बेमौसम बारिश बनी आफत, किसानों को जबरदस्त नुकसान

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मानसून के मौसम में सूखे के हालात और पिछले महीने शुरू हुआ बेमौसम बारिश का सिलसिला उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए आफत लेकर आया है। गलत समय पर हो रही बारिश से किसानों को भारी नुकसान हुआ है और उनके सामने अनिश्चितता का अंधकार छा गया है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक, “उत्तर प्रदेश के 75 में से 67 जिलों में पिछले हफ्ते अत्यधिक वर्षा हुई है। मॉनसून के मौसम यानी जून-जुलाई में बारिश लगभग न के बराबर होने से फसल चक्र पहले से ही अव्यवस्थित हो गया था और अब सितंबर-अक्टूबर में अत्यधिक बारिश के कारण रही-सही फसलें भी बर्बाद होने से किसान और भी ज्यादा परेशान हो गए हैं।”
हालांकि, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को सूखा और बाढ़ से प्रभावित किसानों को राहत देने के संबंध में कुछ निर्देश जारी किए हैं, लेकिन कई काश्तकारों का मानना है कि यह राहत देर से आने वाली नाकाफी मदद साबित हो सकती है।
सितंबर और अक्टूबर में बेमौसम बारिश की वजह से जहां क‍ई शहरी इलाकों में लोगों को बाढ़ का सामना करना पड़ा है, वहीं सबसे ज्यादा चोट किसानों को पहुंची है। बारिश के कारण लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि पानी में डूब गई है, जिससे धान, मक्का और आलू की फसलों को जबरदस्त नुकसान पहुंचा है। इसके अलावा, बाजरा और उड़द की फसलों पर भी बुरा असर पड़ा है।
इटावा के आलू उत्पादक किसान सुरेंद्र पाठक ने कहा, “हमने सितंबर के अंत में आलू की जल्द बोई जाने वाली प्रजाति की बुवाई की थी, लेकिन भारी बारिश के कारण सात हेक्टेयर क्षेत्र में लगी हमारी आलू की फसल पर बुरा असर पड़ा है।”
पाठक ने कहा, “खेतों में पानी भर गया है, जिसकी वजह से आलू के कंद सड़ गए हैं। अगर ऐसे ही बारिश जारी रही तो आलू की बाद वाली प्रजाति की बुवाई करना मुश्किल हो जाएगा।” इटावा में अक्टूबर के पहले सप्ताह में 81 मिलीमीटर औसत बारिश दर्ज की गई, जो दीर्घकालिक औसत (एलपीए) यानी 8.3 मिलीमीटर से 876 फीसदी ज्यादा है।
उधर, गोंडा में इसी अवधि में 248.6 मिलीमीटर वर्षा रिकॉर्ड की गई, जो एलपीए यानी 25.3 मिलीमीटर से 883 प्रतिशत अधिक है। गोंडा के सीमांत किसान प्रभात कुमार बारिश के मौजूदा दौर को देखते हुए अपनी धान की फसल को लेकर परेशान हैं।
वह अपनी व्यथा बताते हुए कहते हैं, “पिछले दिनों भारी बारिश की वजह से मेरी धान की खड़ी फसल लेट गई। मुझे डर है कि मेरी आधी फसल बर्बाद हो चुकी है और अगर आने वाले दिनों में मौसम साफ नहीं हुआ तो रही-सही फसल भी नष्ट हो जाएगी।”
जिला स्तरीय अधिकारी राज्य सरकार के निर्देश पर भारी बारिश के कारण फसलों को पहुंचे नुकसान के आकलन के लिए सर्वे करा रहे हैं। प्रदेश के राहत आयुक्त प्रभु नारायण सिंह ने बताया, “उत्तर प्रदेश में हाल के दिनों में एलपीए की तुलना में काफी ज्यादा बारिश दर्ज की गई है। हमने सभी जिलों के अधिकारियों से बारिश के कारण फसलों पर पड़ने वाले प्रभावों से संबंधित डेटा उपलब्ध कराने को कहा है।” सिंह ने बारिश के कारण प्रदेश में फसलों को हुए कुल नुकसान के पैमाने के बारे में टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। हालांकि, उन्होंने कहा, “एक बार डेटा सामने आ जाए तो हम नुकसान के बारे में कुछ कह पाने की बेहतर स्थिति में होंगे। यह डेटा अगले हफ्ते तक मिल जाने की संभावना है। हालांकि, जिलों में प्रशासन से कहा गया है कि वह किसानों को हुए नुकसान के एवज में सहायता उपलब्ध कराने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए।”
प्रदेश में बारिश के मौजूदा दौर से हालात अजीबोगरीब हो गए हैं। प्रदेश सरकार राज्य में पिछले महीने की शुरुआत तक जहां मानसून में बारिश न होने से फसलों को हुए नुकसान के आंकड़े जुटा रही थी, वहीं अब अत्यधिक बारिश से हो रहे नुकसान का डेटा इकट्ठा किया जा रहा है। आईएमडी के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में एक जून से 30 सितंबर तक मानसून सत्र में लगभग 30 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई थी। राज्य के 75 जिलों में से 53 में औसत से कम वर्षा के कारण खरीफ की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा था।
शाहजहांपुर जिले के किसान प्रीतम पाल सिंह कहते हैं, “मेरे लिए यह अब तक का सबसे दयनीय दौर साबित हो रहा है। यह दौर तो कोरोना महामारी से भी ज्यादा बुरा है। इस बार कम बारिश होने की वजह से मैं धान की आधी फसल ही बो पाया था। अब बेमौसम भारी बारिश की वजह से उस पर भी खतरा मंडरा रहा है।” सिंह ने कहा, “इस साल लगभग सभी किसान कमजोर मानसून का शिकार हुए हैं। लघु और सीमांत किसानों पर सबसे ज्यादा चोट हुई है। सरकार को उनकी मदद के लिए कुछ सार्थक कदम उठाने चाहिए।”

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