सोनभद्र नरसंहार: आईएएस अफसर की थी 90 बीघा जमीन, जिसके लिए बिछा दी इतनी लाशें !

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के घोरावल कोतवाली क्षेत्र के ग्राम पंचायत मूर्तिया के उम्भा गांव में 90 बीघा जमीन के विवाद में गुर्जर और गोंड विरादरी के बीच हुए खूनी संघर्ष में एक ही पक्ष के 10 लोगों की मौत हो गई, जबकि 25 लोग घायल हैं। इस नरसंहार में बिहार कैडर के एक आईएएस का भी नाम सामने आ रहा है. कहा जा रहा है कि 2 साल पहले पूर्व आईएएस आशा मिश्रा और उनकी बेटी ने यह जमीन ग्राम प्रधान यज्ञदत्त को बेच दी थी। इसी जमीन पर कब्जे के लिए ग्राम प्रधान करीब 200 हमलावरों के साथ पहुंचा था। जब ग्रामीणों ने इसका विरोध किया तो सैकड़ों राउंड फायरिंग कर लाशें बिछा दी गईं।

आदिवासी बाहुल इलाका है मूर्तिया गांव
बता दें मूर्तिया गांव आदिवासी बाहुल इलाका है. यहां गोंड विरादरी के लोग कई पुश्तों से खेती करते आए हैं. आरोप है कि पूर्व आईएएस ने यहां 90 बीघा जमीन खरीदी थी लेकिन उन्हें उस पर कब्ज़ा नहीं मिल सका. जिसके बाद उन्होंने यह जमीन ग्राम प्रधान यज्ञदत्त भूरिया को बेच दी. जिसके कब्जे को लेकर ही यह नरसंहार हुआ. पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ओपी सिंह ने बताया कि जरुरत पड़ी तो आईएएस पर भी कार्रवाई होगी. उन्होंने कहा कि 2 साल से ग्राम प्रधान इस जमीन पर कब्जे के लिए प्रयासरत था. सोनभद्र पुलिस ने जमीन विवाद में सभी संभावित निरोधात्मक कार्रवाई 2 माह पहले ही की थी. पुलिस की तरफ से कार्रवाई में कोई ढिलाई नहीं बरती गई.

1947 से है आदिवासियों का कब्ज़ा
दरअसल आदिवासी बाहुल इस गांव में लोगों की जीविका का साधन सिर्फ खेती है. ये भूमिहीन आदिवासी सरकारी जमीन जोतकर अपना गुजर-बसर करते आए हैं. जिस जमीन के लिए यह संघर्ष हुआ उस पर इन आदिवासियों का 1947 के पहले से कब्ज़ा है. 1955 में बिहार के आईएएस प्रभात कुमार मिश्रा और तत्कालीन ग्राम प्रधान ने तहसीलदार के माध्यम से जमीन को अद्रश कोआपरेटिव सोसाइटी के नाम करा लिया. चूंकि उस वक्त तहसीलदार के पास नामांतरण का अधिकार नहीं था, लिहाजा नाम नहीं चढ़ सका.

इसके बाद आईएएस ने 6 सितंबर, 1989 को अपनी पत्नी और बेटी के नाम जमीन करवा लिया. जबकि कानून यह है कि सोसाइटी की जमीन किसी व्यक्ति के नाम नहीं हो सकती. इसके बाद आईएएस ने जमीन का कुछ हिस्सा बेच दिया. इस विवादित जमीन को आरोपी यज्ञदत्त ने अपने रिश्तदारों के नाम करवा दिया. बावजूद इसके उस पर कब्ज़ा नहीं मिल सका. इसके बाद बुधवार को करीब 200 की संख्या में हमलावारों के साथ आए ग्राम प्रधान ने यहां खून की होली खेली.

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