रेप पर मौत की सजा कानून लागू

कैबिनेट के अध्यादेश को मिली राष्ट्रपति की मंजूरी

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के मामलों में दोषी व्यक्तियों को मृत्युदंड तक की सजा देने संबंधी अध्यादेश को आज अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। केंद्रीय कैबिनेट ने कल उस अध्यादेश को अपनी स्वीकृति दी थी जिसके तहत 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार करने के दोषी ठहराये गये व्यक्ति के लिये मृत्युदंड की सजा सुनाए जाने की अदालत को इजाजत दी गई है।

गजट अधिसूचना में कहा गया है, ”संसद का सत्र अभी नहीं चल रहा है और राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट हैं कि जो परिस्थितियां हैं उनमें यह आवश्यक था कि वह तत्काल कदम उठाएं”। इसके अनुसार संविधान के अनुच्छेद 123 के उपखंड (1) में दी गई शक्तियों का उपयोग करते हुए राष्ट्रपति ने इस अध्यादेश को मंजूरी दी है।

आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2018 के अनुसार ऐसे मामलों से निपटने के लिये नयी त्वरित अदालतें गठित की जाएंगी और सभी पुलिस थानों एवं अस्पतालों को बलात्कार मामलों की जांच के लिए विशेष फॉरेंसिक किट उपलब्ध करायी जाएगी।

अध्यादेश का हवाला देते हुए अधिकारियों ने बताया कि इसमें विशेषकर 16 एवं 12 साल से कम उम्र की लड़कियों से बलात्कार के मामलों में दोषियों के लिये सख्त सजा की अनुमति है। 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा देने की बात इस अध्यादेश में कही गई है।

अध्यादेश के मुताबिक महिलाओं से बलात्कार मामले में न्यूनतम सजा सात साल से बढ़ा कर 10 साल सश्रम कारावास की गई । इसे अपराध की प्रवृत्ति को देखते हुए उम्रकैद तक भी बढ़ाया जा सकता है। 16 साल से कम उम्र की लड़कियों से सामूहिक बलात्कार के दोषी के लिये उम्रकैद की सजा का प्रावधान बरकरार रहेगा।

इस अध्यादेश के मुताबिक 16 साल से कम उम्र की लड़कियों के बलात्कार के मामले में न्यूनतम सजा 10 साल से बढ़ाकर 20 साल की गई और अपराध की प्रवृत्ति के आधार पर इसे बढ़ाकर जीवनपर्यंत कारावास की सजा भी किया जा सकता है। यानी दोषी को मृत्यु होने तक जेल की सजा काटनी होगी।

अधिकारी ने बताया कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), साक्ष्य अधिनियम, आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और यौन अपराधों से बाल सुरक्षा (पोक्सो) अधिनियम को अब संशोधित माना जायेगा। अध्यादेश में मामले की त्वरित जांच एवं सुनवाई की भी व्यवस्था है।

अधिकारियों ने बताया कि बलात्कार के सभी मामलों में सुनवाई पूरी करने की समय सीमा दो माह होगी। साथ ही, 16 साल से कम उम्र की लड़कियों से बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को अंतरिम जमानत नहीं मिल सकेगी। इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि 16 साल से कम उम्र की लड़की के साथ बलात्कार के मामलों में जमानत आवेदनों पर फैसला करने से पहले अदालत को सरकारी वकील और पीड़िता के प्रतिनिधि को 15 दिनों का नोटिस देना होगा।

एक अधिकारी के मुताबिक, बलात्कार के मामलों में सख्त सजा सुनिश्चित करने के लिए न्यायपालिका की शक्तियां बढ़ाने के साथ ही कैबिनेट ने कई दूसरे कदमों को भी मंजूरी दी है। इनमें राज्यों और संबंधित उच्च न्यायालय के साथ विचार-विमर्श करके त्वरित अदालतों की स्थापना शामिल हैं।

आपको बता दें कि उन्नाव गैंगरेप और कठुआ में बच्ची से दुर्दांत दुष्कर्म व हत्या के बाद उपजे व्यापक जनाक्रोश के मद्देनजर सरकार ने शनिवार को 12 साल तक की बच्ची से दुष्कर्म करने वाले दोषियों को मौत की सजा को मंजूरी दे दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट की हुई बैठक में संबंधित अध्यादेश पर मुहर लगाई गई।

आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश, 2018 में आईपीसी और साक्ष्य अधिनियम कानून, आपराधिक कानून प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) तथा पॉक्सो (बच्चों को यौन अपराधों से संरक्षण कानून) में संशोधन कर ऐसे अपराध के दोषी को मौत की सजा से दंडित करने के नए प्रावधान जोड़े गए हैं।

अध्यादेश के अहम प्रावधान

बच्चियों से दुष्कर्म के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष फास्ट ट्रैक अदालतें गठित की जाएंगी
मामलों में पीड़ितों का पक्ष रखने के लिए राज्यों में विशेष लोक अभियोजकों के नए पद सृजित होंगे
वैज्ञानिक जांच के लिए सभी पुलिस थानों और अस्पतालों में विशेष फॉरेंसिक किट मुहैया कराई जाएंगी
-रेप की जांच को समर्पित पुलिस बल होगा, जो समय सीमा में जांच कर आरोप पत्र अदालत में पेश करेगा
क्राइम रिकार्ड ब्यूरो यौन अपराधियों का डेटा तैयार करेगा, इसे राज्यों से साझा किया जाएगा
पीड़ितों की सहायता के लिए देश के सभी जिलों में एकल खिड़की बनाया जाएगा
पॉक्सो क्या है

14 नवंबर 2012 को ‘द प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज (पॉक्सो) एक्ट लागू हुआ।
18 साल से कम उम्र के बच्चों व किशोरों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए कानूनी आधार प्रदान करता है।
पहली बार कानून में यौन उत्पीड़न के विभिन्न स्वरूपों को परिभाषित किया गया। बच्चों की कस्टडी के दौरान पुलिस व कर्मचारियों की ओर से किए गए उत्पीड़न के लिए भी सख्त प्रावधान किए गए।
क्यों पड़ी जरूरत

15 मिनट पर एक बच्चा देश में यौन अपराध का शिकार होता है
500 फीसदी इजाफा हुआ बच्चों के खिलाफ अपराध में गत एक दशक में
50% मामले केवल उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में दर्ज
तुरंत एफआईआर, विशेष अदालतों में सुनवाई

घटना की सूचना मिलते ही स्थानीय पुलिस या बाल पुलिस प्रकोष्ठ के अधिकारी मामले को दर्ज करेंगे। 24 घंटे के भीतर इसकी जानकारी बाल कल्याण समिति, विशेष अदालत को देनी होती है।
किसी भी व्यक्ति, होटल, मीडिया को बाल पोर्नोग्राफी की जानकारी होने पर उसकी सूचना पुलिस को देनी होगी। ऐसा नहीं करने पर उसे भी छह महीने की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकता है। गलत सूचना देने पर भी यही सजा।
पीड़ित के मनपसंद जगह पर पुलिस की महिला अधिकारी सादे कपड़े में बयान दर्ज करेगी। इस दौरान उसके माता-पिता या भरोसेमंद साथ रहेंगे।
-पॉक्सो कानून के तहत दर्ज मामलों की सुनवाई राज्य सरकार की अनुशंसा पर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की ओर से गठित विशेष अदालत में होगी। राज्य सरकार विशेष अभियोजकों की भी नियुक्ति कर सकती है।
बच्चों की काउंसलिंग की व्यवस्था
-कानून की 39वीं धारा के तहत राज्य सरकार न्यायिक प्रक्रिया के दौरान बच्चों की मदद करने के लिए एनजीओ, पेशेवरों और विशेषज्ञों के लिए दिशा निर्देश तैयार कर सकती है।

40वें अनुच्छेद के तहत नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट (एनसीपीसीआर) और राज्यों के आयोग को प्रावधनों के क्रियान्वयन की निगरानी के लिए अधिकृत करता है।
सजा

दुष्कर्म का दोषी पाए जाने पर न्यूनतम सात 10 साल कैद और अधिकतम उम्रकैद के साथ जुर्माना
बाल पोनोग्राफी के दोषी पाए जाने पर पांच साल कैद, अपराध दोहराने पर सात साल की कैद
यौन उत्पीड़न (दुष्कर्म नहीं) करने पर तीन साल जेल, इसके बढ़ाकर पांच साल तक किया जा सकता
दिल्ली की भयावह तस्वीर

20 फीसदी 5 से 9 वर्ष के बच्चे किसी न किसी यौन उत्पीड़न के शिकार
3 वर्षों में बच्चों के खिलाफ अपराध में 34 फीसदी का हुआ इजाफा
96फीसदी मामलों में अपराध करने वाला परिवार का ही जानकार
76फीसदी लोग भी मानते बच्चों को घर के आसपास ही सबसे अधिक खतरा

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