तसलीमा नसरीन: हिंदुओं को 2.77 तो मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन क्‍यों, उठाया सवाल— क्या है कानून

कोलकाता
अपने बयानों को लेकर अक्‍सर विवादों में रहने वाली बांग्‍लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने अयोध्‍या में मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाया है। तसलीमा नसरीन ने कहा कि कोर्ट के फैसले में अयोध्‍या में हिंदुओं को 2.77 एकड़ जमीन दी गई जबकि मुसलमानों के लिए 5 एकड़ जमीन। मुसलमानों को भी 2.77 एकड़ जमीन ही दिया जाना चाहिए था।



तसलीमा ने अयोध्‍या फैसले पर ट्वीट कर कहा, ‘यदि मैं जज होती तो मैं अयोध्‍या की 2.77 एकड़ जमीन सरकार को देती ताकि वहां पर एक आधुनिक स्‍कूल का निर्माण कराया जा सके जिसमें सभी बच्‍चे मुफ्त में पढ़ाई करें। इसके अलावा मैं 5 एकड़ जमीन सरकार को देती ताकि वहां एक अत्‍याधुनिक हॉस्पिटल बनाया जा सके जिसमें मरीजों का मुफ्त में इलाज हो।’



मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन क्‍यों?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए तसलीमा ने कहा, ‘2.77 एकड़ जमीन हिंदुओं को दी गई। 2.77 एकड़ जमीन ही मुसलमानों को दिया जाना चाहिए था। उन्‍हें (मुसलमानों को) 5 एकड़ जमीन क्‍यों दिया गया?’ बता दें कि भारतीय राजनीति की दशा और दिशा को बदल देने वाले राम मंदिर मामले पर करीब 70 साल तक चली कानूनी लड़ाई और 40 दिन तक मैराथन सुनवाई के बाद शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्‍या में राम मंदिर का रास्‍ता साफ कर दिया।

तसलीमा नसरीन ट्वीट

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विवादित जमीन पर ही राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2.77 एकड़ की विवाद वाली जमीन पर ही राम मंदिर का निर्माण होगा। केंद्र को आदेश दिया कि उस जगह मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने में ट्रस्ट बनाए और विवादित जमीन को इस ट्रस्ट को सौंपने की योजना भी तैयार करे। मंदिर निर्माण कैसे होगा, यह बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज तय करेंगे। हालांकि मंदिर की यह जमीन केंद्र सरकार के रिसीवर के कब्जे में ही रहेगी।




सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ जमीन देने की बात कही है, लेकिन मुस्लिम समाज के नेताओं में इस पर विमर्श शुरू हो गया है कि जमीन लेनी चाहिए या नहीं। ज्यादातर लोग इस राय के दिख रहे हैं कि जमीन नहीं लेनी चाहिए। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के एक ओहदेदार ने ‘ऑफ द रेकॉर्ड’ जानकारी दी कि आपसी विमर्श में यह पाया गया कि हमारी लड़ाई अयोध्या में मस्जिद निर्माण को लेकर नहीं थी, जिसके लिए हमें जमीन दी जा रही है। उन्‍होंने कहा कि हमारी लड़ाई उस स्थल के मालिकाना हक पर थी, जिसे हम मस्जिद मानते रहे हैं, जबकि दूसरा पक्ष मंदिर मानता है। कोर्ट ने हमारी दलील नहीं मानी, लेकिन उसकी भरपाई के लिए 5 एकड़ जमीन का ऑफर स्वीकार करना नैतिक दृष्टि से उचित नहीं होगा।

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