यूनिक समय, गोकुल (मथुरा)। ब्रज में होरी रे रसिया, गोकुल में आनंद भयो, ब्रज में होरी रे रसिया। इस रसिया गायन के साथ प्रसिद्ध छड़ी मार होली में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ पड़े। ठाकुर जी के भव्य डोला में चलते श्रद्धालु व सेवायत प्रांगण में छड़ी होली के दौरान हुरियारों पर लट बरसाती हुरियारिन चल रही थी।
वहीं रंगों में सराबोर हुए श्रद्धालु होली खेलते नजर आ रहे थे। गौरतलब है कि गोकुल में भगवान का बाल स्वरुप होने के कारण होली छड़ी से खेली जाती है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ। उनका बचपन गोकुल बीता। यही कारण है कि यहां की होली पूरे ब्रज से अलग है। भक्ति भाव से भक्त सबसे पहले बाल गोपाल को फूलों से सजी पालकी में बैठाकर नन्द भवन से मुरलीधर घाट ले गए, जहां भगवान बगीचे में भक्तों के साथ होली खेली। छड़ीमार होली के पहले चरण की शुरूआत हुई।
गोकुल में यमुना किनारे स्थित नंद किले के नंद भवन में ठाकुर जी के सामने राजभोग रखा गया। फिर भगवान श्री कृष्ण और बलराम होली खेलने के लिए मुरली घाट को निकले। बाल स्वरूप भगवान के डोला को लेकर सेवायत चल रहे थे। उनके आगे ढोल नगाड़े और शहनाई की धुन पर श्रद्धालु नाचते गाते आगे बढ़ रहे थे। मार्ग में जगह जगह फूलों की वर्षा हुई। दोनों ओर खड़े भक्त अपने ठाकुरजी को नमन कर रहे थे। डोला के पीछे हाथों में हरे बांस की छड़ी लेकर गोपियां चल रही थीं। विभिन्न समुदायों की रसिया टोली गोकुल की कुंज गलियों में रसिया गायन करती हुई निकल रही थीं। नंद भवन से डोला मुरली घाट पहुंचा जहां भगवान के दर्शन के लिए पहले से ही श्रद्धालुओं का हुजूम मौजूद था। भजन कीर्तन, रसिया गायन के बीच छड़ी मार होली की शुरूआत हुई।
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