धर्म डेस्क। भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम ने 21 बार हैहयवंशी क्षत्रियों को समूल नष्ट किया था। आखिर ऐसा क्या हुआ की भगवान परशुराम को इस वंश का नाश करना पड़ा वो भी एक या दो बार नहीं बल्कि 21 बार, पुराणों में इसके बारे में एक कथा प्रचलित है। आइए जानते हैं इसके बारे में …..
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सहस्त्रार्जुन एक हैहयवंशी राजा थे, ऋषि वशिष्ठ से शाप के कारण सहस्त्रार्जुन की मति मारी गई और उसने परशुराम के पिता जमदग्नि के आश्रम में एक कपिला कामधेनु गाय को देखा और उसे पाने की लालसा से वह कामधेनु को बलपूर्वक आश्रम से ले गया। जब परशुराम को यह बात पता चली तो उन्होंने पिता के सम्मान के खातिर कामधेनु वापस लाने की सोची और सहस्त्रार्जुन से उन्होंने युद्ध किया। युद्ध में सहस्त्रार्जुन की सभी भुजाएँ कट गईं और वह मारा गया।
तब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोधवश परशुराम की अनुपस्थिति में उनके पिता जमदग्नि को मार डाला। परशुराम की मां रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गई। इस घोर घटना ने परशुराम को क्रोधित कर दिया और उन्होंने संकल्प लिया- मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश करके ही दम लूंगा।
क्रोधाग्नि में जलते हुए परशुराम ने सर्वप्रथम हैहयवंशियों की महिष्मती नगरी पर अधिकार किया तदुपरान्त कार्त्तवीर्यार्जुन का वध। कार्त्तवीर्यार्जुन के दिवंगत होने के बाद उनके पांच पुत्र जयध्वज, शूरसेन, शूर, वृष और कृष्ण अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते रहे। इसी तरह उन्होंने अहंकारी और दुष्ट प्रकृति के हैहयवंशी क्षत्रियों से 21 बार युद्ध कर उन्हें परास्त किया।
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