सावन में मथुरा के कोतवाल रूपी शिव मंदिर बनेंगे आस्था का केन्द्र

पहले सोमवार 22 जुलाई को ​दिखेगा श्रद्धा भक्ति का संगम

शिवानी सिसोदिया
मथुरा। वैसे तो सावन माह की शुरूआत 17 जुलाई से हो रही है। सावन माह में सोमवार को भगवान शिव की आराधना का विशेष दिन माना गया है। सावन माह का प्रथम सोमवार 22 जुलाई को पड़ेगा। कान्हा नगरी मथुरा में रंगेश्वर, गलेत्श्वर, भूतेश्वर व पिपलेश महादेव मंदिर भक्तों ब्रजवासियों के लिए आस्था का केन्द्र बनेंगे। इन मंदिरों में भक्त अपने आराध्य का विधि विधान के जलाभिषेक कर करेंगे।
बता दें कि मथुरा के ये चार ऐसे शिव मंदिर हैं, जिन्हें ब्रज का कोतवाल कहा जाता है। सावन मास के प्रथम सोमवार पर शिव मंदिरो में प्रातः काल से ही जलाभिषेक और भगवान शिव की पूजा-अर्चना होगी। कान्हा की जन्मभूमि के चार कोनों में चार कोतवाल कहें जाने वाले रंगेश्वर, गलेत्श्वर, भूतेश्वर व पिपलेश महादेव मन्दिर स्थित हैं जहां श्रावण मास में विशेष भीड़ दिखाई देगी। वैसे तो भगवान शिव के जगह जगह गली मौहल्ले में मन्दिर बने हुए हैं। लेकिन शहर के चारों कौनों पर स्थित शिव मन्दिरों का अलग ही महत्व हैं। वहीं श्रावण के प्रथम सोमवार को जहां प्रातः काल से शिव भक्तों की पूजन अर्चना को लम्बी लाइनें लग जायेंगी।

वहीं शहर के प्रमुख शिव मन्दिरों के अलावा भी शिव मन्दिर पर तरह—तरह के फूल बंगले व मिष्ठानों तक के बंगले सजाये जायेंगे। जिनके दर्शन पाकर भगक्तगण अपने को धन्य करेंगे।शिव मन्दिरों पर आने वाली भीड़ के दृष्टिगत जिला प्रशासन भी सुरक्षा के विशेष इंतजाम किये जा रहे हैं। वहीं सभी शिव मन्दिरों पर पुरूष व महिला पुलिसबल की व्यवस्थाएं की है।
क्या है महत्व
श्रावण मास के सोमवार को शिव जी के व्रतों, पूजा और शिव जी की आरती का विशेष महत्व है। शिव जी के ये व्रत शुभदायी और फलदायी होते हैं। इन व्रतों को करने वाले सभी भक्तों से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं। यह व्रत भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए किया जाता है। इस व्रत में भगवान शिव का पूजन करके एक समय ही भोजन किया जाता है। इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान कर शिव पंचाक्षर मन्त्र का जप करते हुए पूजन करना चाहिए। यह मंत्र’ॐ नम: शिवाय:’ है।
इससे भगवान शिव प्रसन्न होकर मनवांछित फल देते हैं। सावन के प्रत्येक सोमवार को श्री गणेश जी, शिव जी, पार्वती जी तथा नन्दी की पूजा करने का विधान है। शिव जी की पूजा में जल, दूध, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृत, कलावा, वस्त्र, यज्ञोपवीत, चंदन, रोली, चावल, फूल, बिल्वपत्र, दूर्वा, विजया, आक, धतूरा, कमलगट्टा, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पंचमेवा, धूप, दीप, दक्षिण सहित पूजा करने का विधान है। साथ ही कपूर से आरती करके भजन-कीर्तन और रात्रि जागरण भी करना चाहिए। पूजन के पश्चात कथा भी सुननी चाहिए और किसी ब्राह्मण से रुद्रभिषेक कराना चाहिए। ऐसा करने से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं। सोमवार का व्रत करने से पुत्र, धन, विद्या आदि मन वांछित फल की प्राप्ति होती है।

रंगेश्वर मंदिर
रंगेश्वर मंदिर के पुजारी जयनाथ ने बताया कि रंगेश्वर मंदिर मथुरा के प्राचीन मंदिरों में से एक है। यह मंदिर होली गेट के समीप स्थित है। रंगेश्वर मंदिर करीब साढे 5000 वर्ष पुराना है बताया जाता है कि इसके समीप कृष्ण बलराम ने कंस को मारा था। दोनों भाईयों में कंस को किसने मारा इसको लेकर झगड़ा होने लगा। दोनों कहने लगे कि कंस को मैंने मारा — मैंने मारा। झगड़ा ज्यादा बढ़ गया कि भगवान शिव जी को धरती पर प्रकट होना पड़ा। उन्होंने ‘रंग है, रंग है’ बालते हुए दोनों भाइयों का रंग है। तब जाकर दोनों भाईयों का झगड़ा शांत हुआ। उसी समय से इस मंदिर का नाम रंगेश्वर महादेव मंदिर पड़ा। आज इसकी मान्यता काफी है दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं दर्शन के लिए आते हैं। यहां पर कावड़ चढाई जाती हैं।

भूतेश्वर माह मंदिर
मथुरा कृष्ण जन्मभूमि के दक्षिण में भूतेश्वर महादेव का मन्दिर है । इसमें ऐतिहासिक शिवलिंग एवं पाताल देवी के विग्रह हैं । भूतेश्वर महादेव का शिवलिंग नाग शासकों द्वारा स्थापित किया गया । इसके सेवायत शिवम गिरी ने बताया कि भूतेश्वर महादेव प्रेत आत्माओं के ईश्वर हैं, इसीलिए उनका नाम भूतेश्वर महादेव हैं। उन्होंने बताया कि सावन का सोमवार शिव जी का प्रिय होता है इन सावन के सोमवार में शिवजी पृथ्वी पर बास करते हैं। ताकि वे अपने भक्तों पर कृपा बरसा सकें। मंदिर में फूल बंगला व 56 भोग आदि के दर्शन कराये जायेंगे।

गल्तेश्वर महादेव मंदिर
मथुरा में गल्तेश्वर महादेव मन्दिर कृष्ण जन्मभूमि के पीछे मल्लपुरा में स्थित है। यह मथुरा का प्राचीन मन्दिर है। गर्तेश्वर महादेव को पूर्वी सीमा का क्षेत्रपाल माना जाता है । आम बोलचाल में इसे “गल्तेश्वर” महादेव भी कहते हैं।
गल्तेश्वर महादेव मंदिर के महंत कृष्ण शर्मा ने बताया कि उनका परिवार मंदिर की पूजा अर्चना पारंपरिक रूप से करते चले आ रहे हैं। करीब इस मंदिर को 1500 वर्ष पुराना है। यानी पांचवी शताब्दी से हैं। गर्त का मतलब होता है नर्क। अर्थात श्री गल्तेश्वर तीनों नर्कों से उभारने वाले गलतेश्वर महाराज हैं। इसे इन्हें मृत्युंजय भी कहा जाता है। इस मंदिर की मान्यता है कि शिव और शक्ति विशेष रूप में स्थित है। मंदिर में दीपक विधी— विधान से नियमित जलता रहता है। यानी किसी मनोकामना को लेकर या हारी बीमारी को लेकर कभी भी इस मंदिर में एक दीपक जला सकते हैं। जिससे उनकी सभी विघ्नबाधायें नष्ट हो जाती हैं। श्री शर्मा ने बताया इस बार सावन के सोमवार का विशेष महत्व है। क्योंकि सावन में सूर्य चंद्रमा कर्क राशि में प्रवेश कर रहे हैं। यह कर्क मास में पांचवा महीना होता है। इस महीने में पांचों देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है जैसे शिव, शक्ति, सूर्य, गणेश, विष्णु भगवान की पूजा की जाती है।

गोकर्ण महादेव मंदिर
यहां के चार महादेवों में से एक श्री गोकर्ण महादेव भी है। इनका लेख भगवत गीता में भी मिलता है। श्री गोकर्ण जी के पिता का नाम आत्मदेव और माता का नाम धुंदली था। उनकी कोई संतान नहीं थी। एक ऋषि ने श्री गोकर्ण जी के माता पिता को पुत्र प्रप्ति के लिए एक फल दिया और कहा इस फल को खा कर आप को एक परम ज्ञानी पुत्र की प्रप्ति होगी। श्री गोकर्ण जी की माता धुंदली को ऋषि की बातों पर विश्वास नही हुआ और धुंदली ने उस फल को अपनी गाय को खीला दिया। गाय की द्वारा फल खाने के पश्चात, गाय के कान से श्री गोकर्ण जी का जन्म होता है। गाय के कान से जन्म होने के कारण इन जी का नाम गो + कर्ण, गोकर्ण हुआ।बचपन से ही गोकर्ण जी धार्मिक विचारों वाले थे। साधु-संतों की संगत करना, भगवान की पूजा करने में गोकर्ण जी को बड़ा आनंद मिलता था। गोकर्ण जी बचपन से ही परम ज्ञानी थे। गोकर्ण जी की माता अपना वंस आगे बढाने के लिए अपनी बहन का पुत्र गोद ले लेती है। उसका नाम धुंधकारी था। धुंधकारी का स्वभाव बचपन से ही राक्षस पर्वती का था। राक्षस प्रवत्तिओं की बजह से धुंधकारी की अकाल मृत्यु हो जाती है और धुंधकारी को प्रेत योनी मिलती है। जिसके कारण धुंधकारी की आत्मा भटकती है। एक रात धुंधकारी, श्री गोकर्ण जी के सपने में आकर उनसे प्रार्थना करता है कि गोकर्ण भईया मुझे इस योनी से मुक्ति दिलाओ। अपने भाई की मुक्ति के लिए श्री गोकर्ण जी सात दिनों तक भागवत गीता का पाठ करते है। तब जाकर धुंधकारी को प्रेत योनी से मुक्ति मिलती है।इस घटना के बाद श्री गोकर्ण जी यमुना किनारे यहां आकर भगवान शिव की तपस्या की।श्री गोकर्ण की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव, गोकर्ण जी को वरदान देते हैं कि आप कलयुग में श्री गोकर्ण महादेव जी के नाम से पूजे जाओगे।

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