क्या आप जानते हैं: भारत के वो तीन राष्ट्रपति जो नहीं लेते थे अपनी सैलरी का 70 फीसदी हिस्सा!

नई दिल्ली। देश में इन दिनों प्रधानमंत्री से लेकर मंत्री और सांसद-विधायक कोरोना वायरस संकट के कारण अपनी सैलरी में 30 फीसदी की कटिंग करा रहे हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इस महामारी के मद्देनजर 30 फीसदी वेतन कम लेने का फैसला किया है। क्या आपको मालूम है कि इससे पहले भी हमारे तीन राष्ट्रपति ऐसे हुए हैं जो अपने वेतन से केवल 25 फीसदी राशि ही लेते थे।

इसमें पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद हैं. वो देश के पहले राष्ट्रपति थे। आजादी की लड़ाई में कूदने से पहले डॉ. राजेंद्र प्रसाद पटना के महंगे वकीलों में थे लेकिन जब वो आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के साथ आए तो उनका पूरा जीवन ही बदल गया। उन्होंने राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए अपनी साधारण जिंदगी और मितव्ययिता के तमाम उदाहरण स्थापित किए.

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जब राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बने
1950 में जब वो देश के पहले राष्ट्रपति बने। तो उन्हें लंंबे-चौड़े उस वायसराय हाउस में जाने में हिचकिचाहट थी, जो उन दिनों सबसे लंबा-चौड़ा और बेहतरीन सरकारी आवास था। आज भी भारत का राष्ट्रपति भवन दुनिया के सबसे बड़े परिसर वाले प्रेसीडेंट हाउस में है। राजेंद्र प्रसाद के इस भवन में प्रवेश करने के साथ ही इसका नाम बदलकर राष्ट्रपति भवन हो गया।

वेतन का केवल 25 फीसदी हिस्सा लेते थे
तब राष्ट्रपति का वेतन 10000 रुपए महीना होता था. राजेंद्र प्रसाद ने इसमें केवल 50 फीसदी वेतन लेना स्वीकार किया। शेष राशि वो सरकारी निधि में दे देते थे। राष्ट्रपति के तौर पर अपने बाद के बरसों में तो उन्होंने अपने वेतन में से और भी कटौती करानी शुरू कर दी। तब वो राष्ट्रपति को मिलने वाले वेतन से केवल 25 फीसदी राशि लेते थे।

व्यक्तिगत स्टाफ भी केवल एक व्यक्ति का था
राजेंद्र प्रसाद की साधारण जीवनशैली के बहुत से किस्से प्रचलित हैं. वो राष्ट्रपति भवन में जब तक रहे तब तक उन्होंने अपने लिए व्यक्तिगत स्टाफ के तौर पर केवल एक व्यक्ति को रखा। वो हमेशा जमीन पर बैठकर खाते थे। उन्होंने राष्ट्रपति भवन के किचन को भारतीय परंपरागत भोजन के नाम किया। उनका खाना कोई खानसामा नहीं बल्कि उनकी पत्नी ही बनाती थीं।

तोहफे नहीं लेते थे
इसके अलावा जब वो राष्ट्रपति रहे तो उनकी पोतियों की शादी हुई। उसमें उन्होंने सख्ती से कोई भी उपहार लेने से मना कर दिया। जो लोग उपहार लेकर आए, उन्हें विनम्रता से उपहार नहीं देने को कहा गया। पोतियों की शादी में उन्होंने खुद हाथ से साड़ी बनाकर उन्हें दी। जब वो इस पद से रिटायर हुए तो उन्होंने पटना लौटकर साधारण जिंदगी ही बिताई।

नीलम संजीव रेड्डी वेतन का केवल 30 फीसदी हिस्सा लेते थे. उन्होंने ताजिंदगी साधारण तरीके से गुजारी

दूसरे राष्ट्रपति थे नीलम संजीव रेड्डी
दूसरे राष्ट्रपति थे नीलम संजीव रेड्डी. वो आंध्र प्रदेश के थे. जब देश में आंध्र प्रदेश को अलग राज्य बनाया गया तो वो उसके पहले मुख्यमंत्री बने. यद्यपि वो अमीर और जमींदार परिवार से ताल्लुक रखते थे लेकिन बाद में उन्होंने अपनी 60 एकड़ जमीन सरकार को दे दी।

बहुत किफायत के साथ जिंदगी बिताते थे
नीलम संजीव रेड्डी 1977 में देश के छठे राष्ट्रपति बने. उनके बारे में कहा जाता रहा कि जब वो राष्ट्रपति भवन में गए तो बहुत कम सामान के साथ गए. जब 1982 में उन्होंने अपना कार्यकाल खत्म किया तो उनके पास वापस लेकर जाने के लिए बहुत नाममात्र के सामान ही थे. वो भी ऐसे राष्ट्रपति माने जाते थे, जो बहुत किफायत से जीवन बिताते थे।

70 फीसदी सैलरी कट करा देते थे
नीलम संजीव रेड्डी राष्ट्रपति के तौर पर मिलने वाले वेतन में केवल 30 फीसदी हिस्सा ही लेते थे. बाकि 70 फीसदी राशि सरकारी निधि में दे देते थे.

डॉ. राधाकृष्णन बहुत बड़े दार्शनिक और शिक्षाविद थे. उन्होंने अपनी सादगी भरी जिंदगी से सभी का दिल जीता. वो भी अपने वेतन का बड़ा हिस्सा पीएम नेशनल रिलीफ फंड में दे देते थे

राधाकृष्णन भी दे देते थे वेतन का बड़ा हिस्सा
इसी तरह भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने डॉ. राधाकृष्णन भी अपने वेतन का 75 फीसदी हिस्सा प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में दे देते थे. इसके बाद इनकम टैक्स कटने के बाद उन्हें 1900 रुपए ही मिलते थे. वो 1962 से लेकर 1967 तक राष्ट्रपति रहे. वो देश के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण समय था. उसी दौरान भारत को दो बड़े युद्धों (चीन और पाकिस्तान के खिलाफ) का सामना करना पड़ा.

राधाकृष्णन भी अपनी साधारण जीवनशैली के लिए जाने जाते थे. विदेशी दौरों में वो कभी अपने किसी रिश्तेदार को साथ लेकर नहीं गए. राष्ट्रपति भवन में बहुत किफायत से रहे. यही नहीं जब वो उप राष्ट्रपति थे तो उनका स्टाफ केवल दो लोगों का होता था. तब वो सरकारी कार की बजाए अपनी व्यक्तिगत कार का ही इस्तेमाल करते थे.

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