साढ़ेसाती या ढैय्या में शनि के प्रकोप से बचाता है रुद्राक्ष

यूनिक समय, मथुरा। रुद्राक्ष अर्थात भगवान शिव के नेत्रों से आंसू के रूप में लोक कल्याण के लिए प्रकट हुआ एक फल, जिसका धार्मिक ही नहीं औषधीय महत्व भी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ग्रहों के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए रुद्राक्ष से मंत्र जाप करना सबसे उत्तम माना गया है। अगर शनि की साढ़ेसाती या ढय्या मारक अवस्था है, तो इसको पहनने से शनि के प्रकोप से बचा जा सकता है और साथ ही मनोवांछित लाभ प्राप्त कर सकते हैं ।

एक मुखी से लेकर 21 मुखी तक के रुद्राक्ष होते हैं, जिनका अलग-अलग प्रभाव होता है। इसलिए रुद्राक्ष पहनते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। बेहतर होगा कि किसी जानकार से ही पूछ कर इसे धारण करें, क्योंकि अलग-अलग मुख वाले हर रुद्राक्ष का अलग-अलग उद्देश्य होता है। तो अगर आपका कोई उद्देश्य है, तो उसी उद्देश्य से संबंधित रुद्राक्ष आपको पहनना चाहिए। इसे पहनने के भी कुछ विधान होते हैं। एकमुखी रुद्राक्ष बहुत दुर्लभ माना गया है। इसके बारे में कहा गया है कि यह सभी सिद्धियों को देने वाला है। इसको धारण करने वाला व्यक्ति इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लेता है। इसी तरह पंचमुखी रुद्राक्ष पंचमुख शिवरूप है, जो सब पापों को नष्ट करता है।

रुद्राक्ष की उत्पति और महत्ता को लेकर कई सारी पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिसके अनुसार उसके अंदर की दिव्य शक्तियों से हम अपने जीवन में बाधाओं को दूर कर आगे बढ़ सकते हैं। भगवद् पुराण, स्कंद पुराण और महाशिवपुराण में तो यहां तक कहा गया है कि रुद्राक्ष में रखा हुआ पानी पीना अमृत का कार्य करता है और व्यक्ति इससे जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्त होता है।

रुद्राक्ष फल के रूप में ऊर्जा का एक ऐसा स्रोत है, जिसको धारण करने से ही पुण्य की प्राप्ति हो जाती है। इसे सुरक्षा कवच के रूप में भी पहना जाता है। इसकी ऊर्जा आपको उत्साही, शांत व एकाग्र बनाती है। सबसे पहले बात करते हैं कि रुद्राक्ष धरती पर आया कैसे? मान्यता के अनुसार त्रिपुरासुर नाम के एक राक्षस के उत्पात से बचने के लिए ब्रह्मा, विष्णु समेत सभी देव भगवान शिव के पास उसके वध की प्रार्थना लेकर गए। उस समय भगवान शिव ने योग मुद्रा में आंखें बंद कर लीं, उसके पश्चात जब आंखें खोलीं तो उनके आंख से जो आंसू निकले, वो पृथ्वी पर जहां-जहां टपके रुद्राक्ष के वृक्ष हो गए।

वहीं एक अन्य कथा के अनुसार जब एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद जाग्रत होने पर शिवजी का मन जब बाहरी जगत में आया, तब महादेव ने अपनी आंखें बंद कीं। तब उनके नेत्र में से जल के बिंदु पृथ्वी पर गिरे। उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए और वे शिव की इच्छा से भक्तों के हित के लिए पूरे देश में फैल गए। उन वृक्षों पर जो फल लगे, वे ही रुद्राक्ष हैं। इसलिए रुद्राक्ष धारण करने वाले पर भगवान शिव की विशेष कृपा बनी रहती है। इसको धारण करने या अपने धार्मिक स्थल पर रख कर पूजा करने से नकारात्मक शक्ति पास नहीं आतीं। रुद्राक्ष की माला से शिव की स्तुति करने से सारे कष्ट दूर होते हैं, साथ ही कल्याणकारी जीवन की प्राप्ति होती है।

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