ताजमहल के कमरे नहीं खुलेंगे, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की

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सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा-इसका मकसद सिर्फ प्रचार पाना है

22 कमरों को खोलने की मांग की गई थी, 12 मई को हाईकोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी थी
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ताजमहल के इतिहास और स्मारक परिसर में 22 कमरों को खोलने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन है। यानी याचिका सिर्फ प्रचार पाने के लिए दायर की गई।
न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें याचिका खारिज कर दी गई थी।

क्या कहा था हाईकोर्ट ने

हाईकोर्ट ने 12 मई को कहा था कि याचिकाकर्ता रजनीश सिंह (भाजपा की अयोध्या इकाई के मीडिया प्रभारी) यह बताने में विफल रहे कि उनके कौन से कानूनी या संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है। इसने लापरवाहपूर्ण तरीके से जनहित याचिका दायर करने के लिए याचिकाकर्ता के वकील की भी खिंचाई की और कहा कि वह मामले में संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत आदेश पारित नहीं कर सकता।
यह अनुच्छेद एक उच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति या प्राधिकरण को आदेश या रिट जारी करने का अधिकार देता है।

याचिका में क्या

याचिकाकर्ता ने ताजमहल के वास्तविक इतिहास का अध्ययन करने और विवाद को शांत करने और इसके इतिहास को स्पष्ट करने के लिए तथ्य खोज समिति के गठन की मांग की थी। रजनीश सिंह ने कहा कि ताजमहल का निर्माण मुगल सम्राट शाहजहां ने पत्नी मुमताज़ महल के लिए 1631 से 1653 तक 22 वर्षों की अवधि के दौरान किया। इसे साबित करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। कई हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों ने अतीत में दावा किया था कि मुगलकाल का मकबरा भगवान शिव का मंदिर था। स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित है।

प्रावधान अलग करने का अनुरोध

याचिका में प्राचीन, ऐतिहासिक स्मारक तथा पुरातत्व स्थल और अवशेष (राष्ट्रीय महत्व की घोषणा) अधिनियम, 1951 और प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के कुछ प्रावधानों को अलग करने का भी अनुरोध किया गया था जिसके तहत ताजमहल, फतेहपुर सीकरी, आगरा का किला और इत्माद-उद-दौला का मकबरा ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया गया था।
आरटीआई का हवाला
याचिका के अनुसार, एनसीईआरटी ने उसे आरटीआई प्रश्न में उत्तर दिया कि शाहजहां द्वारा ताजमहल के निर्माण के संबंध में कोई प्राथमिक स्रोत उपलब्ध नहीं है। याचिकाकर्ता ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में एक और आरटीआई दायर की लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने याचिका को खारिज करने में गलती नहीं की। यह एक प्रचार हित याचिका है। इसे खारिज किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट

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