नई दिल्ली। प्रशासन के स्तर पर सांकेतिक भाषा को बढ़ावा देने और मूक-बधिर लोगों को पहचान दिलाने के उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट में पहली बार दुभाषिए के माध्यम से सांकेतिक भाषा में सुनवाई की गई। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में मूक-बधिर वकील ने सांकेतिक भाषा में केस की पैरवी की।
सुप्रीम कोर्ट में हाल ही में मूक-बधिर वकील द्वारा सांकेतिक भाषा में पैरवी का मामला सामने आया है। यह अपनी तरह का पहला उदाहरण है। मूक-बधिर वकील सारा सनी को शुरू में बाधाओं का सामना करना पड़ा। क्योंकि वर्चुअल कार्रवाई वाले कंट्रोल रूम ने पहले उन्हें स्क्रीन स्पेस देने से इनकार कर दिया। बाद में सीजेआई ने स्क्रीन स्पेस देने के निर्देश दिए और मूक-बधिर वकील के दुभाषिया सौरभ रॉय चौधरी को स्क्रीन स्पेस दिया गया। वे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ के सामने अपनी दलीलें पेश करते दिखे।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के निर्देश पर एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड संचिता ऐन ने सारा सनी की मौजूदगी सुनिश्चित की। सीजेआई ने पिछले साल ही दिव्यांग व्यक्तियों के सामने आने वाली चुनौतियों को समझने के लिए सुप्रीम कोर्ट परिसर में ऑडिट कराया था। यह कानूनी प्रणाली तक ऐसे लोगों की पहुंच और न्याय के लिए समान अवसर की उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। जानकारी के लिए बता दें कि सीजेआई ने दो दिव्यांग लड़कियों को गोद भी लिया है, जिससे यह पता चलता है कि वे दिव्यांगों के लिए कितने मानवीय विचार रखते हैं। संचिता ऐन ने कहा कि यह भारतीय कानूनी प्रणाली के भीतर वास्तविक समानता के महत्व को भी दर्शाता है।
हाल ही में दृष्टिबाधित लोगों के लिए कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र को भी ब्रेल लिपि में जारी किया गया था। ये पहल मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के प्रयासों से ही संभव हुआ। उन्होंने दिव्यांग व्यक्तियों के सामने आने वाली कठिनाइयों को बेहतर ढंग से समझने के लिए सुप्रीम कोर्ट समिति का भी गठन किया है।
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