जन आकांक्षाओं को पूरा करने का दबाव
भाजपा ने देश की राजनीति में नया इतिहास लिख दिया है। वर्ष 2014 में गैरकांग्रेसी दल के रूप में पहली बार बहुमत लाकर नया सियासी इतिहास लिखा था। इस बार लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत और पहले से भी बड़ी जीत हासिल कर पार्टी ने सारे सियासी समीकरण उलट पलट दिए हैं। हालांकि पार्टी को दूसरी बार मिली प्रचंड जीत ने उसके लिए चुनौतियां भी बढ़ा दी हैं। इसमें सबसे बड़ी चुनौती बड़ी जीत से बढ़ी जनाकांक्षा है। इसकी पूर्ति के लिए अब पार्टी के पास अगर-मगर जैसा कोई विकल्प नहीं बचा है।
आमतौर पर ऐसा होता आया है कि पूर्ण बहुमत वाली सरकार लोागों की बड़ी अपेक्षाओं को पूरा न कर पाने के कारण सत्ता में वापसी नहीं कर पाती। मोदी ने इस मिथक को तोड़ा है। इस परिणाम की खास बात है कि आजादी के शुरुआती तीन दशकों के बाद के बाद पहली बार जब देश के मतदाताओं ने किसी पार्टी या नेता को हराने के लिए नहीं बल्कि जिताने के लिए वोट दिया है। दशकों बाद यह पहला मौका है जब कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोगों ने मोदी को दोबारा पीएम बनाने के लिए वोट दिया।
सरकार की चुनौतियां
-सभी वर्गों को साधे रखने की चुनौती
-भारी जन अपेक्षाओं की पूर्ति का रास्ता तलाशना
-अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा भरना
-रोजगार के संकट से निपटना
-आतंकवाद के खिलाफ तेवर को बनाए रखना
संगठन की चुनौतियां
-शाह जैसे कुशल रणनीतिकार के विकल्प की खोज
-संगठन में खाली पदों पर योग्य नए चेहरों को भरना
-नौ करोड़ कार्यकर्ताओं को गतिशील रखना
-पश्चिम बंगाल-ओडिशा में प्रभाव बढ़ाना
-प्रभाव वाले राज्यों में प्रभाव कायम रखना
Leave a Reply