महात्मा बुद्ध (563 ईपू से 483 ईपू) और उनके बौद्ध धर्म का मथुरा से बहुत गहरा संबंध रहा है। जो महात्मा बुद्ध के जीवनकाल से कुषाणकाल तक अक्षुण्य रहा। मथुरा न केवल बुद्ध की धर्मयात्रा का एक पड़ाव बना, बल्कि बौद्ध धर्म की दिशा बदलने में भी मथुरा का अहम योगदान रहा है।
बौद्ध ग्रंथ ‘अंगुत्तरनिकाय नामक पुस्तक के अनुसार बुद्ध एक बार मथुरा आए थे व यहां उपदेश भी दिया था। ‘वेरंजक-ब्राह्मण-सुत्त में भगवान बुद्ध द्वारा मथुरा से वेरंजा तक यात्रा किए जाने का वर्णन मिलता है। ‘पालि विवरण से पता चलता है कि बुद्धत्व प्राप्ति के 12वें वर्ष में ही बुद्ध ने मथुरा नगर की यात्रा की थी। रमेशचंद्र शर्मा द्वारा लिखित ‘मथुरा संग्रहालय परिचय में भी भगवान बुद्ध के मथुरा आगमन का वर्णन है। निर्वाण से कुछ दिन पूर्व भी बुद्ध यहां आए और इस नगर के भावी स्वरूप के संबंध में अनेक भविष्यवाणी कीं। यहां के तत्कालीन शासक अवंतिपुत्र ने उनका आदर-सत्कार किया। बौद्ध धर्म के इतिहास में मथुरा की पताका फहराने वाले आचार्य उपगुप्त को सम्राट अशोक ने धार्मिक प्रवचनों को पाटिलपुत्र आमंत्रित किया। आचार्य उपगुप्त की विद्वता के कारण मथुरा बौद्ध संप्रदाय का गढ़ बन गया। महात्मा बुद्ध के शिष्य महाकाच्यायन मथुरा में बौद्ध धर्म का प्रचार करने आए थे। संग्रहालय के उपनिदेशक डॉ.एसपी सिंह ने बताया कि बौद्ध दर्शन के लिहाज से मथुरा कभी बहुत समृद्ध था।
मथुरा में है बुद्ध की पहली मूर्ति
मानव रूप में भगवान बुद्ध की पहली मूर्ति मथुरा में मिली। मान्यता है कि पहली मूर्ति कनिष्क के राज्यकाल में बनी। यह मूर्ति कटरा केशवदेव नामक स्थान से मिली थी। मूर्तिकला के सर्वश्रेष्ठ उदाहरणों में यह मूर्ति मानी जाती है। इस मूर्ति का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है ध्यानभाव। वीथिका सहायक हरीबाबू और संग्रहालय सहायक दिव्या प्रजापति ने बताया कि कुषाण काल में मथुरा मूर्तिकला (150-300 ईसवीं) का सबसे बड़ा केंद्र था।
मूर्तिकला में सिमटा है भगवान बुद्ध का जीवनचरित
मथुरा मूर्तिकला में बुद्ध के जीवन की चार प्रमुख घटनाओं को प्रदर्शित किया गया है-जन्म, सम्बोधि, धर्मचक्र प्रवर्तन (सारनाथ में दिया पहला उपदेश) और महापरिनिर्वाण। इसके अलावा बुद्ध के जीवन की तीन गौण घटनाओं को भी प्रदर्शित किया गया है। इनमें इंद्र को भगवान बुद्ध का दर्शन देना, बुद्ध का स्वर्ग से माता को ज्ञान देकर वापस जाना और लोकपालों द्वारा बुद्ध को भिक्षापात्र अर्पण करना।
चीन, कोरिया और जापान तक जाती हैं मथुरा की मूर्तियां
मथुरा की बनी मूर्तियां देश ही नहीं, बल्कि दक्षिण में श्रीलंका, पूर्व में थाईलैंड, चीन, कोरिया, जापान व पश्चिम में अफगानिस्तान तक स्थापित हुईं हैं। इनमें से अधिकांश अभी भी वहां यथावत बनी हुई हैं। राजकीय संग्रहालय की बौद्ध प्रतिमाओं को चीन, कोरिया और जापान जैसे बौद्ध धर्मावलंबी देशों में प्रदर्शन को कई बार ले जाया गया है। मथुरा संग्रहालय में 2000 वर्ष तक पुरानी बौद्ध मूर्तियां संग्रहीत हैं।
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