नई दिल्ली। अफगानिस्तान में तालिबान का शासन कट्टरपंथ को बढ़ावा देने और आतंक को पनाह देने वालों के खिलाफ विश्व समुदाय द्वारा ठोस कदम न लेने के चलते जन्मा है। कुछ दिन पहले तक किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि आतंक के सहारे एक संगठन किसी देश पर अपना हुक्म कायम कर लेगा, वो भी 21वी सदी में। अफगानिस्तान में जो कुछ हुआ, जो कुछ हो रहा है वे विश्व जगत के लिए, यूएन जैसी एक अंतरराष्ट्रीय समूह जो विश्व शांति और सुरक्षा की बात करती है, उसके लिए के लिए बहुत ही शर्म की बात है।
जिस तरह से तालिबान आम जनता का खून बहाकर, उनके जीने के सभी अधिकार छीन कर, मानवीय मूल्यों का हनन कर एक कट्टर इस्लामिक राष्ट्र कायम करने की ओर बिना किसी रोकटोक के आगे बढ़ रहा है, यह घटना उन सभी देशों अथवा समूह के लिए ठेंगा दिखाना जैसा है, जो मानवता को आतंक से बचाने की कसमें खाया करते हैं।
एक आतंकी समूह ने मात्र अपनी कट्टर सोच को कायम करने के लिए मानवता को ताक पर रख दिया है। चीन, रूस, ईरान और आतंक का आका पाकिस्तान ने उन्हें मान्यता देने की घोषणा बिना देर किए कर दिया।
ISIS जैसे आतंकी संगठन से जंग लड़ने वाला रूस कैसे तालिबान को मान्यता देने के लिए तैयार हो गया? जिस देश में समाजवाद की क्रांति आई, वो देश आज कैसे आतंक के साथ खड़ा है? मात्र अमेरिका को अफगानिस्तान से दूर रखने के लिए तालिबान का समर्थन? क्या रूस यह भी भूल गया कि इस तालिबान का किसी समय अमेरिका का पूरा समर्थन हासिल था?
चीन से तो मानवता की रक्षा की अपेक्षा करना ही पाप है। क्योंकि चीन में तो वैसे भी लोकतंत्र नाम की कोई तंत्र ही नहीं है और मानवता को क्षति पहुंचाने में चीन से अच्छा उदाहरण पूरे विश्व में नहीं है। इतिहास गवा है कि अपने फायदे के लिए किसी से भी दोस्ती कर सकता है चीन।
तालिबान को ईरान द्वारा समर्थन की पेशकश कुछ समझ से परे है। ईरान तो खुद आतंक से लड़ने की बात करता था और पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंक से परेशान था, तो पाकिस्तान द्वारा पालित-पोषित तालिबान का कैसा समर्थन?
बात करें आतंक के आका पाकिस्तान की, तो इसमें कोई शक नहीं है कि पाकिस्तान का वजूद, नाम अगर आज पूरी दुनिया में रोशन है तो वो सिर्फ और सिर्फ आतंक के वजह से है। पाकिस्तान का अपने द्वारा पालित पोषित तालिबान का समर्थन करना कोई आचार्य की बात नहीं है। विश्वभर में आतंक फैलाने के लिए पाकिस्तान को तालिबान की जरूरत है।
अफगानिस्तान में घट रही घटनाएं विश्व समाज को एक सकारात्मक संदेश भी दे रही है। वे संदेश है तालिबानी सोच और कट्टरपंथ के खिलाफ आम जनता का खड़ा होना, तालिबानी सोच को नकारना। आम अफगानिस्तानी जो अपनी जिंदगी अपने मर्जी और आजादी के साथ जीना चाहता है, वो बिलकुल भी तालिबान को समर्थन नहीं करता है। अफगानिस्तान की मुस्लिम बच्चियां पढ़ाई करना चाहती हैं, महिलाएं आजादी से काम करना चाहती हैं। वहां का आम नागरिक विश्व के साथ मिलकर चलना चाहता है। कट्टर सोच के दल दल में फंसना नहीं चाहता। यही कारण है की हजारों की संख्या में तालिबान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। तालिबान से जंग तक करने को लोग तैयार हैं। हजारों की संख्या में लोग दूसरे देशों की ओर जा रहे हैं जहां पर वो आजादी के साथ जी सके, अपनी जिंदगी अपने बच्चों की परवरिश अपने इच्छा से कर सके।
सिर्फ अमेरिका, यूरोपीय संघ, भारत जैसे देशों में लोकतंत्र होने से विश्वभर की मानव समाज की रक्षा नहीं की जा सकती। कब तक कुछ सक्षम देश हिंसा और आतंक से ग्रस्त लोगों को पनाह देते रहेंगे? क्या पनाह देने से जो समस्या है उसका हल निकल जाएगा? नहीं, कभी नहीं। अगर मानवता को बचाना है, मानव मूल्यों को सुरक्षित करना है, लोकतंत्र को कायम रखना है तो आतंक के खिलाफ सब को एक साथ आना पड़ेगा। अगर यूनाइटेड नेशनस जैसी विश्व संगठन आज प्रासंगिक नहीं है, तो उसमे बदलाव करना पड़ेगा या नए रूप से विश्व संगठन तैयार करना पड़ेगा जो आतंक के खिलाफ ठोस निर्णय ले सके, जिसकी इच्छा शक्ति दृढ़ हो। ऐसे करने से ही विश्व में शांति, लोकतंत्र कायम हो पाएगा। अन्यता इसी तरह हम सबको एक मुख दर्शक बनकर सब कुछ चुपचाप देखना पड़ेगा। आज जो अफगान में घट रहा है शायद कल किसी भी देश में घट सकता है।
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