मंदिरों के नगर की यह अनुपम कलाकृति है। श्वेत व गुलाबी रंग के प्रस्तरों का मेल इसमें सादगी भरता है। कारीगरों के छैनी-हथौड़ों ने पत्थरों को मानकों का आकार देकर सुंदर माला बना दी है । मंदिर का प्रवेश द्वार इसा माला से दमक रहा है। गोपेश्वर मार्ग में स्थित प्राचीन राधा गोपाल मंदिर ग्वालियर के राजा जीवाजी राव की अतुलनीय धरोहर है। उन्होंने अपने गुरू ब्रह्मचारी बाबा के लिये इस मंदिर के निर्माण कराया था। इसलिये इसे ब्रह्मचारी जी का मंदिर भी कहते हैं। इसके सथापत्य पर ग्वालियर के रजवाड़ों की छाप साफ नजर आती है।
निंबार्क संप्रदाय से जुड़े मंदिर में सादगी और शांति का वास है। रजवाड़े की बनावट का यह मंदिर ऊंची कुर्सी पर बना है। इसका प्रमुख आकर्षण विशाल सभा मंडप है जिससे नजरें नहीं हटतीं। गर्भगृह की कलात्मक है। ऊपर शिखरनुमा गुंबद व नीचे दीवार पर चंवर ढलाते द्वारपालों की मूर्तियां हैं। गर्भगृह में राधा गोपाल, नृत्य गोपाल व हंस गोपाल विराजित हैं। एक ओर पांचों निंबार्कीय आचार्य हंस, सनक, नारद, निंबार्क व श्री निवास जी के दर्शन हैं। ग्वालियर देव स्थान ट्रस्ट मंदिर का प्रबंध करता है।
ग्वालियर के जीवजी राव सिंधिया ने सन् 1860 में इस मंदिर का निर्माण कराया था। इस स्थान पर सिंधिया के गुरू श्री ब्रह्मचारी निवास करते थे। ब्रह्मचारी बाबा की वाक सिद्ध से प्रभावितहोकर सिंधिया ने यह मंदिर उन्हें अर्पित किया था। राग भोग की व्यवस्था अब भी ग्वालियर स्टेट की तरफ से होती है ।
ब्रह्मचारी बाबा
गिरधारी शरण बाबा जन्म राजस्थान में सवाई माधौपुर के निकट लसोड़ा नामक स्थान पर हुआ था। अपनी साधना के बल पर इनकी ऐसी वाक सिद्धि हो गई कि जिसको कह देते, उसी का काम बन जाता। इनकी कृपा से ग्वालियर के महाराज जीवाजी राव सिंधिया को पुन: राज्य प्राप्त हुआ और राजकुमार माधव का जन्म हुआ। जीवाजी ने पहले वृंदावन में छोटी कुंज का निर्माण कर बाबा के नाम 1200 रूपये की वार्षिक जागीदार का पाट्टा कर दिया। गुरू की प्रेरणा से उनके पुत्र माधवराज ने बरसाने में कुशल बिहारी व मथुरा-वृंदावन मार्ग पर राधा माधव मंदिर का निर्माण कराया था।
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