नोएडा
महामारी से संघर्ष के सबसे ज्यादा खतरनाक हालात उन बच्चों के सामने खड़े हो गए हैं जिन्होंने इस दौर में अपने पैरंट्स खो दिए हैं और रिश्तेदारों के साथ हैं। वहीं कुछ ऐसे बच्चे हैं जिन्होंने मां-बाप में से किसी एक को खो दिया है। अब उनके सामने स्कूल फीस देने से लेकर रूटीन के खर्चों की जिम्मेदारी उठाने का संकट खड़ा हो गया है।
नोएडा प्रशासन के रेकॉर्ड के अनुसार जिले में अभी तक ऐसे 60 बच्चे सामने आए हैं जिन्होंने कोरोना में अपने पैरंट्स खो दिए। 6 बच्चों के माता-पिता दोनों की कोविड की वजह से मौत हो गई और 54 ऐसे हैं जिन्होंने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है। इन 54 में भी ज्यादातर बच्चे ऐसे हैं जिनके पिता की मौत हुई हैं और मां हाउसवाइफ है।
पब्लिक स्कूलों में पढ़ रहे हैं काफी बच्चे
इन 60 बच्चों में से करीब 40-45 ऐसे हैं जो शहर के बड़े पब्लिक स्कूलों में पढ़ रहे हैं। ऐसे बच्चों की संख्या जिला प्रशासन के रेकॉर्ड में लगातार बढ़ रही है। सप्ताह भर पहले ऐसे करीब 40 बच्चे थे जोकि अब 60 हो गए हैं। अनुमान है कि ये संख्या अगले 8-10 दिन में 100 से ज्यादा हो जाएगी। पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले इन बच्चों की महंगी फीस कहां से जाएगी। सरकारी स्कूलों में जाएंगे तो इनको पढ़ाई का वो स्टैंडर्ड नहीं मिल पाएगा जो वहां था।
पिता को पहले खोया अब मां भी छोड़ गई
फेस-2 में रहने वाले दो भाई एक 12 साल का है और एक 15 का। पिता पहले से ही नहीं थे और मां की अब कोविड में मौत हो गई है। अभी दादा-दादी कुछ समय के लिए आए हुए हैं लेकिन दोनों इतने बुजुर्ग हैं कि बच्चों की जिम्मेदारी उठाने की स्थिति में नहीं हैं।
रिश्तेदार दे रहे खाना
ग्रेटर नोएडा के बीटा में रह रहे 8 और 10 साल के दोनों भाई बहन अब पूरी तरह अनाथ हो गए है। पिता अच्छी कंपनी में काम करते थे लेकिन अब मां-बाप दोनों के जाने से खाना भी आसपास वाले व रिश्तेदार खिला रहे हैं।
10 और 3 साल के बच्चों ने खोए माता-पिता
ग्रेटर नोएडा में ही रह रहे एक 10 साल का बच्चा और दूसरा 3 साल का बच्चा दोनों अनाथ हो गए हैं। फिलहाल चाचा के पास हैं। जिला प्रशासन की टीम इनसे हाल ही में मिली है।
केंद्र सरकार ने पीएम केयर फंड से 10 लाख रुपये हरेक बच्चे को देने की घोषणा की है। साथ ही केंद्रीय विद्यालयों में व अन्य स्कूलों में भी पढ़ाई की मदद करने की घोषणा की है। प्रदेश सरकार भी अपने स्तर से ऐसे बच्चों की मदद के लिए घोषणाएं कर रही हैं। वहीं इन बच्चों की जिम्मेदारी संस्थाओं को देने की भी प्रदेश स्तर पर चर्चा है लेकिन संस्थाओं के भरोसे इन बच्चों का जीवन कितना सुरक्षित है यह अपने आप में बड़ी चुनौती होगी।
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