बलात्कार के आरोपियों को मुठभेड़ में मार गिराने का दावा करने वाली हैदराबाद पुलिस सवालों में घिरती नजर आ रही है. मानवाधिकार आयोग ने भी उसके तरीके पर सवाल उठाए हैं. पुलिस ने जो कहानी गढ़ी है उसमें कई झोल है. पुलिस अपनी बनाई कहानी में ही उलझती दिखाई दे रही है. पुलिस के इस कारनामे पर हालांकि देश भर में उसकी तारीफ हो रही है. फूल भी बरसाए जा रहे हैं. लेकिन ताज्जुब यह है कि कानून बनाने वाले सांसदों ने भी इस त्वरित न्याय की वकालत कर संविधान और कानून पर सवाल खड़े कर डाले हैं. भाजपा सांसद मेनका गांधी ने सही सवाल उठाया. कांग्रेस की राज्यसभा सांसद विपल्व ठाकुर ने भी कानून की बात कही. न्यायिक प्रक्रिया में हमारी जो खामियां हैं, उसे दूर करने की जरूरत है.
लेकिन अगर उस हैदराबाद पुलिस के कसीदे पढ़ें, जब उसने पीड़िता के परिजनों को दो घंटे से ज्यादा समय तक टहलाती रही और पीड़िता को तलाश करने की बजाय कहती रही कि वह कहीं गई होगी, आ जाएगी तो यह पूरी व्यवस्था को हत्यारा बनाने जैसा होगा. यानी हम एक तरह से पुलिस को लाइसेंस दे रहे हैं कि वह किसी के घर में भी घुसे किसी को उठाए और मार डाले. देश की पुलिस के काम करने का जो तरीका है वह तो पहले भी सवालों में रहा है. कई बार तो रसूखदार लोगों को बचाने के लिए बेकसूरों को फंसाने में भी पुलिस का कमाल देखने को मिलता रहा है. इसलिए मुठभेड़ की इस त्वरित न्याय पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
कांग्रेस की राज्यसभा सांसद विप्लव ठाकुर ने हैदराबाद में बलात्कार के आरोपियों के मुठभेड़ में मारे जाने पर पुलिस पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि तेलंगाना पुलिस से कैसे हथियार छीन लिए. पुलिस हमारी इतनी निकम्मी हो गई है कि कोई भी हथियार छीन सकता है. लेकर गए हैं तो उनकी पास फ़ोर्स पूरी नहीं थी, कैसे भाग गए. आरोपियों को हथकड़ी नहीं लगाई थी क्या. पुलिस सवाल के घेरे में है. भागने देने पर मुठभेड़ कर दिया. सजा के हक़ में हूं लेकिन पुलिस जो बता रही है, मेरा मानना है कि कानून को अपना हाथ में नहीं लेना चाहिए था. इस मामले में जांच होनी चाहिए. पुलिस की लापरवाही है भाग रहे थे तो पैर में गोली मारनी चाहिए थी.
पुलिस का दावा है कि आरोपी भागने की कोशिश कर रहे थे और इस दौरान पुलिस की ओर से हुई फायरिंग में सभी आरोपी मारे गए हैं. पुलिस अधिकारियों ने बताया कि मुठभेड़ तड़के करीब पांच बजे हुई. मिली जानकारी के मुताबिक अदालत में चार्जशीट दाखिल करने के बाद पुलिस इन चारों आरोपियों को घटनास्थल पर ले गई थी ताकि ‘सीन ऑफ क्राइम’ (रिक्रिएशन) की पड़ताल की जा सके. लेकिन आरोपियों ने पहले उन पर पत्थर चलाया. फिर नुकीले हथियारों से हमला किया और फिर पुलिसकर्मी का हथियार छीन कर भागने की कोशिश करने लगे. पुलिस अधिकारियों ने बताया कि अगर आरोपी भाग जाते तो बड़ा हंगामा खड़ा हो जाता इसलिए पुलिस के पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था और जवाबी फायरिंग में चारो आरोपी मारे गए.
अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने कहा कि जब महिला के खिलाफ कोई घटना होती है तो पुलिस एक्शन मूड में होती है. तब लोगों के अंदर गुस्सा बढ़ता है. लगता है पुलिस अमानवीय है. हैदराबाद की घटना के कारण देश में उबाल आया, लेकिन मैं कानून को मानने वाली नागरिक हूं. हमें देश में कानून पर भरोसा होना चाहिए. अगर कानूनी प्रक्रिया से मृत्यु दंड दिया जाए तो शायद बेहतर और कड़ा संदेश होगा. जो गंदे इरादे वाले छिपे हैं उनके मन मे कानून का खौफ होगा. अगर कानूनी प्रक्रिया का पालन वक़्त में करें तो, सभ्य समाज वाला देश है, हम चीजों को बेहतर नियंत्रित कर पाएंगे. हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि मैं मुठभेड़ के खिलाफ हूं.
लेकिन नवनीत राणा ने कहा कि जो भी हुआ अच्छा हुआ. इसका अच्छा संदेश जाएगा. भागने की कोशिश करने वाले का मुठभेड़ ही होगा. देश में ऐसा कायदा कानून लाना जरूरी है. एक महीने के भीतर फ़ास्ट ट्रैक में, जिनके साथ ऐसा कुछ हुआ उनको न्याय मिलना चाहिए. जो भी ऐसा करेगा उसको डर लगेगा. आज तो ऐसा है जो भी ऐसा करेगा उन्हें फ्री में दस साल जेल में खाना मिलेगा. अगर ऐसा न्याय मिले तो डर लगेगा. पुलिस को तो अभिनंदन करना चाहिए जिन्होंने ऐसा काम किया है. लेकिन देश में सुबह-सुबह जो हुआ उसने हमारे संविधान को लहुलूहान कर डाला. यह भी संयोग ही है कि आज ही डॉ. भीमराव आंबेडकर का परिनिर्वाण दिवस है. क्योंकि हैदराबाद में जो किया गया वह संविधान के दायरे में नहीं हुआ, वह राजतंत्र के तरह किया गया. मुठभेड़ सही इलाज नहीं है.
सवाल यह है कि पुलिस ने अपनी नाकामी छुपाने के लिए तो ऐसा नहीं किया है. चारों सामान्य परिवार से आते थे. इसलिए मुठभेड़ में मार गिराया गया. रसूख वाले होते तो बच जाते. रसूख वालों को तो पुलिस गिरफ्तार करने के लिए भी कई बार सोचती है. मान लें कि इनमें से एक भी बेकसूर होता तो क्या उसका जीवन लौटा पाएगी पुलिस. सवाल यह भी है कि क्या अपना चेहरा छुपाने या चमकाने के लिए तो इस घटना को अंजाम नहीं दिया गया. पुलिस की थ्योरी पर लोगों को यकीन नहीं है, भले भीड़ उनका जयकारा लगा कर फूल बरसी रही हो लेकिन सवाल तो हैं और इन सवालों का जवाब हैदराबाद पुलिस को देना होगा. (राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों पर सटीक विश्लेशण के लिए पढ़ें और फॉलो करें).
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