लड़कों को धोती-कुर्ता और लड़कियों को साड़ी पहनकर करनी चाहिए पूजा- जैन मुनि

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श्री 1008 भगवान पार्श्वनाथ दिगंबर जैन पंचायती मंदिर में आचार्य श्री 108 निर्भय सागर ने मंगल प्रवचन करते हुए कहा कि फटी हुई जींस पागलपन का प्रतीक है। भारत में जींस की कोई जगह नहीं है। कटे-फटे हुए कपड़े, जीर्ण-शीर्ण कपड़े या पुराने गंदे कपड़े पहनकर मंदिर में आने से दरिद्रता आती है। पैंट-शर्ट पहनकर भी पूजा नहीं करनी चाहिए। इस बारे में ग्रंथ में भी स्प्ष्ट लिखा है।

पुरुषों को धोती-कुर्ता और महिलाओं को साड़ी पहनकर पूजा करनी चाहिए। लोग कहते हैं कि हमारे जैन मुनि नंगे रहते हैं, उन्हें बताना होगा कि मनुष्य तो केवल एक मीटर कपड़े को ढ़ककर चलते हैं। लेकिन हमारे जैन मुनि तो पूरे अनंत आकाश को ओढ़ रखा चलते हैं। जैन मुनियों ने तो सभी दिशाओं और आकाश को ही अपने वस्त्र मान लिया। हमें अपनी भारतीय संस्कृति की महत्ता को समझना होगा। हमें भारतीय परिधान ही पहनने चाहिए। मुनिराज शरीर को नहीं, अपनी आत्मा को देखते हैं। नारी के माथे पर बिंदी और मनुष्य के माथे पर तिलक भी श्रृद्धा का प्रतीक होता है।

आचार्य श्री ने कहा कि मंदिर में जाने या संत मुनियों से मिलने के लिए किसी के बुलावे की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि जिस प्रकार एक बीमार व्यक्ति को अस्पताल के आइसीयू में भर्ती होने पर उसे देखने के लिए रिश्तेदार, परिचित बिना बुलाए जाते हैं। ठीक उसी प्रकार यह सांसारिक दुनिया भी आइसीयू के समान है, जिसमें आपको संतों से मिलने के लिए कोई बुलावे की आवश्यकता नहीं है। सम्यक दर्शन श्रृद्धा से उत्पन्न होता है। श्रृद्धा को सबसे पहले अंगीकार करना होगा। श्रृद्धा के बिना मोक्ष मार्ग नहीं बनता। जैन धर्म उधार नहीं, उद्धार का दर्शन है।

आचार्य श्री ने प्राणी के चरित्र को सूखा नारियल व गीला नारियल का उदाहरण देते हुए विस्तार से समझाया। कहा कि संसार में दो प्रकार के प्राणी हैं – सूखा नारियल और गीला नारियल। सूखा नारियल सम्यक दृष्टि की भांति होता है। मिथ्या दृष्टि गीले नारियल की तरह होती है।

हमें सूखा नारियल की तरह बनना चाहिए। गुरु आत्मा की मैल को साफ करता है। जिनवाणी या जिनालय मन के धोबीघाट हैं। यहां पर मनुष्य आकर मन को धोता है और पवित्र होता है। आज भी मोक्ष है दो प्रकार के होते हैं – भाव व द्रव्य। भाव करते-करते सिद्धालय जा सकते हैं।

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