नई दिल्ली। महादेव के धाम में कुछ अजब सा चमत्कार है। वहां बेल के पत्ते जैसी हल्की चीज पानी में डूब जाती है और अनार और अमरूद जैसे भारी फल पानी पर तैरने लगते हैं। इतना ही नहीं जिस दूध को पानी की सतह पर तैरना चाहिए वो तीर की तरह पानी को चीरते हुए गहराई में चला जाता है। ये सुनकर हमें हैरानी हुई, हम भी ये जानना चाहते थे कि, आखिर वो कौन सी जगह ही जहां आज के आधुनिक विज्ञान के सारे सिद्धांत उल्टे हो जाते हैं। बताया गया है कि ये चमत्कार किसी धाम का नहीं बल्कि एक कुंड का है, जहां महादेव की एक अदृश्य शक्ति सबको हैरत में डाल देती है।
जो कहीं नहीं होता वो यहां कैसे हो रहा था और वो भी विज्ञान के सिद्धांतों के खिलाफ. ये विज्ञान की कोई अबूझ पहेली थी या वाकई कोई चमत्कार. अब इस गुत्थी को हमें सुलझाना था जिसकी शुरुआत हमने मंदिर के पुजारी से की. पुजारी रामदास ने बताया कि ये प्राचीन स्थान है इसको आदि अंत कोई पार नहीं पाया है. ये बनाया नहीं है ये पहले से बना हुआ है. इसके अंदर शिवलिंग गुप्त है, वो बनता बिगड़ता है. जब इसमें पानी भर जाता है तो कइयो मूर्ति बनती बिगड़ती है।
हमारे फलों के साथ वही हुआ जो होना चाहिए था, वो डूब गए लेकिन बेलपत्र को तो पानी पर तैरना चाहिए था. वो कैसे डूब गया, ये समझ में नहीं आ रहा था. अभी हम इस उलझन में पड़े ही थे कि चमत्कार से जुड़ी एक खास बात जानने को मिली.
सीढ़ियों के पास बने कुंड के अंदर और बाहर का फर्क समझ में आ चुका था. कुंड के अंदर बेलपत्र डूब जा रहे थे. कुंड के बाहर वही बेलपत्र तैर रहे थे. वहां कुछ फल पानी की सतह पर तैरते थे. जबकि बाहर में वही फल डूब जा रहे थे. कुछ ऐसा ही दूध के साथ भी हो रहा था. किनारे लौटने तक एक बात साफ हो चुकी थी कि हमें अपनी पड़ताल को इस कुंड तक ही सीमित रखना था लेकिन पड़ताल को आगे कैसे बढ़ाया जाए. ये समझ में नहीं आ रहा था फिर लोगों ने कहा कि इस कुंड के चमत्कार को जानना है तो इस इलाके को समझना होगा.
ये जो पूरा नैमिषारण्य है इसका एक आलौकिक इतिहास है इस क्षेत्र को नाभि गया बताया गया है. ये जो नैमिषारण्य है ये नाभि गया नैमिषारण्य है. इस भूमि पर 88 हजार ऋषि और देवताओं का वास है आज भी प्रत्येक अमवस्या तो यहां लाखों लोगों की भीड़ होती है. नैमिषारण्य का जिक्र रामायण में भी है और महाभारत में भी, जहां रामचरित मानस में तुलसीदास ने तीरथ नैमिष नाम का जिक्र किया है तो वहीं महाभारत में इसे पंचाल राज्य का हिस्सा बताया गया है. कहते हैं महर्षि दधीचि ने इसी जगह पर अपनी अस्थियां इंद्र को दान में दी थीं और वेद व्यास इसी नैमिषारण्य में कई वेदों और पुराणों की रचना की थी.
ये भी देखें- गुजरात में ऐसे किया जा रहा है बीमार पेड़ों का इलाजहमने फ्रूट्स भी खरीद लिए हैं बेलपत्र भी खरीद लिए हैं. वो सारी चीजें ले ली जो इस कुंड में चढ़ाई जाती हैं. हम ये देखना चाहते हैं कि उन चीजों के साथ क्या होगा जो बाहर से ली गई हैं लेकिन लोग कहते हैं कि आप कुछ भी कर के देख लीजिए, होगा वही जो सदियों से होता आया है. अगर आप एक्सपेरीमेंट कर रहे हैं तो आप भगवान पर संदेह कर रहे हैं. लेकिन हमारा मकसद ठोक बजा कर देख लेना है कि जैसा नजर आ रहा है वैसी ही हकीकत है. अब चमत्कार महादेव के धाम के उस कुंड में है या फिर वहां बिकने वाले फलों और बेलपत्रों में, इसका फैसला अब होने वाला था.
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