोधकर्ताओं ने पाया कि इन शादियों की व्यवस्था वित्तीय लाभ की मंशा से परिजनों, वैवाहिक एजेंसियों और दलालों द्वारा भी की जा सकती है। कुछ मामलों में वधुओं को अगवा कर लिया जाता है। इसके बाद पीड़ितों की सहमति हासिल करने के लिये उन पर दबाव डाला जाता है और धोखाधड़ी, उपहार, शोषण सहित अन्य हथकंडे भी अपनाए जाते हैं। इन कारणों से जबरन रिश्तों में फंस जाने वाली महिलाएं और लड़कियों को हिंसा, दुर्व्यवहार, आवाजाही की पाबंदियों और अपने अभिभावकों व मित्रों से अलग रहने के लिये मजबूर होना पड़ता है।
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रिपोर्ट दर्शाती है कि उम्र, समाज में दर्जे, शिक्षा के अभाव और बेरोजगारी के कारण महिलाओं के शोषण और दुर्व्यवहार का शिकार बनने का जोखिम ज्यादा होता है। रिपोर्ट के मतुाबिक इस तरह के कम ही मामले सामने आ पाते हैं और जो आते भी हैं तो उनमें सजा कम ही मामलों में मिल पाती है। इस तरह से ऐसे मामलों में सजा का अनुपात काफी कम है। बदनामी के डर की वजह से ही इस तरह के मामले सामने नहीं आ पाते हैं। सिल्के अलबर्ट के मुताबिक विवाह को आम तौर पर एक निजी, पारिवारिक मामला समझा जाता है और उस पर घरेलू हिंसा या दुर्व्यवहार के मामलों के बाद भी चर्चा नहीं होती। पीड़ितों को भी अपने बच्चों के भविष्य, देश में रहने की अनुमति जैसी बातों की चिंता सताए रहती है जिसकी वजह से वो आगे नहीं बढ़ पाती हैं। उनका कहना है कि आम तौर पर मानव तस्करी के पीड़ितों की पर्याप्त रूप से शिनाख्त नहीं हो पा रही है और ना ही उन्हें जरूरी सहायता मिल पा रही है। इस तरह के मामलों की शिनाख्त कर पाना भी काफी मुश्किल होता है।
ताज़ा रिपोर्ट में इस चुनौती से निपटने के लिये नीतिगत उपायों का भी जिक्र किया गया है। इनका मकसद विवाह से संबंधित मानव तस्करी के मामलों की रोकथाम करना, पीड़ितों की शिनाख़्त व उनकी रक्षा करना और दोषियों की जवाबदेही तय करना है।यूएन एजेंसी ने उम्मीद जताई है कि सरकारों द्वारा इस रिपोर्ट का उपयोग राष्ट्रीय जवाबी कार्रवाई को विकसित करने में किया जाएगा। साथ ही इससे पुलिस व आव्रजन अधिकारियों, स्वास्थ्य एजेंसियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को मदद मिलेगी।
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