चुनाव के बाद वित्त मंत्री के लिए पहली चुनौती, बेराजगारों के लिए विशेष योजनाएं

नई सरकार के समक्ष आर्थिक मोर्चे पर गंभीर चुनौतियां हैं। इस समय सरकार के खर्च में जिस हिसाब से बढ़ोतरी हो रही है, उसके मुकाबले आमदनी नहीं बढ़ रही है। इसके बीच तारतम्य बिठाना नए वित्त मंत्री के लिए पहली चुनौती होगी। क्रिसिल रेटिंग के मुख्य अर्थशास्त्री डी के जोशी का कहना है कि सरकार के खर्च के मुकाबले आमदनी बढ़ने की गति कम है। इसलिए घाटा बढ़ रहा है।

इस घाटे को  पाटने के लिए उपाय करने होंगे। वर्ष 2018-19 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मुकाबले 3.6 फीसदी पर है जो कि बजटीय लक्ष्य 3.4 फीसदी के मुकाबले 0.2 फीसदी ज्यादा है। उनका कहना है कि अर्थव्यवस्था के विकास की गति को बढ़ाना भी सरकार की महत्वूर्ण आर्थिक चुनौती रहेगी।

केंद्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (सीएसओ) ने पिछले वर्ष की अक्तूबर-दिसंबर तिमाही के लिए जो अनुमान पेश किया है, उसके मुताबिक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 6.6 फीसदी है जो कि पिछले छह वर्षों का न्यूनतम स्तर है। वित्त मंत्रालय की हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2019-20 के दौरान सात फीसदी की विकास दर हासिल होगी। यदि ऐसा हुआ तो यह मोदी सरकार के कार्यकाल की न्यूनतम वृद्धि दर होगी।

बेराजगारों के लिए बनानी होंगी विशेष योजनाएं
आईएसबी, हैदराबाद के प्रोफेसर रहे विकास सिंह का कहना है कि युवाओं के देश भारत में हर साल करीब एक करोड़ युवा श्रम बाजार से जुड़ते हैं। इन बेरोजगारों के लिए विशेष योजनाएं बनानी होंगी। साथ ही ग्रामीण इलाकों से शहरी इलाकों में युवाओं का पलायन बढ़ रहा है। इसका भी उपाय करना होगा।

गत वर्ष बैंकों का एनपीए 10 लाख करोड़ पार
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी केयर के मुताबिक, इस समय 12.4 लाख करोड रुपये की 1424 महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम चल रहा है। इनमें से 384 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं। इसकी वजह फंडिंग में दिक्कत है। पिछले साल बैंको का एनपीए 10.4 लाख करोड रुपये पर पहुंच गया था। इसलिए बैंकों की तरफ से वित्तपोषण में दिक्कत हो रही है।

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*