नई दिल्ली। भारत को एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 800 मीटर रेस में गोल्ड मेडल दिलाने वाली गोमती मरिमुथु की कहानी मुश्किंलों पर कामयाबी की दास्तान है।
तमिलनाडु की इस महिला एथलीट ने शुक्रवार को चेन्नई में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान अपनी अब तक की यात्रा और आगे की तैयारी के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि वह आज जिस मुकाम पर है वहां पर पहुंचाने में उनके पिता की बड़ी भूमिका है।
गोमती ने कहा, ‘मुझे अच्छा खाना खिलाने के लिए मेरे पिता जानवरों के लिए रखा खाना खाते थे.’ इस दौरान वह भावुक हो गईं और उनकी आंखों से काफी देर तक आंसू बहते रहे. उनके पिता का कुछ साल पहले निधन हो गया था. गोमती अभी बेंगलुरु में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में टैक्स असिस्टेंट के पद पर तैनात हैं.
पिता को याद करते हुए गोमती ने बताया, ‘जब मैं चैंपियनशिप की तैयारी कर रही थी तब मेरे पिता चल नहीं पाते थे. मेरे गांव में बस की सुविधा नहीं है. पिता मुझे सुबह 4 बजे उठाते और मां के बीमार होने पर घर के काम में हाथ बंटाते. मुझे उनकी याद आती है. अगर वे जिंदा होते तो मैं उन्हें भगवान मानती.’ गोमती का मेडल एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भारत का पहला गोल्ड मेडल था.
उन्होंने बताया कि भारत सरकार से उन्हें मदद नहीं मिली फिर भी उन्हें गोल्ड मेडल जीतने का भरोसा था. बकौल गोमती, ‘मैंने काफी अभ्यास किया था और मुझे मेडल जीतने का भरोसा था. मैंने अकेले तैयारी की. मैं अपने खुद के पैसों से तैयार हुई.’ हालांकि उन्होंने कहा कि भारतीय टीम के कोच ने फोन के जरिए वर्कआउट शेड्यूल को लेकर उनकी मदद की.
एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप के अनुभव को याद करते हुए गोमती ने बताया, ‘यदि तमिलनाडु सरकार मेरी मदद करती है तो मैं कड़ी मेहनत करूंगी और ओलंपिक मेडल जीतने की कोशिश करूंगी. अभी इस प्रतियोगिता में एक साल का वक्त बचा है. इस टूर्नामेंट के लिए काफी कम समय था और मैं चोट से वापसी कर रही थी इस वजह से रेस के दौरान अपना सर्वश्रेष्ठ समय नहीं निकाल सकी.’
उन्होंने कहा कि उन्हें हर कदम पर अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ा. सरकार ने मदद की होती तो अच्छा रहता. अब तमिलनाडु और भारत सरकार ने मदद की पेशकश की है.
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