जानें क्यों: महाशिवरात्रि की रात को सोना नहीं चाहिए

मथुरा। आज महाशिवरात्रि है। इस मौके पर देशभर के मंदिर और शिवालयों में सुबह से ही लोगों की भीड़ लगी हुई है। श्रद्धालू भक्ति-भाव के साथ भगवान शिव शंकर की पूजा-अर्चना में जुटे हैं। वैसे तो साल में 12 शिवरात्रियां होती हैं। हर महीने के कृष्णपक्ष चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। हालांकि फाल्गुन महीने में पड़ने वाली महाशिवरात्रि को सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण माना गया है। इस तिथि में पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के रूप में पूजा जाता है। ज्यादातर लोग यह जानते हैं कि शिवरात्रि पर भगवान शिव की आराधना होती है, लेकिन लोग ये नहीं जानते कि इसका मतलब क्या होता है। आपको बता दें कि पूर्णिमा के एक दिन पहले सबसे अंधेरी रात होती है, जो शिवरात्रि कहलाती है।
साल में 12 से 13 शिवरात्रि होती हैं। लेकिन माघ के महीने में जो शिवरात्रि आती हैं, उसे महा शिवरात्री कहते हैं। इस रात को किसी को भी सोना नहीं चाहिए। महाशिवरात्रि एक सबसे बड़ी और भारत की पवित्र त्योहार रातों में सबसे महत्वपूर्ण है। साल के इस सबसे अंधेरी रात पर शिव की कृपा को मनाया जाता है। इस रात को ग्रहों की स्थिति ऐसी है कि वहां मानव प्रणाली में एक शक्तिशाली ऊर्जा कि प्राकृतिक लहर है। रातभर एक अवगत व ऊर्ध्वाधर स्थिति में जागते रहना शारीरिक और आध्यात्मिक भलाई के लिए काफी फायदेमंद है। इस कारण के लिए यह योग परंपरा में कहा जाता है कि एक व्यक्ति को महाशिवरात्रि की रात को सोना नहीं चाहिए।
मान्यता के मुताबिक इस दिन भगवान शिव की सच्चे मन से अराधना करने से हर कामना पूर्ण होती है। विवाह की बाधाओं के निवारण और आयु रक्षा के लिए इस दिन शिव जी की उपासना अमोघ है। इस दिन व्रत पूजा पाठ मंत्रजाप तथा रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। भगवान शिव को महाशिवरात्रि पर रोली, मौली, साबुत चावल, लौंग, इलायची, सुपारी, जायफल, हल्दी, केसर, पंचमेवा, मौसमी फल, नागकेसर जनेऊ, कमलगट्टा, सप्तधान्य, सफेद मिठाई, नारियल, कुशा, अबीर, चन्दन, गुलाब, इत्र, पंचामृत, कच्चा दूध, बेलपत्र, बेल का फल, गुलाब के फूल, आक धतूरा, भांग, धूप दीप आदि अर्पण करने की मान्यता है। मान्यता है कि जो भी जातक महाशिवरात्रि का व्रत रखते हैं उन्हें नरक से मुक्ति मिलती है। इस व्रत के करने मात्र से ही सभी तरह के पापों से मुक्ति मिलती है।

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