संभवतः इसी वजह से सिंधिया की पत्नी प्रियदर्शिनी राजे पूरी कमान संभाले हुए हैं। खुद ज्योतिरादित्य बहुत सक्रिय हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि इससे पहले चुनाव को लेकर सिंधिया परिवार में इतनी सक्रियता कभी नहीं दिखी। ज्योतिरादित्य और उनकी पत्नी 200 से ज्यादा चुनावी सभाएं कर चुके हैं। प्रचार के दौरान प्रियदर्शिनी ने अपने पति से ज्यादा समय दिया। ज्योतिरादित्य की राह लोकेंद्र सिंह धाकड़ ने कुछ आसान की है। वे इस सीट पर बसपा से प्रत्याशी थे, लेकिन ऐन पहले कांग्रेस को समर्थन देते हुए बैठ गए। इससे नाराज बसपा सुप्रीमो मायावती ने मध्यप्रदेश सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी तक दे दी थी।
सिंधिया नाम ही काफी
सिंधिया परिवार ने गुना सीट से ही चुनाव लड़ने की शुरुआत की। अब तो कहा जाता है कि जिसके नाम के पीछे सिंधिया होगा, वही जीतेगा, पार्टी चाहे जो हो। विजयाराजे, माधवराव सिंधिया और ज्योतिरादित्य ने अपना पहला चुनाव यहीं से लड़ा। 1957 में विजयाराजे कांग्रेस से जीतीं तो उनके बेटे माधवराव 1971 में पहली बार जनसंघ के टिकट पर लड़े और जीते। वर्ष 2002 में माधवराव के निधन के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य ने सियासी पारी की शुरुआत 2002 में हुए उपचुनाव में इसी सीट से की। तब से लगातार जीत रहे हैं। इस सीट से कांग्रेस 9 बार जीत दर्ज कर चुकी है। भाजपा यहां से तभी जीती जब विजयाराजे सिंधिया उसके टिकट पर लड़ीं।
विधानसभा में भाजपा-कांग्रेस बराबरी पर
गुना संसदीय सीट के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं। इनमें से 4 पर भाजपा तो 4 पर कांग्रेस का कब्जा है।
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