शिवसेना हुए मुख्यमंत्री पद की जिद छोड़ने को तैयार, महाराष्ट्र में जल्द बनेगी सरकार!

बेंगलुरू।  महाराष्ट्र में शिवसेना और बीजेपी के बीच गठबंधन सरकार में जारी गतिरोध अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंचता नज़र आने लगा है। शिवसेना एनडीए गठबंधन में न केवल शामिल होगी बल्कि  मुख्यमंत्री पद छोड़ने को भी तैयार हो गई है। शिवसेना का नया डिमांड है कि उसे 17 मंत्री पद दिए जाए जबकि बीजेपी ने शिवसेना को पहले ही 16 मंत्री पद ऑफर कर चुकी है।

शिवसेना अब अगर मुख्यमंत्री पद की जिद को छोड़ चुकी है, तो बीजेपी को 17 मंत्री पद शिवसेना को देने में कोई एतराज नहीं होगा। बीजेपी और शिवसेना के बीच गतिरोध को खत्म करने की कोशिश होते ही कांग्रेस और एनसीपी की सरकार में शामिल होने की कवायद काफूर हो गई हैं। सूत्रों के मुताबिक एनसीपी एलायंस के लिए शिवसेना के मुख्यमंत्री पद देने पर भी राजी हो गई थी।

गौरतलब है दिल्ली में बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मिलने पहुंचे महाराष्ट्र के निवर्तमान मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने कई घंटों तक अमित शाह से बातचीत की और महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ गठबंधन सरकार को लेकर चर्चा की। इस बीच शिवसेना और एनसीपी के बीच बन रहे नए समीकरण को लेकर भी चर्चा की गई है।

दिलचस्प बात यह थी कि मंगलवार को एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार भी कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से महाराष्ट्र में सरकार बनाने की कोशिशों को लेकर मुलाकात की थी, लेकिन महाराष्ट्र में सरकार बनाने लायक नंबर नहीं होने की दुहाई देकर महाराष्ट्र लौट गए। सूत्रों से पता चला है कि सोनिया गांधी शिवसेना के साथ गठबंधन करने को लेकर तैयार नहीं है। हालांकि इससे पहले कहां जा रहा था कि शिवसेना-एनसीपी गठबंधन को कांग्रेस बाहर से समर्थन दे सकती है।

दरअसल, कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के शिवसेना से गठबंधन को लेकर कसमसाहट के चलते शिवसेना की एनसीपी के साथ गठबंधन करने के मंसूबों पर पानी फिर गया है। हालांकि शिवसेना का सियासी ड्रामा अभी और देर तक चलता, लेकिन सोनिया गांधी के दो टूक जवाब ने शिवसेना के अरमानों पर पानी फेर दिया है।

यही कारण है कि शिवसेना अब एनडीए गठबंधन सरकार में शामिल होने के लिए तैयार हो गई है और मुख्यमंत्री पद को छोड़कर 17 मंत्री पद के साथ देवेंद्र फड़णवीस के नेतृत्व में महाराष्ट्र सरकार में शामिल हो सकती है। सूत्रों का कहना है कि बीजेपी और शिवसेना के बीच पूरी लड़ाई मंत्री पदों की संख्या को लेकर फंसी थी, जो अब लगभग सुलटने के कगार पर है, क्योंकि शिवसेना ने सीएम पद को लेकर पिछले 12 दिनों की अपनी जिद छोड़ दी है।

उल्लेखनीय है कि 24 सितंबर को आए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के पक्ष में आए थे। बीजेपी और शिवसेना दोनों को पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में कम सीटें आई थी, लेकिन महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए महाराष्ट्र की जनता ने दोनों दलों को मिलाकर 161 सीटें दी थी, जो बहुमत के लिए जरूरी 145 सीटों से 16 सीटें अधिक थी, लेकिन शिवसेना नतीजे आने के बाद से ही महाराष्ट्र में बडे़ भाई और छोटे भाई के फेर में पड़ गई और उसने बीजेपी से 50-50 फार्मूले पर सरकार में शामिल होने की शर्त रख दी।

शिवसेना एनडीए गठबंधन सरकार में शामिल होने के लिए शर्त थी कि नवनिर्मित महाराष्ट्र सरकार के पांच साल के कार्यकाल में ढाई साल बीजेपी का मुख्यमंत्री पद पर रहेगा और उसके अगले ढाई साल में शिवसेना का मुख्यमंत्री सत्ता पर काबिज होगा, जिसके लिए बीजेपी बिल्कुल तैयार नहीं हुई, यहां तक निवर्तमान महाराष्ट्र सीएम देवेंद्र फड़णवीस ने इसे पूरी तरह से खारिज कर दिया, जिससे गतिरोध खत्म नहीं हो रहा है।

हालांकि मुख्यमंत्री पद को लेकर रचा गया सियासी ड्रामा शिवसेना का महज दिखावटी ही था, क्योंकि शिवसेना बीजेपी से बारेगेन कर रही थी। अब चूंकि शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद पर अपन दावेदारी छोड़ दी है, तो महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना की सरकार पर जारी गतिरोध भी खत्म होने के कगार पर पहुंच गया है।

शिवसेना को मनाने के लिए बीजेपी ने गठबंधन सरकार में शामिल होने के लिए शिवसेना को 16 मंत्री पद ऑफर किए हैं। शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद छोड़ने के एवज में बीजेपी से 1 और मंत्रीपद देने की गुजारिश की है। लगता नहीं है कि बीजेपी 1 मंत्री पद के लिए महाराष्ट्र में जारी गतिरोध को और अधिक खींचना चाहेगी।

सूत्रों की मानें तो गठबंधन सरकार में शिवसेना को वित्त और राजस्व मंत्रालय दिया जा सकता है। हालांकि खबर यह भी है कि शिवसेना देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में महाराष्ट्र सरकार में शामिल नहीं होना चाह रही थी और उनके बदले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी या किसी अन्य बीजेपी नेता को मुख्यमंत्री पद पर देखना चाहती है, लेकिन देवेंद्र फड़णवीस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वरदहस्त प्राप्त है इसलिए यहां पर शिवसेना की दाल नहीं गली।

देवेंद्र फड़णवीस से शिवसेना की नारागजगी की वजह साफ थी। मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने न केवल शिवसेना को 50-50 फार्मूले को सिरे से खारिज कर दिया था बल्कि उन्होंनेए शिवसेना को दो टूक कहा था कि पूरे पांच साल बीजेपी का मुख्यमंत्री होगा, जिससे कहीं न कहीं नाराज है, क्योंकि यह बात शिवसेना की बुरी तरह चुभ गई थी। यही कारण था कि शिवसेना देवेंद्र फड़णवीस को सबक सिखाना चाह रही थी।

वैसे, शिवसेना और बीजेपी का स्वाभाविक गठबंधन ही महाराष्ट्र की अगली सरकार को टिकाऊ सरकार प्रदान कर सकता है, क्योंकि एनसीपी और कांग्रेस का समर्थन लेकर शिवसेना अगर महाराष्ट्र में सरकार बना भी लेती तो उसका भविष्य तय था। दो अलग-अलग विचारधारा वाले दल किसी भी एक मुद्दे पर रोजाना झगड़ते और पूरे समय एकदूसरे को समर्थन वापसी की धमकी ही देते रहते। ऐसे में बेमेल गठबंधन वाली सरकारें महाराष्ट्र की जनता को क्या जवाब देती यह सबसे मौजू सवाल था। शायद यही कारण था कि शिवसेना चाहते हुए भी एनसीपी और कांग्रेस का समर्थन लेकर महाराष्ट्र में सरकार नहीं चला सकती थी।

लेकिन जब ऐसे ही कयास एनसीपी और कांग्रेस के पक्ष लगाए जाने लगे तो शिवसेना की घर वापसी तय हो गई।शिवसेना और बीजेपी गठबंधन ने कांग्रेसी और एनसीपी के खिलाफ कैंपेन करके महाराष्ट्र की जनता से वोट मांगे थे और जनता ने उन्हें दोबारा कुर्सी पर बिठाने के लिए जनादेश भी दिया।

अगर शिवसेना कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बना लेती तो उस जनता को क्या मुंह दिखाते, जिसने झोली भर-भर के शिवसेना को देकर उनके उम्मीदवारों विधानसभा में जितवा कर भेजा है। कमोबेश यही हाल एनसीपी और कांग्रेस का है, जिन्होंने बीजेपी और शिवसेना के खिलाफ कैंपेन करके 54 और 44 की टैली को टच किया है।

कांग्रेस और एनसीपी के लिए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 अस्तित्व की लड़ाई थी। एकतरफ एनसीपी को छोड़कर सारे नेता बीजेपी में चले गए थे, जिससे एनसीपी में शरद पवार को छोड़कर कोई नेता नहीं बच गया था। एनसीपी ने बावजूद इसके बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 54 सीटें दर्ज की जबकि माना जा रहा था कि इस चुनाव में पार्टी का पतन निश्चित है।

वहीं, कांग्रेस का भी हाल बुरा था। कांग्रेस को भी उम्मीद से बेहतर नतीजे मिले हैं। कांग्रेस एनसीपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उतरी थी और नतीजे कांग्रेस के पक्ष में भी अच्छे आए। कांग्रेस 44 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही, जो पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में 2 अधिक है।

कांग्रेस 2009 विधानसभा चुनाव में 82 सीटों पर विजयी रही थी और एनसीपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाने में कामयाब हुई थी, लेकिन 2014 चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी दोनों को डब्बा गुल हो गया था। 2014 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में 40 सीटों का नुकसान हुआ और पार्टी 82 से सीधे 42 पर आग गिरी थी।

इसी तरह एनसीपी को 21 सीटों का नुकसान हुआ, जो 62 सीटों से गिरकर 41 सीटों पर सिमट गई थी। इस दौरान बीजेपी को 122 सीट और शिवसेना को 63 सीटें मिली थी जबकि दोनों दल अलग-अलग चुनाव में उतरी थी और बाद में एनडीए गठबंधन में शामिल होकर महाराष्ट्र सरकार बनाने में कामयाब रहीं थीं।

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