नई दिल्ली। अब तक पांच ही महीनों में दुनिया के 48 लाख से ज्यादा लोग कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं, जिनमें सवा तीन लाख मौतें भी शामिल हैं। भारत में भी संक्रमण का आंकड़ा लॉकडाउन के बाद भी तेजी से बढ़ा है। इसके बाद भी रह-रहकर सोशल मीडिया पर ये दावा दिख रहा है कि भारतीयों की इम्युनिटी दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा मजबूत है और इसलिए हमें कोरोना का उतना खतरा नहीं है। हालांकि इस दावे में कतई सच्चाई नहीं।
इम्युनिटी और बीमारियां
इम्यून सिस्टम कई बातों के आधार पर काम करता है। इसमें पर्यावरण और खानपान से लेकर हमारी जेनेटिक्स भी शामिल है. इम्युनिटी पर इसका भी असर होता है कि हमारी जीवनशैली कितनी स्वस्थ है. स्मोकिंग और अल्कोहल लेने वालों की इम्युनिटी इससे बचने वालों से काफी कम होती है. अब अगर भारत के मामले में बात करें तो कई बीमारियों के मामले में ये दुनिया में काफी ऊपर है. जैसे दुनियाभर के टीबी मरीजों का 27% सिर्फ भारत में है. इसी तरह से अस्थमा मे मामले में भी हम दुनिया में दूसरे नंबर पर खड़े हैं. यहां तक कि अस्थमा के कारण सबसे ज्यादा मौतें भारत में ही होती हैं।
World Health Organisation (WHO) के मुताबिक भारत में ह्रदय और श्वस्न तंत्र के अलावा डायरिया से ही रोज लगभग 2000 मौतें होती हैं, वहीं टीबी रोज यहां पर 1200 जानें लेती है. स्वाइन फ्लू के कारण मौतें भी हर साल के साथ बढ़ती जा रही हैं. खुद National Centre for Disease Control का मानना है कि इसकी वजह से सालाना भारत में 1000 से ज्यादा जानें जा रही हैं।
कैसे काम करता है इम्यून सिस्टम
इम्युनिटी के लिए इम्यून सिस्टम को भी समझना जरूरी है. इम्युनिटी यानी शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता। ये तब काम आती है, जब शरीर पर किसी पैथोजन यानी बैक्टीरिया या वायरस का हमला होता है. इससे शरीर में उपस्थित इम्यून सेल्स एक्शन में आ जाती हैं और पैथोजन से लड़कर उसे कमजोर कर देती हैं.
कई बार ऐसा भी होता है कि पैथोजन जब शरीर की कोशिकाओं में ही अपना घर बना ले तो इम्यून सिस्टम उसे पहचाने बिना उसपर ही हमला कर देता है. इस प्रक्रिया में शरीर की स्वस्थ कोशिकाएं मरने लगती हैं. इस प्रक्रिया को cytokine storm कहते हैं, जो बेहद खतरनाक होती है. कोरोना के मरीजों में भी ये cytokine storm देखने में आ रहा है. इसकी जानकारी सबसे पहले वुहान के मरीजों के कारण मिल सकी. डॉक्टरों ने 29 मरीजों पर स्टडी में पाया कि उनमें साइटोकाइन स्टॉर्म के लक्षण थे. अमरीका में भी कोविड के मरीजों में साइटोकाइन स्टॉर्म का प्रकोप देखा गया।
शरीर पर किसी पैथोजन यानी बैक्टीरिया या वायरस का हमला होता है तोे इम्यून सेल्स एक्शन में आ जाती हैं
क्यों माना जा रहा था कि भारत में इम्युनिटी बेहतर है?
इसकी एक वजह साइंस जर्नल Nature Asia में छपी एक रिपोर्ट है जिसका शीर्षक है- More immunity genes in Indians. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया ने एम्स के साथ मिलकर ये स्टडी की थी, जिसमें इस बात की पड़ताल थी कि क्या वाकई भारतीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होती है. इस दौरान पाया गया कि भारतीयों में KIR (killer cell immunoglobulin-like receptors) नाम जीन्स होता है, जो पर्यावरण के कारण होने वाले नुकसान से बचाने की क्षमता रखता है।
हालांकि इसकी भी पुष्टि नहीं हो सकी कि ये जीन्स बचा भी सकते हैं या नहीं. स्टडी में शामिल एम्स के शोधकर्ता राजलिंगम राजा (Rajalingam Raja) के अनुसार अभी ये देखना बाकी है कि भारतीयों में इम्युनिटी से जुड़े इन जीन्स से कितनी मदद मिल पाती है।
चूंकि भारत में पोषण की कमी बहुत ज्यादा है इसलिए हमारी इम्युनिटी कई बीमारियों के दौरान कम भी होती है
पैथोजन्स से संपर्क ज्यादा
हालांकि भारतीयों का वायरस और बैक्टीरिया से ज्यादा एक्सपोज होना भी एक वजह है, जिसके कारण हमें बेहतर इम्यून पावर वाला माना जा रहा है. चमगादड़ों का उदाहरण देते हुए Genes and Immunity नामक साइंस जर्नल में बताया गया कि हजारों जानलेवा वायरसों के शरीर में होने के बाद भी वे सुरक्षित रहते हैं तो इसकी वजह है उनका लगातार पैथोजन से एक्सपोज होना. इसी कारण वे इबोला और सार्स जैसे वायरसों से भी बचे रहते हैं और सिर्फ उनके वाहक का काम करते हैं. यानी हमारी इम्युनिटी बेहतर रखने की एक वजह ये भी है कि हम भी सैनिटेशन और हाइजीन की कमी के कारण पैथोजन के संपर्क में ज्यादा आते हैं और शरीर उनसे लड़-लड़कर उनके लिए एंटीबॉडी बना लेते हैं।
लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है. चूंकि भारत में पोषण की कमी बहुत ज्यादा है इसलिए हमारी इम्युनिटी कई बीमारियों के दौरान कम होती है. जैसे भारत में शिशु मृत्युदर ज्यादा है, जिसकी वजह मां-बच्चे का कुपोषण और जन्म के बाद पैथोजन का मुकाबला न करने के कारण पनपा संक्रमण है।
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