जानिए: क्या है 35A जिसे हटाने का वादा बीजेपी ने घोषणा पत्र में किया है

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने वर्ष 2019 के आम चुनावों से पहली जारी अपने घोषणापत्र में 35ए हटाने का वादा किया है. पिछले तीन चार सालों में कई बार कश्मीर के संदर्भ में 35ए का जिक्र होता रहता है. ये विवादास्पद मुद्दा सुर्खियां बनता रहा है. फिलहाल ये मामला सुप्रीम कोर्ट में भी विचारार्थ है.

आर्टिकल 35A जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को विशेष अधिकार देता है. जम्मू-कश्मीर में इस आर्टिकल में किसी भी तरह के बदलाव का विरोध हो रहा है. हालिया चुनाव में भी जम्मू-कश्मीर के प्रमुख राजनीतिक दलों ने 35ए को एक बड़ा मुद्दा बनाया हुआ है. वो इसे हटाने के किसी भी कदम के खिलाफ हैं.

क्या है आर्टिकल 35A?
35A भारतीय संविधान का वह अनुच्छेद है जो जम्मू-कश्मीर विधानसभा को लेकर प्रावधान करता है. यह राज्य को यह तय करने की शक्ति देता है कि जम्मू का स्थाई नागरिक कौन है? वैसे 1956 में बने जम्मू कश्मीर के संविधान में स्थायी नागरिकता को परिभाषित किया गया था.

यह आर्टिकल जम्मू-कश्मीर में ऐसे लोगों को कोई भी प्रॉपर्टी खरीदने या उसका मालिक बनने से रोकता है जो वहां के स्थायी नागरिक नहीं हैं.

आर्टिकल 35A जम्मू-कश्मीर के अस्थाई नागरिकों को वहां सरकारी नौकरियों और सरकारी सहायता से भी वंचित करता है.

अनुच्छेद 35A के मुताबिक अगर जम्मू कश्मीर की कोई लड़की राज्य के बाहर के किसी लड़के से शादी कर लेती है तो उसके जम्मू की प्रॉपर्टी से जुड़े सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं. साथ जम्मू-कश्मीर की प्रॉपर्टी से जुड़े उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं.

किसे माना जाता है जम्मू-कश्मीर का स्थाई नागरिक?
वैसे तो जम्मू कश्मीर के संविधान के मुताबिक, वहां का स्थायी नागरिक वह है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 सालों से राज्य में रह रहा हो, और उसने वहां संपत्ति हासिल की हो.

हरि सिंह के जारी किए नोटिस के अनुसार जम्मू-कश्मीर का स्थाई नागरिक वह है जो जम्मू-कश्मीर में ही 1911 या उससे पहले पैदा हुआ और रहा हो. या जिन्होंने कानूनी तौर पर राज्य में प्रॉपर्टी खरीद रखी है.

जम्मू-कश्मीर का गैर स्थायी नागरिक लोकसभा चुनावों में तो वोट दे सकता है, लेकिन वो राज्य के स्थानीय निकाय यानी पंचायत चुनावों में वोट नहीं दे सकता.

आर्टिकल 35A अस्तित्व में कैसे आया?
महाराजा हरि सिंह जो कि आजादी से पहले जम्मू-कश्मीर के राजा हुआ करते थे, उन्होंने दो नोटिस जारी करके यह बताया था कि उनके राज्य की प्रजा किसे-किसे माना जायेगा? ये दो नोटिस उन्होंने 1927 और 1933 में जारी किये थे. इन दोनों में बताया गया था कि कौन लोग जम्मू-कश्मीर के नागरिक होंगे?

फिर जब भारत की आजादी के बाद अक्टूबर, 1947 में महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये. तो इसके साथ ही भारतीय संविधान में आर्टिकल 370 को जुड़ गया. यह आर्टिकल जम्मू और कश्मीर को विशेषाधिकार देता था. इसके बाद केंद्र सरकार की शक्तियां जम्मू-कश्मीर में सीमित हो गई. अब केंद्र, जम्मू-कश्मीर में बस रक्षा, विदेश संबंध और संचार के मामलों में ही दखल रखता था.

इसके बाद 14 मई, 1954 को राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया. इस आदेश के जरिए संविधान में एक नया अनुच्छेद 35A जोड़ दिया गया. संविधान की धारा 370 के तहत यह अधिकार दिया गया था.

राष्ट्रपति का यह आदेश 1952 में जवाहरलाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला के बीच हुए ‘दिल्ली समझौते’ के बाद आया था. दिल्ली समझौते के जरिए जम्मू-कश्मीर राज्य के नागरिकों को भारतीय नागरिकता प्रदान की गई थी. 1956 में जम्मू-कश्मीर का संविधान लागू होने के साथ ही इस व्यवस्था को लागू भी कर दिया गया.

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सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता कौन हैं और उनकी मांगें क्या हैं?
वर्ष 2014 में एक एनजीओ ने अर्जी दाखिल कर इसको समाप्त करने की मांग की. इस NGO, जिसका नाम वी द सिटिजन्स (We The Citizens) है ने आर्टिकल 35A की वैधता को चुनौती दी है. इसका आरोप है कि दूसरी चीजों के साथ ही यह आर्टिकल भारत की एकता की भावना के खिलाफ है. और यह भारतीय नागरिकों की एक श्रेणी के अंदर ही एक श्रेणी बना देता है.

साथ ही दूसरे राज्यों से आने वाले भारतीय नागरिकों को जम्मू-कश्मीर में प्रॉपर्टी खरीदने और रोजगार पाने से रोकता है. यह मौलिक अधिकारों का हनन करता है.

दूसरी याचिकाकर्ता चारूवालिया खन्ना ने इस आधार पर इस आर्टिकल को चुनौती दी है कि यह महिलाओं के राइट टू प्रॉपर्टी को अनदेखा करता है. क्योंकि अगर वह एक ऐसे इंसान से शादी कर लेती है जो कि कश्मीरी नागरिक नहीं है तो

साथ ही संसद के पास ही संविधान में बदलाव की क्षमता होती है. जबकि राष्ट्रपति के आदेश से आर्टिकल 35A को संविधान में शामिल कर लिया गया था. और इसमें संसद की अनदेखी की गई है.

घाटी के लोगों को क्या डर है?
एनडीटीवी के मुताबिक खूफिया एजेंसियों के सूत्रों के जरिए पता चला है कि अगर सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 35A के खिलाफ निर्णय देता है तो कश्मीर में पुलिस ‘विद्रोह’ भी हो सकता है. और बड़े स्तर पर अशांति फैल सकती है.

साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि अगर आर्टिकल 35A खत्म हो जाता है तो बड़े स्तर पर घाटी की मुस्लिम बहुल जनसंख्या में बदलाव आ सकते हैं.

साथ ही यह कई मामलों में जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता को भी कम कर देगा.

इससे पहले भी 35A पर सुनवाई के दौरान नेशनल कांफ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला और राज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने चेतावनी भरे बयान दिये थे. महबूबा मुफ्ती ने तो यहां तक कह दिया था कि अगर आर्टिकल 35A के साथ खिलवाड़ किया जाता है तो कोई भी तिरंगा उठाने वाला नहीं बचेगा.

साथ ही प्राइवेट सेक्टर निवेश भी इन कानूनों के चलते प्रभावित होता है.

अनुच्छेद 35A की वजह से जम्मू कश्मीर में पिछले कई दशकों से रहने वाले बहुत से लोगों को कोई भी अधिकार नहीं मिला है. 1947 में पश्चिमी पाकिस्तान को छोड़कर जम्मू में बसे हिंदू परिवार आज तक शरणार्थी हैं.

एक आंकड़े के मुताबिक 1947 में जम्मू में 5 हज़ार 764 परिवार आकर बसे थे. इन परिवारों को आज तक कोई नागरिक अधिकार हासिल नहीं हैं. अनुच्छेद 35A की वजह से ये लोग सरकारी नौकरी भी हासिल नहीं कर सकते. और ना ही इन लोगों के बच्चे यहां व्यावसायिक शिक्षा देने वाले सरकारी संस्थानों में दाखिला ले सकते हैं.

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