
कोरोना की नई लहर बेकाबू हो चुकी है। ऐसे में लोग पशोपेश में है कि कब इस बीमारी की जांच करानी चाहिए और कब नहीं। कई बार लोग डॉक्टर के पास जाने से बचने के लिए खुद ही घरेलू इलाज करते हुए रोग को और गंभीर स्थिति में ले जाते हैं। वहीं कई ऐसे भी लोग हैं, जो कोरोना को महज अफवाह मानकर बिना कोई प्रोटोकॉल पाले बाहर घूम रहे हैं। वायरस के बारे में कई बातें अब तक वैज्ञानिकों की समझ से भी बाहर हैं लेकिन जितनी जानकारी है, वो हम सभी के पास होनी चाहिए।
कब कराएं जांच?
कोरोना के लक्षणों को लेकर सबसे ज्यादा कंफ्यूजन है। पहले बुखार, सर्दी-खांसी जैसे लक्षण इसके क्लासिक संकेत माने जा रहे थे लेकिन अब हालात अलग हैं। म्यूटेशन के कारण वायरस में बदलाव हुआ और साथ ही लक्षण भी बदले। किसी में ये बुखार के रूप में है तो किसी को पेटदर्द, डायरिया और सिरदर्द जैसे लक्षण हैं। कहीं-कहीं आंखों का इंफेक्शन, शरीर पर लाल चकत्ते दिखना जैसे संकेत भी दिखते हैं।
ऐसे में अगर आप बीते 15 से 20 दिनों में घर से बाहर निकले हों तो सर्तक हो जाएं और जांच के लिए संपर्क करें। कई बार मरीज में कोई लक्षण नहीं होते हैं लेकिन उसके आसपास के लोग संक्रमित होते जाते हैं। तब बगैर लक्षण के भी टेस्ट की जरूरत है।
कोरोना के कौन से चरण हैं?
कोरोना वायरस शरीर में प्रवेश के बाद अलग-अलग तरीके से असर करते हैं। वायरस शरीर के किसी एक अंग पर भी असर डाल सकता है या फिर वायरल लोड अगर बढ़ जाए तो खतरा सभी अंगों तक पहुंच जाता है। ऐसे में ध्यान देना जरूरी है कि बीमार होने पर कब हमें अस्पताल जाना चाहिए और कब घर पर ही रहते हुए आइसोलेट हो जाना चाहिए।
ये है पहला चरण
इसे स्टेज में समझा जाए तो पहली स्टेज है होम क्वारंटाइन स्टेज। इसमें मरीज के लक्षण काफी हल्के या फिर नहीं भी होते हैं लेकिन वो पॉजिटिव होता है। तब उसे घबराए बगैर खुद को अलग-थलग कर लेना है। किसी भी हाल में स्वस्थ लोगों से नहीं मिलना चाहिए और मिले भी तो मास्क पहनकर सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन करते हुए।
दूसरे चरण में क्या होता है
दूसरी स्टेज में मरीज के लक्षण गंभीर हो जाते हैं और उसे अस्पताल में एडमिट होने की जरूरत रहती है. इन लक्षणों में तेज बुखार होना, डायरिया, सांस लेने में परेशानी होना शामिल हैं। पल्स ऑक्सीमीटर पर अलग ऑक्सीजन का स्तर 94 से कम होने लगे तो तुरंत अस्पताल जाना चाहिए क्योंकि ये लंग्स पर संक्रमण बढ़ने का संकेत है।
तीसरी स्टेज ज्यादा गंभीर है
इसमें लंग्स पर दबाव बढ़ता जाता है और मरीज को सांस लेने में दिक्कत बढ़ चुकी होती है। खून में ऑक्सीजन का स्तर 92 या उससे नीचे होने लगता है। सीने के एक्सरे में घाव दिखते हैं। ऐसे में मरीज को सामान्य कोविड वार्ड से ICU में जाना चाहिए। डॉक्टर खुद ही ये फैसला ले लेते हैं. इस दौरान ऑक्सीजन दी जाती है।
चौथी स्टेज में वेंटिलेटर की जरूरत
चौथा और सबसे ज्यादा गंभीर चरण वो है, जिसमें मरीज वेंटिलेटर पर रखा जाता है। इसमें फेफड़े काम करना कम कर चुके होते हैं और मदद के लिए उसे वेंटिलेटर दिया जाता है। डॉक्टरों के मुताबिक इसमें केवल समय लिया जाता है ताकि मरीज के शरीर से वायरस कम होने लगे और फेफड़े सामान्य अवस्था में आ सकें। लेकिन कई बार हालात बिगड़ते जाते हैं और थोम्ब्रोसिस तक बात पहुंच जाती है। इसमें शरीर के किसी अंग विशेष या फिर दिल तक खून पहुंचना बंद हो जाता है और मल्टी-ऑर्गन फेल होता है।
कोरोना प्रोटोकॉल मानने पर जोर
इस अवस्था तक पहुंचने से बचाव के लिए विशेषज्ञ लगातार कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने की बात कर रहे हैं। वैसे अगर बीमार पड़ ही जाएं तो कई बार देखा गया है कि मरीज के परिजन सुनी-सुनाई बातों पर मरीज को प्लाज्मा देने या कोई खास दवा देने की मांग करते हैं। ऐसा करने की बजाए डॉक्टर को खुद तय करने दें कि किस मरीज की जरूरत क्या है। वैसे भी अब तक खास कोरोना के इलाज के लिए कोई दवा नहीं बन पाई है और पुरानी दवाओं को ही थोड़े बदलाव के साथ इस्तेमाल किया जा रहा है। लिहाजा जितना मुमकिन हो- घर पर रहें, बाहर निकलने पर मास्क पहनें और लगातार 20 सेकंड तक साबुन पानी से हाथ धोएं. इससे संक्रमण का खतरा काफी हद तक घट जाता है।
कौन सा टेस्ट कराना चाहिए?
फिलहाल जांच के लिए अस्पताल खुद ही तय कर रहे हैं कि कौन सी जांच होनी चाहिए। जैसे मरीज अगर संक्रमितों के संपर्क में न आने का दावा करे तो उसका रैपिड एंटीजन टेस्ट होता है। इसमें रिपोर्ट जल्दी मिल जाती है। इसका रिजल्ट अगर पॉजिटिव आए तो संक्रमण कन्फर्म है। लेकिन निगेटिव आने और लक्षण महसूस होने पर RT- PCR कराया जाता है। इसकी रिपोर्ट में CT वैल्यू भी लिखी होती है, जिससे वायरल लोड का पता लगता है। अगर ये वैल्यू 24 से कम हो तो ठीक है लेकिन ये वैल्यू इससे ज्यादा हो तो मरीज का संक्रमण गंभीर स्तर पर पहुंच सकता है।
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