
नई दिल्ली। नए कृषि कानूनों की वापसी को लेकर दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई। कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से गतिरोध सुलझाने के लिए एक कमिटी बनाने को कहा है। इसमें भारतीय किसान यूनियन व अन्य किसान संगठनों के साथ केंद्र सरकार के प्रतिनिधि रहेंगे। कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार, हरियाणा सरकार और पंजाब सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। गुरुवार को फिर से सुनवाई होगी।
दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के विरोध प्रदर्शन के खिलाफ कानून की पढ़ाई करने वाले ऋषभ शर्मा ने दायर की है। इस याचिका में दिल्ली की सीमाओं से किसानों को हटाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि इस तरह लोगों के इकट्ठा होने से कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। याचिका में आगे कहा गया है कि दिल्ली बॉर्डर से किसानों को हटाना ज़रूरी है, क्योंकि इससे सड़कें ब्लॉक हो रही हैंं इमरजेंसी और मेडिकल सर्विस भी बाधित हो रही है।
याचिकाकर्ता के वकील जीएस मणि ने कहा कि अदालत ने शाहीन बाग केस के वक्त कहा था कि सड़कें जाम नहीं होनी चाहिए। बार-बार शाहीन बाग का हवाला देने पर चीफ जस्टिस ने वकील को टोका। उन्होंने कहा कि वहां पर कितने लोगों ने रास्ता रोका था? कानून व्यवस्था के मामलों में मिसाल नहीं दी जा सकती है।
कोर्ट ने कहा कि ऐसा लग रहा है कि सरकार और किसानों के बीच बातचीत से हल फिलहाल नहीं निकलता दिख रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार की बातचीत फेल हो जाएगी और यह जल्द ही राष्ट्रीय मुद्दा बन जाएगा. समिति बनाकर बातचीत से मसला सुलझाएंगे।
अदालत में वकील जीएस मणि ने कहा कि मैं किसान परिवार से आता हूं, इसलिए अपील की है. जिसपर अदालत ने उनसे जमीन के बारे में पूछा, वकील ने बताया कि उनकी ज़मीन तमिलनाडु में है. जिसपर चीफ जस्टिस ने कहा कि तमिलनाडु की स्थिति को पंजाब-हरियाणा से नहीं तोला जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो किसान संगठनों का पक्ष सुनेंगे, साथ ही सरकार से पूछा कि अबतक समझौता क्यों नहीं हुआ. अदालत की ओर से अब किसान संगठनों को नोटिस दिया गया है, अदालत का कहना है कि ऐसे मुद्दों पर जल्द से जल्द समझौता होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम कल आंदोलनकारी संगठनों को भी सुनेंगे. एक कमिटी बनाएंगे। इसमें आंदोलनकारी संगठनों के साथ, सरकार और देश के बाकी किसान संगठनों के भी लोग होंगे।
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