मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पुलिस राजस्थान सरकार को अपदस्थ करने की साजिश का भंडाफोड़ करने में जुटी है। मुख्यमंत्री गहलोत और उनके कानूनी सलाहकार इसे सबसे सफल हथियार मान रहे हैं। इसी को आधार बनाकर गुरुवार शाम को दो और प्राथमिकी दर्ज कराई गईं।
पार्टी के मीडिया विभाग के प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने भी केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत समेत अन्य के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस पार्टी केंद्रीय मंत्री पर सरकार गिराने की साजिश में शामिल बताकर उनकी गिरफ्तारी की मांग कर रही है।
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दरअसल कांग्रेस को ये यभी कदम बागी नेता सचिन पायलट के कानूनी शरण लेने के चलते करना पड़ रहे हैं। पायलट चाहते हैं कि फिलहाल वह कांग्रेस में ही रहकर अपनी ‘आवाज’ को जोरदार ढंग से उठाएं।
कांग्रेस पार्टी ने अभी भी सभी विकल्पों को खुला रखा है। सचिन पायलट अगर समर्थकों समेत मान जाएं तो अच्छा है। हालांकि पायलट के सामने अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दो ही आश्वासन दे रहे हैं। पहला यह कि वह बिना शर्त वापस आएं, उनका ख्याल रखा जाएगा।
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दूसरा, पायलट को कांग्रेस के केंद्रीय संगठन में जगह दी जाएगी। उन्हें राजस्थान में अब उप मुख्यमंत्री या प्रदेश अध्यक्ष फिर से नहीं बनाया जाएगा। पार्टी सूत्रों का कहना है कि अगर वे मानते हैं तो ठीक है। यदि नहीं मानते हैं तो पार्टी विरोधी गतिविधियों और राज्य सरकार को अपदस्थ करने के प्रयासों में विधायकों की सदस्यता अयोग्य करार देने जैसी कार्रवाइयों का सामना करना पड़ेगा।
पार्टी से नहीं बर्खास्त होंगे पायलट और उनके समर्थक
कांग्रेस की योजना सचिन पायलय और उनके समर्थकों को निलंबित करके अनुशासनात्मक और कानूनी कार्रवाई को धार देने की है, लेकिन पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से बर्खास्त करने की नहीं है। जबकि पायलट खेमा चाहता है कि कांग्रेस उन्हें बर्खास्त कर दे।
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पहले चरण में पार्टी ने राजस्थान सरकार में मंत्री रहे विश्वेंद्र सिंह समेत दो लोगों को निलंबित कर दिया है। पायलट का साध दे रहे नेताओं को कारण बताओ नोटिस जारी किए जा रहे हैं। पायलट के साथ फिलहाल 19 विधायक बताए जा रहे हैं। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि यह संख्या घटने के पूरे आसार हैं।
गुरुवार को दो पार्टी विधायकों ने वरिष्ठ नेताओं से बात भी की है। कुल मिलाकर अब यह लड़ाई लंबी चलने के आसार हैं। जैसे-जैसे समय बीत रहा है सचिन पायलट की रणनीति सामने आ रही है। पायलट की रणनीति का पार्ट-वन फेल हो चुका है।
इसलिए अब वह पार्ट-2 पर काम कर रहे हैं। इसमें उनकी कोशिश कांग्रेस के भीतर और विधायकों को तोड़ना, खुद को सच्चा कांग्रेसी बताकर अशोक गहलोत पर निशाना साधना, राज्य सरकार की मुसीबत बढ़ाना है।
गेम में असली खिलाड़ी हैं वसुंधरा राजे
राजस्थान में सचिन पायलट के सहारे सत्ता पाने की कोशिश पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर टिकी है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया वसुंधरा राजे के वफादारों में हैं। राजस्थान भाजपा में तकरीबन 45 विधायक पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे में आस्था रखते हैं।
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भाजपा के लिए वुसंधरा को राजी करना एक पेचीदा मसला है। केंद्र में वसुंधरा के पुत्र और सांसद दुष्यंत सिंह लगातार हाशिए पर हैं। वसुंधरा का केंद्र के शीर्ष नेताओं से छत्तीस का आंकड़ा है। दूसरे बड़ा सवाल अशोक गहलोत की सरकार गिरने पर राज्य में मुख्यमंत्री पद को लेकर भी है।
वसुंधरा और अशोक गहलोत में दो विपरीत राजनीतिक दल के नेता वाली सामंजस्यपूर्ण केमिस्ट्री है। दोनों सत्ता में रहने पर एक-दूसरे को बहुत तकलीफ नहीं देते। दूसरे राजस्थान सत्ता विरोधी लहर वाला प्रदेश है। पांच साल बाद भाजपा, फिर कांग्रेस सत्ता में आ रही है।
इसलिए वसुंधरा राजे अपने भावी मुख्यमंत्री के भविष्य से कोई समझौता नहीं करना चाहतीं। भाजपा के शीर्ष नेताओं की तरफ से मुख्यमंत्री बनाए जाने का विकल्प दिए जाने पर भी वसुंधरा के राजी होने की संभावना कम है। क्योंकि राजस्थान में मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार की हालत को देखकर इसके लिए तैयार होने से परहेज कर सकती हैं।
राजस्थान में भाजपा के पास दूसरा कोई जनाधार वाला नेता नहीं
राजस्थान में भाजपा के पास वसुंधरा के अलावा कोई दूसरा जनाधार वाला बड़ा नेता नहीं है। युवा राज्यवर्धन सिंह राठौड़, केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल इनमें से कोई भी बड़ी हैसियत का नेता नहीं हैं। सच यह भी है कि वसुंधरा ने इन्हें उभरने भी नहीं दिया। पार्टी के विधायकों में उनकी ही संख्या अधिक है, जिन्हें वसुंधरा ने वीटो के जरिए 2018 के विधानसभा चुनावों में टिकट दिलवाया था।
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यही कारण है कि दूसरे विरोधी गुट के सहारे राजस्थान में वसुंधरा राजे पर राजनीतिक हमला बढ़ाया जा रहा है। वसुंधरा राजे के करीबी, राजस्थान के पूर्व मंत्री, वर्तमान में भाजपा विधायक का कहना है कि सांसद हनुमंत बेनीवाल जैसे लोगों की कोशिशें इसी का हिस्सा हैं।
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