
बुरहान वानी की तरह ही मूसा भी प्रतिष्ठित और संपन्न परिवार से आता था. वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर घाटी लौट आया था. कट्टरता के प्रभाव में आकर वह घाटी में इस्लामिक राज्य की स्थापना का ख्वाब देखने लगा था. कश्मीर की लड़ाई को वह एक राजनीतिक नहीं बल्कि धार्मिक लड़ाई मानता था. वह हिज्बुल से अलग होकर अलकायदा का चीफ बना था.
भारतीय सेना को एक बड़ी सफलता तब मिली जब पुलवामा हमले का मोस्ट वांटेड आतंकी जाकिर मूसा दक्षिणी कश्मीर में एक एनकाउंटर में मार गिराया गया. हिज्बुल का कमांडर मूसा ही बुरहान वानी के बाद कश्मीर घाटी में आतंक का पोस्टर बॉय था. वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था लेकिन इसके बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी थी और मन में इस्लामिक राज्य को घाटी में स्थापित करने का ख्वाब लेकर घर लौट आया था.
कश्मीर घाटी में सेना ने आतंकियों के खिलाफ एक बड़ी कार्यवाई की थी, जिसमें यह मारा गया. दक्षिण कश्मीर के त्राल में मारे गए मूसा का असली नाम राशीद भट्ट था. वह आतंकी संगठन गजावत-उल-हिंद से जुड़ा हुआ था. इसे उसी जगह पर मारा गया, जहां 2016 में हिज्बुल के कमांडर बुरहान वानी को मारा गया था. भारतीय सेना की उत्तरी कमांड ने आधिकारिक तौर पर मूसा के मारे जाने की पुष्टि की है.

जाकिर मूसा चंडीगढ़ में इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ कश्मीर में इस्लामिक राज्य की स्थापना करने गया था (फाइल फोटो)
तकनीक का अच्छा जानकार था मूसा
मूसा पढ़ा-लिखा आतंकी था. भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को लंबे वक्त से मूसा की तलाश थी. बीते दिनों कश्मीर में तमाम आतंकियों के जनाजे में मूसा के समर्थन में लड़के नारे लगाया करते थे वह घाटी में सुरक्षाबलों पर हुए कई हमलों में भी शामिल रहा था.
इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ गया था आतंकी बनने
मूसा एक प्रतिष्ठित और संपन्न परिवार से ताल्लुक रखता था. 2011 में स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ चला गया था. वहां उसने इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया था. लेकिन 2 साल का कोर्स पूरा करने बाद उसने इंजीनियरिंग आधे में छोड़ दी और वापस घाटी लौट आया. कहा जाता है कि 2010 में हुए तीन आतंकियों के एनकाउंटर के बाद भड़की हिंसा की घटना ने उसपर गहरा असर डाला था और इसी के चलते उसने पढ़ाई छोड़ी और यह कदम उठाया.
ऐसे चुना इस्लामिक स्टेट का रास्ता
पहले तो मूसा ने हिज्बुल मुजाहिदीन का दामन थामा. हालांकि बाद में उनके विचारों से उसका मतभेद हो गया. जिसके बाद मूसा, कश्मीर की लड़ाई को राजनीतिक न मानकर धार्मिक मानने लगा. वह घाटी में इस्लामिक स्टेट की स्थापना चाहता था. जिसके चलते हिज्बुल से अलग होने के बाद उसने अंसार गजावत-उल-हिंद नाम का एक संगठन बना लिया. यह अलकायदा से जुड़ा संगठन था.
हिज्बुल का लगा था कि उन्हें डबल क्रॉस कर रहा था मूसा
हिज्बुल के साथ उसके मतभेद हुए तो हिज्बुल ने मूसा को इंडियन एजेंट बता दिया. बाकयदा हिज्बुल की ओर से इसके लिए पर्चे लगाए गए. दावा किया गया कि मूसा सिक्योरिटी एजेंसियों से मिला हुआ है और आतंकियों को मारने के लिए सेना को सूचना देता है.

मूसा ने खालिस्तानियों और बब्बर खालसा से भी संपर्क साधा था (फाइल फोटो)
खालिस्तानियों से भी साधा संपर्क
मूसा अपने आतंक को सिर्फ कश्मीर तक सीमित नहीं रखना चाहता था ऐसे में उसने पाकिस्तान में रहने वाली खालिस्तानी फोर्स और बब्बर खालसा आतंकियों से संबंध बनाने की कोशिश की. यही वजह है कि भारत में उसे बुरहान की तरह बड़ा सिरदर्द माना जाने लगा. सिक्योरिटी एजेंसियां मानती हैं कि वह पंजाब में भी अपना आतंक जमाना चाहता था. इसके साथ ही वह अलकायदा के अलावा आईएसआईएस के संपर्क में भी था.
घाटी में IS के झंडे लगे तो आया मूसा का हाथ
जैसा कि पहले ही बताया गया है कि मूसा कश्मीर की लड़ाई को राजनीतिक लड़ाई न मानकर धार्मिक लड़ाई मानता था. ऐसे में उसने कई अलगाववादी नेताओं को ही जान से मारने की धमकी दे दी. दरअसल ये अलगावावादी कश्मीर की लड़ाई को राजनीतिक लड़ाई मानते थे. इसी दौरान कश्मीर में कई जगहों पर IS के झंडे लहराए जाने का मामला सामने आया. कहा जाता है यह मूसा का ही काम था. उसने वहां आतंक की एक नई पौध रोप दी है.
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