यूनिक समय, मथुरा। अक्षय कुमार स्टारर मूवी रामसेतु 25 अक्टूबर 2022 को बडे़ परदे पर दिखाई देगी। ये जानकारी खुद अक्षय ने इंस्ट्राग्राम पर दी है। फिल्म में अक्षय का किरदार एक नास्तिक व्यक्ति का है जो पुरातत्व विभाग में काम करता है। फिल्म का टीजर रिलीज होते ही एक बार फिर रामसेतु चर्चाओं में आ गया है। रामसेतु का वर्णन वाल्मीकि रामायण और श्रीरामचरित मानस के साथ-साथ अन्य कई ग्रंथों में भी मिलता है। इन्हीं ग्रंथों के आधार पर ये कहा जाता है कि इस पुल का निर्माण लाखों वानरों ने श्रीराम के नेतृत्व में किया था। लेकिन बहुत कम लोग ये जानते हैं कि रामसेतु बनाने वाले असली इंजीनियर्स कौन थे?
आज हम आपको रामसेतु से जुड़ी खास बातें बता रहे हैं, जिनके बारे में कम ही लोगों को पता है…
आखिर क्यों बनाना पड़ा वानरों को समुद्र पर पुल?
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में जन्म लिया था। उस समय राक्षसों के राजा रावण ने उनकी पत्नी सीता का हरण कर लंका में कैद कर लिया था। जब ये बात श्रीराम को पता चली तो वे वानरों और रीछों की सेना लेकर लंका पर आक्रमण करने गए, मगर रास्ते में विशाल समुद्र था। विशाल सेना को लेकर समुद्र पार करने का कोई उपाय नहीं था। इस समस्या का कोई हल न देखकर श्रीराम ने समुद्र को सुखाने का निश्चय किया। तभी समुद्र देवता प्रकट हुए और उन्होंने श्रीराम को पुल बनाने की सलाह दी।
कौन थे रामसेतु के इंजीनियर्स?
समुद्र पर पुल बनाना आसान नहीं था क्योंकि जैसे ही वानर पानी में पत्थर डालते थे, वे डूब जाते थे। तब नल और नील नाम के 2 वानरों ने श्रीराम को बताया कि उन्हें समुद्र पर पुल बनाने की कला आती है। नल-नील ने ये भी बताया कि वे देवताओं के शिल्पी (इंजीनियर) विश्वकर्मा के पुत्र हैं, इसलिए वे ये काम आसानी से कर सकते हैं। तब श्रीराम के आदेश पर ही उन्होंने रामसेतु का डिजाइन तैयार किया और अपने कौशल के चलते इस कार्य को पूरा करने में जुट गए।
कितने दिनों में बना था रामसेतु?
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, वानर सेना को समुद्र पर पुल बनाने में 5 दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था। सूर्य सिद्दांत के अनुसार 1 योजन में 8 किलोमीटर होता है। इस तरह रामसेतु बनकर तैयार हो गया और इस पुल पर चलते हुए श्रीराम की सेना ने विशाल समुद्र को पार किया।
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