
यूनिक समय, नई दिल्ली। भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश, संजीव खन्ना, 13 मई 2025 को सेवानिवृत्त हो गए। मात्र छह महीने का कार्यकाल होने के बावजूद, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के भीतर पारदर्शिता, जवाबदेही और न्यायिक अनुशासन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनके कार्यकाल का मूल मंत्र रहा — “बातें कम, काम ज़्यादा”, जिसे उन्होंने अपने हर निर्णय और कार्य से साबित भी किया।
न्यायमूर्ति खन्ना ने अपने प्रशासनिक फैसलों में ईमानदारी और सख्ती का परिचय दिया। दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आवास पर जले हुए नकदी की बरामदगी के मामले में उन्होंने त्वरित और पारदर्शी कार्रवाई की। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर पूरे मामले की जानकारी सार्वजनिक की गई, साथ ही तीन न्यायाधीशों की समिति गठित कर जांच कराई गई। आरोपों की पुष्टि होने के बाद वर्मा को इस्तीफा देने को कहा गया, और उनके इनकार पर रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी गई ताकि संसद में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जा सके।
चीफ जस्टिस खन्ना के कार्यकाल की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीशों की संपत्ति का सार्वजनिक खुलासा रहा। 1 अप्रैल 2025 को फुल कोर्ट बैठक में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित हुआ कि सभी न्यायाधीश अब अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करेंगे — यह निर्णय भविष्य में भी प्रभावी रहेगा। इसके अलावा, कॉलेजियम की सिफारिशों में पारदर्शिता लाते हुए, उन्होंने पिछले तीन वर्षों की नामांकनों की सूची सार्वजनिक की।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना का कार्यकाल भले ही अल्पकालिक रहा हो, लेकिन उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की कार्यशैली में अनुशासन, पारदर्शिता और न्यायिक निष्पक्षता का नया अध्याय जोड़ा। बिना किसी बड़े सार्वजनिक बयान या विवाद में उलझे, उन्होंने अपने निर्णयों के जरिए एक दृढ़ और निर्भीक नेतृत्व का उदाहरण पेश किया। भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में उनका कार्यकाल एक सकारात्मक बदलाव के रूप में याद किया जाएगा।
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