खुलासा: भाजपा कर देगी केजरीवाल को दिल्ली चुनाव जीतने पर मजबूर, कार्यकर्ताओं की टीम

बेंगलुरु। दिल्‍ली विधानसभा चुनाव की तारीख चुनाव आयोग द्वारा अब किसी भी दिन कर दी जाएगी। दिल्ली की सत्ता पर पर काबिज आम आदमी पार्टी का दावा है कि एक बार फिर मुख्‍यममंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व की सरकार बनेगी। वहीं भारतीय जनता पार्टी ऐसी चुनावी रणनीति तैयार कर रही हैं जिसके बाद आप पार्टी का दोबारा सत्ता में आने का सपना धरा का धरा रह जाएगा! चुनाव की तारीख आने से पहले ही भाजपा ने आप पार्टी को मात देने के लिए चक्रव्‍यूह रचना आरंभ कर दिया है।

गौरतलब है कि नगर निगम और लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा की नजर अब विधानसभा चुनाव पर है, लेकिन यह आसान नहीं है। भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती अरविंद केजरीवाल का चेहरा और उनकी सरकार के लोकलुभावने फैसले हैं। पार्टी के रणनीतिकार इस जमीनी हकीकत को अच्‍छे से समझ चुके हैं। उनका मानना है कि आप को मजबूत चुनौती देने के लिए प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में वहां की जरूरत के अनुसार रणनीति बनाकर चुनाव लड़ना होगा। इसके आधार पर भाजपा ने चुनावी रणनीति बना ली है।

वोटरों के मुद्दों को दे रही तबज्‍जों

हरियाणा और झारखंड में स्‍थानीय मुद्दों को नजरंदाज करने का भाजपा खराब चुनाव परिणाम भुगत चुकी है। इसलिए वह दिल्ली के वोटरों के मुद्दों को उठाकर केजरीवाल सरकार की मुफ्त पानी, बिजली समेत अन्‍य मुफ्त योजनाओं की राजनीति को बेकार किया जा सकता है। भाजपा ने केजरीवाल सरकार की कमजोर कड़ी को पकड़ लिया हैं। जिसके दम पर भाजपा आप पार्टी की पोल खोलकर वोटरों को लुभाने की रणनीति बना चुकी हैं।

आप विधायकों से खुश नहीं हैं वोटर

चिकित्‍सा से लेकर शिक्षा, बिलजी, पानी समेत अन्‍य सुविधाएं जनता को निशुल्‍क देकर सीएम केजरीवाल के वह जनता के प्रिय बन चुके हैं लेकिन भाजपा के अनुसार केजरीवाल सरकार के विधायकों के प्रति दिल्ली के लोगों में बहुत नाराजगी है। इसका खुलासा भाजपा द्वारा कराए गए एक सर्वे में हुआ है। अब भाजपा इसे ध्यान में रख‍कर अपनी चुनावी रणनीति तैयार कर चुकी हैं। भाजपा चुनाव के दौरान आप सरकार और उसके विधायकों की पोल खोलेगी। इसके लिए भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी तय कर दी गयी है।

भाजपा ने तैयार की अनुभवी कार्यकर्ताओं की टीम

भाजपा विधानसभा की एक सीट को एक इकाई मानकर स्थानीय मुद्दों के मुताबिक रणनीति बनाने के लिए भाजपा के रणनीतिकार मुद्दों की सूची बना रहे हैं। राज्यस्तरीय चुनाव प्रचार अभियान के साथ ही प्रत्येक सीट पर समानांतर यह अभियान चलेगा। इसमें कोई गड़बड़ी न हो इसलिए भाजपा ने अनुभवी कार्यकर्ताओं की टीम तैनात की है।

आप विधायकों के वादों का भाजपा करेंगी पोस्टमार्टम

इतना ही नहीं भाजपा के प्रदेश अध्‍यक्ष्‍य मनोज तिवारी की अध्यक्षता में चुनाव प्रबंधन समिति गठित हो चुकी हैं। इस समिति में विभिन्‍न 35 विभाग बनाए गए हैं। यह समिति दिल्ली के हर विधानसभा क्षेत्र में गठित की जा रही है। भाजपा द्वारा यह प्रयोग पहली बार किया जा रहा है। यह समिति प्रदेश की टीम के साथ तालमेल रखते हुए स्थानीय मुद्दों की पहचान करके चुनाव प्रचार को आगे बढ़ाएगी। इसके साथ ही स्थानीय विधायक के वादों का पोस्टमार्टम करने के साथ ही जमीनी हकीकत जनता के सामने रखी जाएगी। यही नहीं क्षेत्र के विकास के लिए एक रोडमैप तैयार कर जनता के सामने रखा जाएगा।

पीएम मोदी के चेहरे पर भाजपा लड़ेगी चुनाव

दिल्ली विधानसभ चुनाव को लेकर भाजपा की तरफ से अभी तक औपचारिक रुप से मुख्‍यमंत्री के चेहरे के रुप में किसी भी चेहर को अभी आगे नहीं किया गया हैं। लेकिन ऐसे कुछ संकेत मिल रहे हैं जिससे साफ प्रतीत हो रहा है कि पार्टी बिना किसी सीएम चेहरे के ही चुनाव मैदान में उतरेगी। यह चुनावी लड़ाई केजरीवाल बनाम मोदी होगी। भाजपा ने ‘दिल्ली चले मोदी के साथ 2020’ नारा बनाया हैं जिससे ये बात और पुख्‍ता हो चुकी है। वहीं भाजपा राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह ने भी रविवार को कार्यकर्ता सम्मेलन में कहां प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्तव में भाजपा दिल्ली चुनाव जीतेगी। इससे साफ है कि प्रचार के दौरान भाजपा दिल्ली में कच्‍ची कालोलियों को स्‍थायी कालोनी में परिवर्तित करने समेत मोदी सरकारकी नीतियों व उपलब्धियों की जानकारी जनता को जनता को देकर जमकर प्रचार कर वोट बैंक को लुभाएंगी।

पिछले पांच साल में बढ़ा भाजपा का वोट प्रतिशत

2019 के लोकसभा चुनाव में सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी का प्रर्दशन निराशाजनक था। आम चुनाव में केजरीवाल की पार्टी महज 18.1 प्रतिशत वोट पायी थी।। वहीं भाजपा और कांग्रेस का वोट प्रतिशत काफी बढ़ा था। 2019 आम चुनाव में आप पार्टी को 18.1 प्रतिशत ही वोट मिले वहीं भाजपा को सबसे अधिक वोट मिले थे पार्टी को करीब 24 फीसदी वोटों में बढ़ोत्तरी हुई। भाजपा को 56. 5 प्रतिशत वोट पड़े। भाजपा ने साता सीटों पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस के वोट शेयर में करीब 12 प्रतिशत की बढ़ोत्‍तरी हुई थी पार्टी को कुल 22.5 प्रशित ही वोट मिले थे।

2015 में आप ने ऐतिहासिक जीत हासिल की थी

2015 विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के प्रतिनिधित्व में आमआदमी पार्टी ने पहली बार चुनाव लड़ा था। जिसमें आप पार्टी ने 54.3 प्रतिशत वोट हासिल किए। वहीं दूसरे नंबर पर भाजपा रही उसे 32.3 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं कांग्रेस जिसकी 15 साल से दिल्ली में सरकार थी उसे मात्र 9.7 प्रतिशत ही वोट शेयर रहा। इस चुनाव में आप ने दिल्ली की 67 सीटों पर जीत हासिल की थी वहीं भाजपा महज तीन सीटों पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस का तो इस चुनाव में जीत का खाता ही नहीं खुला था।

भाजपा के चाणक्य ने संभाल ली है चुनाव की कमाल

दरअसल, आम चुनाव और विधासभा चुनाव के परिणाम का कभी कोई समानता नहीं होती है। हाल ही में संपन्‍न हुए झारखंड विधानसभा चुनाव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। वहां पर भी लोकसभा चुनाव में भाजपा को जबरदस्‍त जीत मिली लेकिन विधानसभा चुनाव में जनता ने भाजपा को सिरे से नकार दिया जिस कारण झारखंड की सत्ता भाजपा के हाथ से चली गयी। यह बात दिल्ली चुनाव की पूरी कमान संंभाल रहे अमित शाह को भी अच्‍छे से पता है इसलिए वह इस चुनाव को लेकर चुनाव की तारीख आने से पहले ही अपनी पूरी ताकत झोंकना शुरु कर चुके हैं। नागरिकता कानून और एनआरसी के खिलाफ देशभर में मोदी सरकार के विरोध में लगातार हो रहे प्रदर्शनों के बीच रविवार को गृहमंत्री अमित शाह ने सीएए के समर्थन में दिल्ली में डोर टू डोर कैंपेन शुरू की है। अब ये तो आने वाला समय बताएगा कि भाजपा की यह चुनावी रणनीति केजरीवाल सरकार से दिल्ली की सल्‍तनत हथिया पाएगी !

1993 के चुनाव में भाजपा ने हासिल की थी सत्ता

बता दें कि दिल्ली में पहली बार 1993 में विधानसभा चुनाव हुए थे और तब बीजेपी जीतकर सत्ता हास‍िल की थी। लेकिन पांच साल के कार्यकाल में भाजपा को अपने तीन मुख्यमंत्री बदलने पड़े थे। जिसमें मदनलाल खुराना, साहेब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे. अब यह तीनों ही नेता अब इस दुनिया में नहीं हैं। इसके बाद 1998 में विधानसभा चुनाव हुए और तब शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस को जीत मिली और भाजपा सत्ता से बाहर हो गयी। जिसके बाद पार्टी आजतक वापसी नहीं कर सकी है। साल 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में से बीजेपी महज 3 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी जबकि 67 सीटें आम आदमी पार्टी को मिली थीं। इस चुनाव में कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी।

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