मथुरा होली के रंगों में सराबोर है। चारों ओर सतरंगी छटा बिखर रही है। बरसाना, नंदगांव से होते हुए लठमार होली गुरुवार को गोकुल में छड़ीमार होली में परिवर्तित हो गई। यहां सबसे पहले कान्हा के बाल स्वरूप को पालकी में बैठाकर शोभायात्रा निकाली गई। इसके बाद सजी-धजी गोपियों ने बाल गोपाल के साथ छड़ी मार होली खेली।
रसिया होली के गीतों के बोल बाबा नंद के द्वार मची है होली गाकर वातावरण को भक्तिमय मना दिया। महिलाएं और युवतियां नृत्य करने पर मजबूर हो रहे थे। सेवायतों के द्वारा श्रद्धालुओं पर ठाकुरजी का प्रसादी रंग और गुलाल डाला। रंग के इस आनंद में देश और विदेश से आये श्रद्धालु सराबोर हो होली के गीतों पर झूम रहे थे।
क्यों मनाई जाती है छड़ीमार होली?
ब्रज में लट्ठमार होली के अलावा कई तरह की होली का आयोजन किया जाता है। वहीं गोकुल में छड़ीमार होली का आयोजन होता है। दरअसल, भगवान कृष्ण का बचपन गोकुल में ही बीता था। मान्यता है छड़ीमार होली के दिन बाल कृष्ण के साथ गोपियां छड़ी हाथ में लेकर होली खेलती हैं, क्योंकि भगवान बालस्वरूप थे। इस भावमयी परंपरा के अनुरूप कहीं उनको चोट न लग जाए, इसलिए गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाती है।
जैसा कि सब लोग जानते होंगे कि बचपन में कान्हा बड़े चंचल हुआ करते थे। गोपियों को परेशान करने में उन्हें बड़ा आनंद मिलता था। इसलिए गोकुल में उनके बालस्वरूप को अधिक महत्व दिया जाता है। इसलिए नटखट कान्हा की याद में हर साल छड़ीमार होली का आयोजन किया जाता है। इस दिन कान्हा की पालकी और पीछे सजी-धजी गोपियां हाथों में छड़ी लेकर चलती हैं।
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