पुलवामा हमला : सीरिया और अफगानिस्तान की तर्ज पर था

नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में पुलवामा में गुरुवार को सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले में अबतक 44 जवान शहीद हो गए हैं। जबकि कई जवान गंभीर रूप से घायल हुए हैं। शहीदों एक मेजर भी शामिल है। आतंकियों ने ये हमला CRPF की 76 बटालियन की बसों पर किया। हमले के वक्त 2547 जवान 78 वाहनों के काफिले में जा रहे थे। इसी दौरान जैश-ए-मोहम्मद के आत्मघाती हमलावर ने विस्फोटकों से लदी कार से उनकी बस में टक्कर मार दी। धमाका इतना जबरदस्त था कि बस के परखच्चे उड़ गए। करीब 10 किलोमीटर तक धमाके की आवाज सुनाई दी।
सितंबर 2016 में उरी में हुए आतंकी हमले के बाद कश्मीर में यह सुरक्षाबलों पर यह अब तक का सबसे बड़ा हमला है। उरी में 18 सितंबर 2016 में हुए आतंकी हमले के बाद कश्मीर में यह सुरक्षाबलों पर यह अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला है। उरी हमले में 19 जवान शहीद हो गए थे। श्रीनगर-जम्मू हाइवे पर स्थित अवंतिपोरा इलाके में आतंकियों ने सीआरपीएफ के एक काफिले को निशाना बनाया। आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। बताया जा रहा है कि आदिल अहमद डार नाम के आतंकी ने इस काफिले पर हमले की साजिश रची थी। विस्फोटकों से भरी एक गाड़ी लेकर आए जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी आदिल ने सीआरपीएफ जवानों के काफिले की बस में टक्कर मार दी। आत्मघाती हमलावर आदिल 2018 में जैश में शामिल हुआ था।
ये हमला उस वक्त किया जब गुरुवार दोपहर 3.30 बजे के करीब जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सुरक्षाबलों का एक बड़ा काफिला जा रहा था, तभी एक गाड़ी आकर CRPF की बस से टकरा गई और धमाके में जवानों की शहादत हुई। आतंकियों ने इस बार हमला करने के लिए पुराना तरीका नहीं अपनाया, जिस तरीके से हमला हुआ है वह सीरिया और अफगानिस्तान मॉडल की तरह था। इस हमले में आतंकी अपनी गाड़ी में ही मौत का सारा सामान लेकर आया और सेना के काफिले में जा घुसा। वह सीधा CRPF की बस से टकराया, जिससे पूरी बस तहस-नहस हो गई और आस-पास के वाहनों को भी नुकसान पहुंचा। इस तरह के हमले बीते कुछ समय में अफगानिस्तान और सीरिया में देखने को मिले हैं। पिछले कुछ समय में अफगानिस्तान में अधिकतर हमले संसद के पास, बड़े अधिकारियों के आवास के पास जैसे क्षेत्रों में हुए हैं, जहां पर कारसवार सीधे बिल्डिंग में घुस जाते हैं और उसे उड़ा देते हैं। वहीं, सीरिया में भी IS लड़ाकों और सुरक्षाबलों की जंग में इस तरीके का इस्तेमाल होता आया है।
दरअसल, अभी तक घाटी में जिस प्रकार हमले होते थे, वह इससे अलग थे। पहले कई हमलों का इतिहास देखें तो आतंकी सीधे जवानों के काफिले पर गोलियां बरसाते थे या फिर कहीं छुप पर आतंकी इन पर ग्रेनेड से हमला करते थे। इस तरह के हमले में सीमित ही नुकसान होता था, क्योंकि आतंकी को काफिले के करीब आना होता था लेकिन इतने ही देर में जवान उस पर जवाबी हमला बोल देते थे।

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