देसी जायका: जो स्वाद सिकंदरा के लवली समौसे का है वह और कहीं नहीं !

आगरा। आगरा में अल सुबह से खान-पान का दौर शुरू होता है जो देर रात तक चलता रहता है। हर चीज का अलग-अलग समय है। यहां सुबह बेढ़ई-जलेबी तो दोपहर में चटनी के साथ समौसा ज्यादा पसंद किया जाता है। यूं तो शहर में जगह-जगह समौसा मिलता है, लेकिन जो स्वाद सिकंदरा के समौसे का है वह और कहीं नहीं है। सिकंदरा में लवली वाले के समौसे में जो मसाला और पनीर होता है वह तो ला जवाब होता ही है। हरी चटनी भी विशेष रूप से तैयार की जाती है, जिसमें अदरक और खटाई के साथ कुछ विशेष मसाले होते हैं। सिकंदरा चौराहे पर लवली की दुकान ज्यादा पुरानी नहीं है। इसकी शुरुआत 1988 में बेनीराम पहलवान ने की थी। शुद्ध घी से निर्मित यहां की मिठाइयों से ज्यादा समौसा ज्यादा मशहूर हो गया। आज इस दुकान को उनके पुत्र लोकेश उर्फ लवली संभाल रहे हैं। लोकेश बताते हैं कि समौसा मशहूर होने की वजह के पीछे उसमें मसाले के साथ-साथ आलू की क्वालिटी भी होती है। वे कहते हैं आमतौर पर हलवाई घटिया क्वालिटी के आलू का प्रयोग समौसे में करते हैं, लेकिन वे अच्छे आलू के साथ-साथ शुद्ध मसाले और घी का प्रयोग करते हैं। उनका समौसा अन्य की तुलना में मंहगा अवश्य है, लेकिन जो एक बार खा लेता है वह दोबारा जरूर आता है। एक समौसे की कीमत 15 रुपये है। आमतौर पर शहर में 5 से 12 रुपये तक के समौसे मिल जाते हैं। लेकिन यहां देसी घी में तला समौसा जब ग्राहक खाता है तो उसे पूरी संतुष्टि मिलती है। यही वजह है लोग दूर-दूर से यहां समौसा खाने ही नहीं आते उन्हें पैक करा कर भी ले जाते हैं। चौराहे के निकट दुकान होने के कारण दिल्ली-मथुरा जाने वाले यात्री भी सफर में खाने के लिए यहां से समौसे पैक करा कर ले जाते हैं।

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