नई दिल्ली। ‘एक गाड़ी धोने के रोजाना 10 रुपये मिलते हैं। सुबह 5 से 8 बजे तक सूरत नगर, सूर्या विहार, सेक्टर-4, सेक्टर-7 में 25 से 30 गाड़ियां साफ कर लेता हूं। उम्मीद है अगले साल तक मास्टर ऑफ फिजिकल एजुकेशन में दाखिले के लिए मैं एक लाख 20 हजार रुपये जमा कर लूंगा।’ यह कहना है योग के नैशनल मेडलिस्ट संजीव का। वह सूरत नगर में रहते हैं। संजीव के इन हालात को देखकर हरियाणा सरकार के उन दावों पर भरोसा कम होता है, जिसमें वह खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएं और संसाधन देने की बात करती है।
बैचलर ऑफ फिजिकल एजुकेशन कर चुके संजीव फिजिकल एजुकेशन में ही आगे अपनी पढ़ाई करना चाहते हैं। वह सेक्टर-4 स्थित हूडा जिमखाना क्लब के कोच पूनम बिमरा और कोच अजीत के अंडर में प्रैक्टिस करते हैं।
पिता हैं बीमार, मां घरों में बनाती हैं खाना
21 साल के संजीव गुड़गांव के सूरत नगर में रहते हैं। पिता पहले एक कंपनी में सिक्यॉरिटी गार्ड थे, लेकिन बीमारी के कारण अब पिता बेड पर ही हैं। वहीं मां लोगों के घरों में जाकर खाना बनाने का काम करती हैं और वो खुद भी गाड़ियां धोकर घर का खर्चा, पिता की दवाईयों का खर्चा उठाने में मदद कर रहे हैं।
5 साल से कर रहे योग की प्रैक्टिस
संजीव 5 साल से योग की प्रैक्टिस कर रहे हैं। ऐसे में अपने काम के साथ-साथ वो खेल को भी पूरा समय दे रहे हैं। 2018 में नैशनल योग प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल जीत चुके हैं और स्टेट में भी कई मेडल प्राप्त कर चुके हैं। फिलहाल वह सितंबर में जींद में होने वाली स्टेट प्रतियोगिता के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं।
नहीं मिलती उभरते हुए खिलाड़ियों को मदद
संजीव का कहना है कि प्रदेश में खिलाड़ियों को मदद इंटरनैशनल मेडल मिलने के बाद मिलती है। जबकि एक ग्राउंड लेवल से इंटरनैशनल तक पहुंचने में खिलाड़ी को जो मदद चाहिए होती है, उसमें राज्य सरकार और केंद्र सरकार पूर्ण रूप से उन्हें अनदेखा कर देती है।
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