लखनऊ। यूपी में विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले की राजनीतिक दलों की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं। चुनावी तैयारियों में जुटे यूपी के सपा, बसपा और बीजेपी समेत सभी बड़े दल यूपी की जनता से बड़े बड़े दावे करते हुए नजर आ रहे हैं। इसी बीच सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की ओर से लगातार उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के दौरान हुए आपराधिक मामलों को याद दिलाकर अपनी सरकार आने पर बेहतर कानून व्यवस्था देने का दावा कर रहे हैं। वहीं, साल 2012 से 2017 के आपराधिक रिकॉर्ड सामने आने के बाद अखिलेश यादव के दावों पर एक बाद फिर सवाल खड़ा हो गया है।
यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार बनते ही अखिलेश यादव ने धूमधाम से भव्य सैफई महोत्सव मनाया। बड़े-बड़े सितारों और कलाकारों ने इसमें शिरकत की। फिर अगले ही साल यूपी में दंगे का जो अध्याय शुरू हुआ, उसका गवाह पूरा उत्तर प्रदेश बन गया। 2013 में एक छोटी सी छेड़छाड़ की वारदात ने दंगों का रूप ले लिया। पूरा मुजफ्फरनगर जिला इसकी चपेट में आया और 43 से ज्यादा लोग मारे गए। जारी आंकड़ों की बात करें तो इसी साल 2013 में पूरे उत्तर प्रदेश में 823 दंगे हुए। इन दंगों में 133 लोगों ने जान गंवाई और 2269 से ज्यादा लोग घायल हुए।
अगले साल 2014 में भी दंगे नहीं रुके और 644 वारदातें हुईं। इन घटनाओं में कुल 95 लोग हताहत हुए। 2014 से 2015 के बीच सांप्रदायिक हिंसा में 17% बढ़ोत्तरी हुई। 2015 में भी 751 दंगे की घटनाएं हुईं और 97 लोग मारे गए। साल दर साल पुलिस-प्रशासन दंगाई के आगे घुटने टेकता दिखाई दिया। मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, जहानाबाद और कई जगह दंगों की गवाह बनी।
2022 के चुनाव आते ही अखिलेश यादव यूपी में महिला सुरक्षा को लेकर बड़ी बड़ी बातें करते हुए नजर आ रहे हैं। लेकिन साल 2012 के बाद अगले पांच सालों तक यूपी में महिला सुरक्षा और सम्मान की क्या स्थिति रही, इसका अंदाजा सामने आए आंकड़ों से लगा लीजिए। आंकड़ों के अनुसार, साल 2014 में प्रदेश भर में करीब 3,467 रेप की घटनाएं हुईं। वहीं, अगले ही साल 2015 रेप की वारदात में 161% की बढ़ोत्तरी हुई और 9075 रेप के मामले दर्ज हुए।बुलंदशहर हाइवे गैंगरेप और लखनऊ आशियाना रेप केस जैसे न जाने कितने मामले थे, जो अखिलेश सरकार की नाक के नीचे हुए।
साल 2016 में 15 मार्च से 18 अगस्त के बीच महज 6 महीनों में 1012 रेप के मामले दर्ज हुए। इस दौरान छेड़छाड़ के भी रिकॉर्ड 4520 मामले दर्ज हुए। ये वो मामले हैं जो दर्ज हो सके, न जाने ऐसी कितनी वारदातें ऐसी होंगी जो पुलिस-प्रशासन की नाकामी के कारण थानों तक पहुंच नहीं पाई होंगी। 2014 की NCRB की सूची में उत्तर प्रदेश सबसे असुरक्षित राज्यों में से एक था। साल 2015 में NCRB रिपोर्ट में प्रदेश के सबसे हाई-प्रोफाइल और वीआईपी शहर लखनऊ को सबसे असुरक्षित शहर कहा गया।
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