नई दिल्ली- बुधवार को एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने जिस तरह से करीब 50 मिनट तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की है, उससे पहले से ही जारी महाराष्ट्र में सत्ता को लेकर गतिरोध में कयासों का एक नया दौर शुरू हो गया है। हालांकि, पवार ने कहा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री से मिलकर सिर्फ उन्हें महाराष्ट्र में परेशानी में पड़े किसानों की मदद मांगी है। इसके अलावा उन्होंने पीएम को एक सुगर कांफ्रेंस में आने का बुलावा दिया है, ढाई महीने बाद होना है। ऐसे में चर्चा यही हो रही है कि क्या सिर्फ ये दोनों बात प्रधानमंत्री तक पहुंचाने में एनसीपी चीफ को 50 मिनट लग गए या इसमें कुछ आगे की भी बात हुई, जिससे महाराष्ट्र में सत्ता का कोई नया द्वार खुल सकता है?
पवार ने पीएम मोदी के सामने रखी दो मांग
प्रधानमंत्री से मुलाकात के बारे में पवार ने कुछ कहा तो नहीं, लेकिन ट्विटर पर उन्होंने दो पत्र शेयर करके बताने की कोशिश की है कि उनकी पीएम मोदी से क्या बात हुई है। पहले पत्र में उन्होंने लौटते मानसून की वजह से महाराष्ट्र में हुई असमान्य बारिश से खड़ी फसलों को हुई नुकसान से किसानों को उबारने की मांग की है। पवार ने अपने ट्वीट में लिखा है कि ‘मैंने राज्य में पैदा हुए भीषण हालात की ओर माननीय पीएम का ध्यान खींचा है।’ ज्यादातर जगहों पर पवार की इसी चिट्ठी की चर्चा हो रही है। दूसरे पत्र में उन्होंने अगले साल 31 जनवरी को पुणे के वसंतदादा सुगर इंस्टीट्यूट में चीनी उद्योग पर आयोजित कॉन्फ्रेंस में आने का उन्हें निमंत्रण दिया है। बता दें कि पवार इस संस्था के भी चीफ हैं। यह कॉन्फ्रेंस 2 फरवरी, 2020 तक चलना है। पवार ने अपने ट्वीटर हैंडल पर ये दोनों पत्र डाले हैं।
सियासी अटकलों का बाजार गर्म
प्रधानमंत्री मोदी के साथ पवार की ये मुलाकात 50 मिनट तक चली है। प्रधानमंत्री के साथ होने वाली किसी औपचारिक बैठक में इस तरह की अपील वाली चिट्ठियां सौपने में अमूमन 20 मिनट या उससे भी कम लगते हैं। ऐसे में अटकलों का बाजार गर्म होना स्वाभाविक है कि महाराष्ट्र में जारी सियासी गतिरोध के बावजूद एनसीपी नेता ने प्रधानमंत्री को दो पत्र सौंपने में ही 50 मिनट लगा दिए या इन दोनों चिट्ठियों के अलावा भी कुछ है, जो अभी पवार साहब नहीं बताना चाह रहे हैं? क्योंकि, ये मुलाकात ऐसे समय में हुई है जब बीजेपी से अलग होने के बाद शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहती है।
राजनीति में ऐसे ‘संयोगों’ के भी हो सकते हैं मायने
अगर राजनीतिक दृष्टि से देखें तो पवार और मोदी की ये मुलाकात उस वक्त हुई है, जब एनसीपी चीफ ने सोमवार को सोनिया से बैठक के बाद यही संकेत दिए थे कि उनका गठबंधन शिवसेना के साथ सरकार बनाने को लेकर किसी जल्दबाजी में नहीं है। अगले ही दिन प्रधानमंत्री ने संसद में सदन की मर्यादा का पालन करने के लिए एनसीपी की तारीफों के पुल बांध दिए थे। उन्होंने पवार का नाम नहीं लिया था, लेकिन जब उन्होंने इस मुद्दे पर अपने हैंडल से ट्वीट किया तो उसे पवार को भी टैग कर दिया। एक दिन बाद ही दोनों नेताओं के बीच लगभग एक घंटे की मुलाकात हो गई। राजनीति में इतने संयोगों का एकसाथ होना भी बहुत बड़ा संयोग ही माना जाएगा! वैसे शिवसेना इस मुलाकात से पहले ही अपनी ओर से कह चुकी है कि प्रधानमंत्री से मिलना किसी तरह की सियासी खिचड़ी पकना नहीं है। उसे यह भी भरोसा है कि गुरुवार तक सरकार गठन की तस्वीर साफ हो सकती है।
जिस कॉन्फ्रेंस में आने का दिया बुलावा, उसमें तीन साल पहले जा चुके हैं पीएम
यहां ये बता देना जरूरी है कि जिस कॉन्फ्रेंस में आने का पवार साहब ने पीएम को बुलावा दिया है, उसमें 2016 में वे शामिल भी हो चुके हैं। उस मौके पर भी दोनों ने एक-दूसरे की खूब सराहना की थी। तब सांसद के रूप में 50 साल पूरे करने पर प्रधानमंत्री ने उन्हें ‘भारतीय राजनीति की विरासत’ कहकर संबोधित किया था। यही नहीं पीएम मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर शुरुआती वर्षों के अनुभव को लेकर ये भी बताया था कि ‘मुझे यह स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं है कि गुजरात में मेरे शुरुआती दिनों में पवार ने मुझे मेरा हाथ पकड़कर चलना सिखाया।’ इसके जवाब में पवार ने भी हमेशा काम करते रहने के लिए पीएम मोदी की खूब तारीफ की थी। तब उन्होंने कहा था- “इससे उनका देश के प्रति पूर्ण समर्पण दिखता है।”
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