करीब एक कोस की है यह परिक्रमा, रमरीक दर्शनीय स्थल लुभाते हैं श्रद्धालुओं को
— निर्जला एकादशी को उमड़ेगी भक्तों की भीड़
योगेन्द्र छौंकर
मथुरा। ब्रज के धर्म स्थलों पर परिक्रमा का महत्व होता है। गोवर्धन की गिरिराज परिक्रमा तो बहुत प्रसिद्ध है। मथुरा, वृंदावन आदि स्थानों पर भी परिक्रमा होती है। बरसाना की जो परिक्रमा है वह गहवरवन परिक्रमा है। कहते हैं कि बरसाना की एक परिक्रमा गोवर्धन की सात परिक्रमा के समान फलदाई है। कहतें हैं कि बरसानौ जान्यौं नहीं, जान्यौ न राधा नाम, तौ तेने जानौ कहा बृज को तत्व महान। क्योंकि यहां साक्षात श्रीकृष्ण अपनी आराध्या श्री राधाजी के साथ नित्य बिहार करते हैं। जब कभी राधाजी रूंठ जाती थी तो उनको मनाने के लिए स्वयं श्रीकृष्ण मनिहारिन, लिलहारिन, सुरारिन और कभी जोगेश्वर का रूप धारण किया। संतों की भी मान्यता है कि ‘बरसाने के गहवरन में जो आवैगौ ताये राधे बुलायेवैगी’। इसलिए यहां की परिक्रमा देने से कृष्ण की कृपा का फल तो मिलता है साथ ही राधाजी के कृपापात्र प्राणी बन जाता है। उसे मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
परिक्रमा जहां से शुरू होती है वहीं पर समाप्त होती है। ज्यादातर भक्त यह परिक्रमा मुख्य बाजार से शुरू करते हैं। पूरे परिक्रमा मार्ग मे राधा और कृष्ण का स्मरण करते अवश्य चलें।बाजार से थाना मार्ग से होकर यह परिक्रमा आगे बढ़ती है। एक परिक्रमा मार्ग थाना पहुंचने के बाद रास्ता सांकरी खोर की तरफ जाता है। यहां शीतला माता का मन्दिर स्थित है। यहां एक घाटी है जिसके बायीं तरफ विलासगढ़ की पहाड़ी है। दायीं तरफ कुशल बिहारी मंदिर है। यहां दायीं ओर बड़े बड़े रेतीले टीले हैं। दरअसल यह समूचा बरसाना नगर रेतीले टीलों पर ही बसा हुआ है। यहां के गलियों में हो उतार चढ़ाव दिखता है उसकी वजह उनके नीचे दबे रेत के टीले ही हैं। थोड़ा आगे बढ़ने पर दायीं ओर के रेतीले टीलों से आगे राम मंदिर स्थित है। राम मंदिर के दर्शन कर आगे बढ़ने पर सांकरी खोर आती है। जहां एक बार मे एक ही व्यक्ति निकल पाता है। यह सांकरी खोर एक तंग घाटी है। इसके बायीं तरफ विलासगढ़ की पहाड़ी है और दायीं तरफ मोरकुटी की पहाड़ी। इन पहाड़ियों पर मन्दिर बने हुए हैं। इसी सांकरी खोर में श्रीकृष्ण ने राधा और गोपियों का माखन लूटने के लिए छीना झपटी करते समय मटकी फोड़ दी थी। यह स्थल यहीं पर है।हर वर्ष भादों के महीने में यहां मटकी फोड़ लीला आयोजित होती है। इन दोनों पहाड़ियों पर रास मंडप बने हुए हैं। रासलीला के दौरान यहां राधा-कृष्ण के स्वरूप विराजते हैं।
थाने से दूसरा रास्ता बड़ी परिक्रमा का बायीं तरफ से नरसिंह मंदिर होकर यादव मौहल्ले के किनारे से जाता है। जहां से आगे चलकर चित्रा सखी का मंदिर है। आगे चलकर चित्रा सखी का का गांव चिकसौली है। इसके अंदर से होकर जाने पर दोनों परिक्रमा मार्ग मिल जाते हैं और यहां राधा रस मन्दिर है। जहां से करीब 100 मीटर की दूरी पर राधा सरोवर दर्शनीय हैं। यहां से मोरकुटी और मान मन्दिर के शिखरों तक जाने के रास्ते हैं। राधा सरोवर बहुत गहरा है। परिक्रमा करने वाले श्रद्धालु इसके दर्शन अवश्य कर इसके जल से आचमन करते हैं। लोग इसे गहवर कुंड भी कहते हैं। मोरकुटी की पहाड़ी और मान मन्दिर की पहाड़ी के बीच की तंग घाटी में जो वृक्षावली है यही गहवरवन है। यहां से परिक्रमा वापसी की दिशा में मुड़ती है। आगे चलने पर महाप्रभु बल्लभाचार्य जी की बैठक स्थित है। जो बल्लभ सम्प्रदाय का आस्था का केन्द्र हैं। यहां दोनों तरफ ऊंची ऊंची पहाड़ियां दिखती हैं। इस क्षेत्र में बन्दर भी बड़ी संख्या में मिलते हैं। यहां श्रद्धालुओं को बंदरो से सावधान रहना पड़ता है। बहुत से श्रद्धालु इन बंदरों को खिलाने के लिए फल लेकर आते हैं।
आगे दायीं तरफ एक रास मंडल स्थित है। यह बहुत प्राचीन है। यहां प्रतिदिन रास लीला होती है। यहां एक कुंआ भी है जो बहुत गहरा है। इसके आगे चलकर बायीं तरफ बहुत से संतों की समाधियां दिखती हैं। दायीं तरफ दानगढ़ मन्दिर हैं। यहां भक्तजन दान बिहारी के दर्शन करते हैं। इस मंदिर के आगे एक पत्थर का बना प्राचीन झूला स्थित है। यहां पर भादों मास में श्रीकृष्ण दही दूध का दान लेकर विश्राम किया था।
यहां से आगे कुशल बिहारी मंदिर पड़ता है। कुशल बिहारी मंदिर राजस्थान सरकार का मन्दिर है। गाड़ियों से आने का रास्ता भी यहां तक आता है। यहां पार्किंग और केंटीन की सुविधा उपलब्ध है। यहां से आगे का रास्ता लाड़लीजी के मन्दिर की ओर जाता है। यहां परिक्रमा मार्ग अपेक्षाकृत चौड़ा है। उद्यान विभाग की देख रेख की वजह से यहां हरियाली भी बनी हुई है। थोड़ा आगे चलकर दायीं तरफ स्वामी जी का स्थान है। यही पर नारायण भट्टजी ने साधना और तप करके राधाजी के दर्शन किये थे और उन्हें राधाजी की मूर्ति का प्राकट्य किया था। स्वामी को प्रणाम अवश्य करें। स्वामी जी लाड़लीजी मन्दिर के गोस्वामीजनों के पूर्वज हैं। इनका पूरा नाम नारायण दास स्वामी जी था। ये नारायण भट्टजी के शिष्य थे। उन्होंने बाद में लाड़लीजी मन्दिर की सेवा का दायित्व स्वामीजी को सौंप दिया था। पिछले करीब पांच सौ वर्ष से स्वामीजी के वंशज गोस्वामीजन ही लाड़लीजी की सेवा करते आ रहे हैं।
आगे चलकर लाड़लीजी मन्दिर आता है। यह बरसाना का मुख्य मंदिर है। यहां दर्शन के उपरांत मन्दिर के पीछे से होते हुए सिंहपौर तक जाते हैं। सिंहपौर पर गौमाता का मन्दिर है। यहां बगल में ही श्री राधाजी के चरण चिन्ह के भी दर्शन हैं। यहीं ब्रह्मा जी का भी मन्दिर है।
सिंहपौर से नीचे उतरने के लिए सीढियां हैं। यहां से नीचे तक करीब 180 सीढियां है। इनसे नीचे आते समय रास्ते में कई दर्शनीय स्थल हैं। थोड़ा नीचे आने पर हनुमानजी का मन्दिर है। यहीं पर नागाजी की कुटी भी है।
यहां से आगे बढने से राधाजी के दादी-बाबा का मन्दिर है। यहां से सीढियां दो भागों में बंट जाती हैं। दायीं और की सीढियां रंगीली गली में जाती हैं। जहां हर वर्ष विश्वप्रसिद्ध लठामार होली फागुन मास में खेली जाती है। बायीं तरफ की सीढ़ियां सुदामा चौक की तरफ जाती हैं। परिक्रमार्थियों को सुदामा चौक की तरफ जाना चाहिए। इन सीढ़ियों पर आगे साक्षी गोपाल मंदिर, दाऊजी मन्दिर आदि स्थान दर्शनीय हैं।
नीचे पहुंचने पर सुदामा चौक है। यहां एक प्राचीन कुआं दर्शनीय है। यहां सुदामा जी का मन्दिर बना है। यहीं पर पथवारी देवी का मन्दिर भी है। थोड़ा आगे वृषभानु जी मन्दिर है। जिसमें राधाजी की माता कीरत और पिता वृषभानजी के साथ भाई श्रीदामा, राधाजी के विग्रह के दर्शन हैं। इसके सामने अष्टसखी मन्दिर पड़ते हैं। इनसे आगे राधा मोहन मंदिर है। जहां से आगे बाजार की और चलकर लढैती लाल मन्दिर है। इसके आगे चलने पर रंगीली गली चौक, गंगा मन्दिर, गोपाल जी मन्दिर और श्यामा श्याम मन्दिर के दर्शन करते हुए श्रद्धालु मुख्य बाजार में पहुंचते हैं। यह वही स्थान है जहां से परिक्रमा शुरू की थी। यहीं पर परिक्रमा समाप्त करनी चाहिए।
वैसे तो भक्त यहां की परिक्रमा रोज लगाते हैं। हरियाली तीज, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, राधाष्टमी, होली, कार्तिक मास, वैशाख मास में यहां की परिक्रमा का विशेष महत्व है। लेकिन हर माह शुक्ल पक्ष व कृष्णपक्ष की एकादशी को भारी संख्या में आसपास के गांवों से ही नहीं मथुरा वृंदावन के अलावा जनपद के विभिन्न गांवों से श्रद्धालु परिक्रमा करके राधाजी की भक्ति में रमते हैं।
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