मथुरा। दिव्यता… इस शब्द को लिखा और पढ़ा बहुत बार लेकिन इसकी दीप्ति से खुद को प्रकाशित कर पाई राधा टीले पर विश्वास कीजिए। अगर आप विशुद्ध भाव के साथ यहां आते हैं तो आप भी अपने रोम-रोम में इस दिव्याता को पाएंगे। साधना करते विरक्त संतों के अनुभवों को आत्मसात करने में जरा भी संकोच न होगा जो कहते हैं, “यहां राधा रहती है।” शांति के इस धाम में बिहारी विहारिणी का सरस वृंदावन बसता है। उन्हें पाने की चाह से आए तो खाली हाथ लौटोगे। बस आओ और उनके हो जाओ। राधा टीले में रहने वाले संत भी यही करते हैं।
प्रिया-प्रीतम का भजन ही उनका जीवन राधा टीला है। संतों ने इस स्थान की पावनता, रमणीयता और दिव्या को भीड़-भाड़ और प्रचार-प्रसार से बचाए रखा है। राधा टीला हरिदासी संप्रदाय की छोटी गद्दी है। स्वामी हरिदास की शिष्य परंपरा में रसिक अनन्य विहारिन देव की भजन स्थली पंचकोसी परिक्रमा मार्ग में स्थित है। लता-पताएं और ब्रज रज राधा टीले की अमूल्य निधियां हैं। शाम पांच बजे राधा टीला पहुंचे हरी भरी वृक्ष वलियों के झरोखे से झांकते सूरज की लालिमा रज पर मुस्कान सी बिखरी थी। बंदर दाना चुगने में मशगूल थे। कैमरा देखते ही संत सक्रिय हो गए और फोटो खींचने की सख्त मनाही हो गई। राधा टीले के सेवाधिकारी भंवर शरण बाबा बाहर ही बैठे थे। जब उन्हें आने का उद्देश्य बताया तो उन्होंने वनश्री के फोटो लेने की अनुमति दे दी। भंवर शरण बाबा ने बताया कि “16 वीं शताब्दी से यह स्थान साधु संतों की भजन स्थली रहा है। यहां राधा रानी रहती हैं। संतों को उनके दर्शन होते हैं। इस टीले पर ठाकुर जी सखी रूप धारण कर । श्रीजी से संगीत सीखते हैं टीले पर बने मंदिर में ठाकुर राधा बिहारी विराजमान हैं। गर्भगृह में ठाकुर जी को संगीत सिखाती राधा रानी के । दर्शन है पर फोटो खींचना निषिद्ध है। वर्तमान में राधा टीले पर छह साधु रहते हैं जो अखंड ब्रज वास करते हैं
“राधा टीले में रहने वाले विरक्त संत लता-पताओं में कृष्णा कृष्ण की छवि देखते हैं। सेवाधिकारी ने प्राचीन बड़ वृक्ष दिखाया। इसकी शाखाएं झूलनमा हैं। ऐसा ही अन्य पेड़ हैं जो दो देह एक प्राण का स्वरूप हैं। पक्षियों और बंदरों को भी राधा टीला प्रिय है। शाम होते ही पूरा प्रांगण गौरेया, बया, कबूतर, तोता और बंदरों से भर जाता है। राधा टीले में प्रतिदिन दाना डाले जाने की परंपरा है। सर्दियों में 12 क्विंटल दाना पड़ता है जिसमें ज्वार, बाजरा होता है। संतों ने इस गुण को स्वामी हरिदास से ग्रहण किया है।
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