यूनिक समय, नई दिल्ली। आज लोहड़ी का त्योहार देशभर में उत्साह के साथ मनाया जाएगा। लोहड़ी का पर्व विशेषरूप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर समेत उत्तर भारत के राज्यों में मनाया जाता है। यह पर्व कड़ाके की सर्दियों के अंत का भी प्रतीक है और आने वाले लंबे दिनों का स्वागत करता है। यह त्योहार किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है।
लोहड़ी लोककथाओं और पारिवारिक परंपराओं में गहराई से जुड़ा हुआ है, इसे दशकों से फसल उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। पारंपरिक रूप से कृषि पर निर्भर परिवारों के लिए लोहड़ी बहुत महत्वपूर्ण पर्व है जो कि फसल के लिए आभार व्यक्त करने का समय दर्शाता है। यह त्योहार अग्नि से भी जुड़ा है, जो गर्मी और समृद्धि का प्रतीक है। लोहड़ी के बाद से सर्दी कम हो जाती है और दिन बड़े होने शुरू हो जाते हैं।
यह त्योहार किसानों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह गेहूं, गन्ना और सरसों आदि रबी की फसलों की कटाई का मौसम होता है। इसके साथ ही यह नए कृषि की शुरुआत का भी प्रतीक होता है। लोहड़ी के पर्व में शाम के समय लोग अलाव जलाकर लोकगीत गाते हैं। इसके अलावा भांगड़ा और गिद्दा जैसे पारंपरिक नृत्य करते हैं और गुड़-रेवड़ी आदि बांटते हैं।
इस दिन लोग दुल्ला भट्टी से जुड़े गीत भी गाते हैं। दुल्ली भट्टी से जुड़ी एक लोक कथा इस पर्व से जुड़ी हुई है। अकबर के शासन काल के समय दुल्ला भट्टी नाम का एक आदमी था, जो पंजाब में रहता था। उस समय कई लड़कियों को अमीर घरानों में बेचा जाता था। ऐसा कहते हैं कि दुल्ला भट्टी ने साहस दिखाकर कई लड़कियों को अमीर सौदागरों से बचाया था। उसने इसके खिलाफ आवाज उठाई और उन लड़कियों का विवाह भी करवाया। इस वजह से दुल्ला भट्टी को पंजाब में नायक की उपाधि दी गई।
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