ब्रज में नहीं बचा एक भी गिद्ध, पिछले महीने सर्वे को आयी टीम ने किया खुलासा

Vulture

ब्रज के साथ पूरे भारत से गिद्ध विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके हैं। उत्तरी भारत में तो यदा-कदा ही नजर आते हैं। पहले जिले में गिद्ध झुंड़ में नजर आते थे, लेकिन पिछले महीने वन विभाग ने सर्वे कराया तो एक भी गिद्ध नहीं मिला। यह चिंता का विषय है। गिद्ध को पर्यावरण का सफाई नायक कहा जाता है। डीएफओ ने बताया कि एक भी गिद्ध नही देखा गया।
जिनके कारण समाज में तमाम बीमारियां फैलने से रुक जाती थीं आज उनकी प्रजातियां खुद ही बढ़ने से रुक गई हैं। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार ऐतिहासिक महत्व रखने वाले गिद्ध वर्तमान में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रहे हैं। वर्ष 2019 में जारी संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण रिपोर्ट मे विश्व भर की गिद्दों की 22 में से 10 प्रजातियों के अस्तित्व पर खतरा बताया गया।

ये है ऐतिहासिक महत्व

पक्षियों में गिद्धों की ऐतिहासिक कहानियां मौजूद हैं। भारत की रामायण में वर्णित जटायु की भूमिका से सभी परिचित होंगे। जटायु को गिद्ध पक्षी ही माना जाता है और भारत के छत्तीसगढ़ में जटायु का एक मात्र मंदिर प्राचीन भारतीय संस्कृति के पक्षियों के प्रति सम्मान को दिखाता है। इसी तरह प्राचीन मिस्र के इतिहास में गिद्धों का वर्णन मिलता है। मिस्र की कई पुरातन चित्रलिपियों में गिद्ध के प्रतीक चिन्ह मिले हैं जो गिद्ध के पवित्र और संरक्षित पक्षी होने के प्रमाण हैं।

भारत में पाई जाती हैं गिद्ध की 9 प्रजातियां

वर्तमान में पुरानी और नई दुनिया के कुल 22 प्रकार के वल्चर मौजूद हैं। विश्व भर में गिद्धों की कुल 22 प्रजातियां मौजूद हैं जिनमें से 15 प्रजातियां पुरानी दुनिया की हैं। पुरानी दुनिया में अमेरिका के दोनों महाद्वीप शामिल नहीं है।भारत में गिद्धों की कुल 9 प्रजातियां पाई जाती है जिनमें स्थानीय आवासीय एवं प्रवासी प्रजातियां शामिल हैं। ये प्रजातियां लॉन्ग विल्ड वल्चर, व्हाइट बैक्ड वल्चर, सिलेन्डर विल्ड वल्चर, हिमालयन ग्रिफाॅन वल्चर, वियर्ड वल्चर, किंग वल्चर, इजिप्सीयन वल्चर, सिनेरियस वल्चर, यूरेशियन ग्रिफाॅन वल्चर हैं।

गिद्ध अलग-अलग प्रजातियों के होते हैं

भारत में इनके सबसे देशी प्रतिनिधियों का वजन 3.5 – 7.5 किलोग्राम के बीच होता है, लंबाई 75- 93 सेमी, पंखों का फैलाव 6.3 – 8.5 फीट को होता है। गिद्ध 7,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ सकते हैं और एक बार में 100 किलोमीटर से भी अधिक की दूरी बहुत आसानी से कवर कर लेते हैं।

गिद्धों से प्राकृति को लाभः

गिद्ध पर्यावरण के प्राकृतिक सफाईकर्मी होते हैं। ये मृत और सड़ रहे पशुओं के शवों को भोजन के तौर पर खाते हैं और इस प्रकार मिट्टी में खनिजों की वापसी की प्रक्रिया को बढ़ाते हैं। इसके अलावा मृत शवों को समाप्त कर वे संक्रामक बीमारियों को फैलने से भी रोकते हैं।

यह भी है एक वजह :

गिद्धों के लिए कीटनाशक प्रदूषण भी एक खतरा रहा। क्लोरीनयुक्त हाइड्रोकार्बन डीडीटी का प्रयोग कीटनाशक के तौर पर किया जाता है। यह गिद्धों के शरीर में खाद्य शृंखला के माध्यम से प्रवेश करता है। इसके बाद यह एस्ट्रोजन हार्मोन की गतिविधि को प्रभावित करता है। परिणामस्वरूप अंड कोश कमजोर हो जाता है। शिकारी हाथी, बाघ, गैंडा, हिरण और भालू जैसे जंगली पशुओं के चमड़े, दांत, सींग निकालने को इन्हें जहरीला भोजन देते हैं। इन्हें मृत पशुओं का मांस खाने से गिद्ध मर जाते हैं।

मृत जानवरों का शरीर है इसका भोजन

पक्षी विशेषजों के अनुसार गिद्द हमारे ईको सिस्टम का अति महत्वपूर्ण अंग है। इसका शरीर 60-70 सेंमी व बजन दो किलो ग्राम से अधिक होता है। यह मृत अपशिष्ट को भोजन के रूप में खाकर प्रकृति की सफाई का कार्य करता है। यह अपने भोजन के लिए लगभग 50 किलोमीटर रेडियस तक की दूरी तय करता है। मृत स्तनधारियों की लाशें ही इसका मुख्य भोजन है लेकिन यह छोटे पक्षी व सरीसृप का शिकार कर लेता है।

प्रदेश में चल रहा है संरक्षण एव प्रजनन केंद्र बनाने का काम

उत्तर प्रदेश सरकार हरियाणा के पिंजौर स्थित भारत के पहले जटायु संरक्षण व प्रजनन केंद्र की तर्ज पर उत्तर प्रदेश सरकार महाराजगंज के फरैंदा में प्रदेश के पहले गिद्द संरक्षण व प्रजनन केंद्र स्थापित करने जा रही है ।

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*