यूनिक समय ,नई दिल्ली। एम्स प्रोफेसर डॉ. रीमा दादा ने जेएसएस कॉलेज ऑफ फार्मेसी में हुए सम्मेलन में माइक्रो प्लास्टिक विषय पर नैनो प्लास्टिक कणों से बढ़ रहे खतरे के बारे में बताया। एम्स की एनाटॉमी विभाग की प्रोफेसर डॉ. रीमा दादा ने बताया कि देश में सिंगल यूज प्लास्टिक (एसयूपी) के साथ दूसरे प्लास्टिक युक्त सामान का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे नैनो प्लास्टिक कण हवा, पानी, खाने के साथ शरीर में पहुंच जाता है।
यह शरीर के कई अंगों को प्रभावित करते हैं। धीरे-धीरे समस्या गंभीर होती है। विभिन्न शोध बताते हैं कि एक व्यक्ति साल भर में 11 हजार से लेकर 1.93 लाख तक माइक्रो प्लास्टिक कण निगल जाता है।
इसके लिए किए गए शोध में नल के पानी, बोतलबंद पानी, बीयर, नमक सहित अन्य पेय पदार्थों में माइक्रो प्लास्टिक पाए गए। एम्स की एनाटॉमी विभाग की प्रोफेसर डॉ. रीमा दादा ने बताया कि देश में सिंगल यूज प्लास्टिक (एसयूपी) के साथ दूसरे प्लास्टिक युक्त सामान का इस्तेमाल कर रहे हैं। धीरे-धीरे इसका स्तर काफी छोटा हो जाता है और यह हवा, पानी, खाने के साथ शरीर में पहुंच जाता है।
शरीर के अंग के साथ टिश्यू में घर कर जाता है। यह सर्टोली सेल्स, जेम्स सेल सहित अन्य को प्रभावित करते हैं। इसके कारण शरीर के कई अंगों को काफी नुकसान हो सकता है। इससे महिलाओं में बांझपन, पुरुष में नपुंसकता, मधुमेह, न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर, थायराइड, कैंसर सहित दूसरे रोग होने की आशंका बढ़ जाती है।
एक शोध के दौरान चूहों पर देखा गया कि जब उन्हें ज्यादा प्लास्टिक दिया गया तो इनकी ओवरी खराब हुई। ओवरी को सुरक्षित रखने वाले सेल भी प्रभावित हुए। इसके कारण ओवेरियन रिजर्व कम हुआ। इसके कारण पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस), बांझपन की समस्या हो सकती है। शोध में देखा गया है कि प्लास्टिक में कई रसायन होते हैं। यह हमारे एंडोक्राइन सिस्टम को प्रभावित करते हैं। यह हमारे शरीर के कई अंगों को बुरी तरह से प्रभावित करता है। यह हमारे रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करता है।
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