वृंदावन धाम में एक देवालय ऐसा भी है जो दक्षिण भारत की यात्रा कराता है। न सिर्फ बाहरी तौर पर बल्कि उसकी आत्मा के प्रकाश तक ले जाता है। धर्म, स्थापत्य, संस्कृति… दक्षिण के ये तीनों रंग रंगजी मंदिर में मिलते हैं। है न अद्भुत और अभूतपूर्व । गर्भगृह में वेणु लिए रंगमन्नार और गोदा देवी की अलौकिक छटा है। रामानुज संप्रदाय का यह विशाल और भव्य मंदिर स्थापत्य की दृष्टि से उत्तर भारत में अद्वितीय स्थान रखता है।
आप भी थोड़ा समय निकालकर इस दिव्य देश के दर्शन कर आइए। यहां ऐश्वर्य बरसता है। गोविंद देव मंदिर से थोड़ा आगे प्राचीन रंगजी मंदिर विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ है। द्राविणी वास्तु पद्धति के अनुसार यह मंदिर ऊंचे परकोटों से घिरा है। इसमें ऊंची बुर्जियों वाले मेहराबदार प्रवेश द्वार व कलात्मक शिखरों के विशाल गोपुरम हैं। जयपुर शैली में निर्मित भव्य प्रवेश द्वार हैं। अंदर स्थित सतखना दक्षिण स्थापत्य की अद्भुत कलाकृति है। बाई ओर स्थित वैकुंठ मंडप (पीड़ा नाथ मंदिर) के कलात्मक खंभे ध्यानाकर्षित करते हैं। इन रंगीन खंभों पर समस्त देवताओं की मूर्तियां उकेरी गई हैं। गर्भगृह में क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करते भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति है उनके साथ भूदेवी और श्री देवी के दर्शन हैं। आगे ‘सिंहासन पर उक्त देवताओं की स्वर्ण की चलायमान मूर्तियां विराजमान हैं। भगवान को फुलैरा, खीलाना और हलुवा का भोग लगाया जाता है।
यहां से मुख्य मंदिर की ओर बढ़ते हैं। कलात्मक शिखर वाले पर विशाल घंट लगा है जो अपनी ध्वनि से वृंदावन के अधिकांश को समय की सूचना देता है। अंदर स्वर्ण गरुड़ स्तंभ है। 60फीट ऊंचा स्तंभ 24 फीट नीचे जमीन में गढ़ा हुआ है। यहां प्रतिदिन से दिक्पालों का पूजन होता है। कलात्मक खंभों से निर्मित जगमोहन की छटा निराली है। ढलती सांझ में शहनाई के सुरों के बीच श्रद्धलु रंगविमान में गोदारंगमन्नार भगवान के दर्शन पाते हैं। गोदारंगमन भगवान राधाकृष्ण स्वरूप ही हैं। उनके दाहिनी ओर रंगमन्नार अर्धागिनी देवी गोदा (जिन्हें दक्षिण में आंडाल कहा जाता है) हैं। और गरुड़ जी के मूल अर्चा विग्रह हैं। सामने उनके उत्सव विग्रह शयन मूर्ति, बलि प्रदान मूर्ति, सुदर्शन जी, नृत्य गोपाल जी की मूर्तियां सुशोभित हैं।
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